दिल का रिश्ता -रश्मि झा मिश्रा Moral stories in hindi

“नीलिमा नाम है ना तुम्हारा… तुम ही आई थी ना काम के लिए…!”

” हां साब… नीलिमा ही है… मेरी बेटी है… अब अकेले से नहीं होता मुझसे… इसलिए सोचा इसे भी लगा दूं काम पर…!”

” वह तो ठीक है… पर मुझे दिन भर वाली बाई चाहिए…!” मिलिंद बाबू ने पूछते हुए कहा…” यह रहेगी दिन भर…!”

 नीलिमा की मां ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा… “पर साब दिन भर कैसे छोड़ूं… अभी तो बच्ची है… बस 15 की तो है…!”

 “तो मेरे यहां नहीं होगा… मुझे तो दिन भर वाली ही चाहिए…!”

” मैं रह जाऊं साहब…!”

” नहीं नहीं इसे ही छोड़ो ना… क्या दिक्कत है… घर में मेरी पत्नी है मृणाल… दोनों बेटियां हैं… कोई दिक्कत नहीं होगी… असल में बड़ी वाली की शादी तो हो गई 3 साल पहले ही… अब वह अपने बच्चे के साथ आई है… तो उसे भी देखभाल चाहिए… फिर छोटी की शादी होने वाली है अभी दो-तीन महीनों में… तो घर में काम बहुत है… मगर इसी में मृणाल जी की तबीयत खराब हो गई है… वह बेचारी कुछ संभाल ही नहीं पा रही हैं… इसलिए अगर यह लड़की रहेगी उनका हाथ बंटाने दिन भर साथ में तो अच्छा रहेगा…अब बताओ क्या बोलती हो…!”

” पगार साब…!”

” अच्छी मिलेगी… उसकी तुम चिंता मत करो… दिन भर मेमसाब की बात मानकर उनको खुश रखेगी तो वह खुद इसे कोई कमी नहीं होने देगी…!”

 नीलिमा आ गई काम करने… मन लगाकर दिन भर मृणाल जी के इशारों पर नाचती रहती… घर की साफ सफाई, कपड़े, बर्तन, खाना, जो नहीं जानती वह पूछ पूछ कर… सब करती थी लड़की… बिल्कुल भी कामचोर नहीं थी… मृणाल जी तो उसके काम की मुरीद हो गई एक ही महीने में… अगर एक दिन भी नीलिमा छुट्टी मांग ले तो घर में तूफान खड़ा हो जाता था…!

 बहुत जतन से नीलिमा घर के साथ-साथ छोटे बच्चे का भी ख्याल रखती थी… धीरे-धीरे कब नीलिमा एक काम वाली से घर की सदस्य बनती चली गई पता ही नहीं चला… नीलिमा से नीलू… मृणाल जी भी उसके लाड़ में कोई कमी नहीं रखती थीं… गरम-गरम नाश्ता, चाय, खाना, सब टाइम पर सबके साथ… शुरू-शुरू थोड़ा हिचकिचाती थी नीलू… पर सब के अपनेपन से बार-बार जिद करने पर वह भी सहज हो गई…!

 मृणाल जी बड़े मनुहार से कहतीं.…” ले ना तू भी खा ले सबके साथ गरम-गरम… आजा तू शर्माती क्यों है ले…!

 नीलिमा का मिलिंद जी और मृणाल जी से एक सहज दिल का रिश्ता जुड़ गया था…अब वह नौकरानी नहीं लगती थी…!

 बेटी का ब्याह हो गया चली गई… दोनों बेटियों के जाने के बाद वीराने घर में दोनों दंपत्ति का एक ही सहारा थी नीलू… वह भी सब काम ऐसी लगन से करती जैसे वह उसका अपना ही काम हो…अपना ही घर हो…रोज सुबह से लेकर शाम तक मृणाल जी के साथ रहती… रात पड़ते पड़ते घर चली जाती… वैसे अब कोई जरूरत नहीं थी दिन भर नीलू की.…घर में था ही कौन… दो आदमी का काम था… वह भी दोनों बूढ़े लोग… आधा वक्त से ज्यादा तो वह भी बैठी टीवी ही देखती रहती… पर ना मिलिंद जी और ना ही मृणाल जी में से कोई उसे जाने को कहते… ना वह खुद जाती… एक तरह से घर की सदस्य बन गई थी वह…!

 समय बीतता गया… कुछ सालों बाद उसके गरीब मां बाप ने उसका भी ब्याह ठीक कर दिया… वह जिद लगाए थी कि उसे मेमसाब साब को छोड़कर नहीं जाना… मृणाल जी ने भी उसकी मां को बुलाकर बोल दिया.…” देखो अगर कहीं आसपास का लड़का मिले तो यहीं कर दो ना नीलू का ब्याह… कुछ पैसा अधिक लगे तो चिंता मत करना… मैं दूंगी सब खर्च…!”

 हुआ भी वही… मां ने नीलू का ब्याह पास पड़ोस में ही कर दिया… उसके साब मेमसाब का घर नहीं छूटा उससे…!

 पर शादी के बाद नीलिमा की जिम्मेदारियां भी बढ़ गई थीं… अब वह उतना समय मृणाल जी को नहीं दे पाती थी… उसकी असुविधा देखकर मृणाल जी ने उसे सुबह शाम आने की आज्ञा दे दी… अब बस सुबह आती… काम कर जाती… फिर शाम को आती फिर जाती…!

 मृणाल जी और मिलिंद जी को तो उससे बहुत प्यार था ही… ये बात वह भी अच्छे से जानती थी… वह जब जो मांग लेती… यहां तक की जो खाने का मन करता उसका वह भी मेमसाब को बता देती तो एक-दो दिन के अंदर उसे बना कर खिला ही देती.… उसे साथ ले जाने को भी दे देती… पर कितनी भी सुविधा देने के बाद भी अब नीलिमा पहले वाली नीलिमा नहीं रही थी…!

 उसे हर वक्त हड़बड़ी मची रहती थी… उसने कई जगह काम पकड़ लिए थे… वह समझदार भी हो गई थी और चालाक भी… यह बात मृणाल जी भी जान रही थीं… पर उसके प्यार का रंग इतना गहरा था…उससे दिल ऐसे बंध गया था… उसे वह अपनी बेटियों की तरह प्यार करने लगी थीं… उसकी हर चालों को…गलतियों को वह नजर अंदाज करती जा रही थीं…!

 नीलिमा एक साल के अंदर ही एक बच्चे की मां बन गई… अब काम पर भी अपने नन्हें बच्चे को लेकर आती… मृणाल जी तो उसकी देखभाल भी ऐसे करतीं जैसे उनका अपना ही नाती हो…दिन भर उसे अपने पास रखतीं…!

पर नीलू अब बदल चुकी थी… जिस नीलू पर भरोसा करके कभी मृणाल जी अपने घर की पूरी जिम्मेदारी सौंप निहाल हो जाती थीं… वह चीजें भी गायब करने लगी थी… कभी कुछ… कभी कुछ… खाने पीने की चीजों तक तो ठीक था… अब घर से छोटे-मोटे सामान भी गायब होने लगे थे…एक दिन तो ठाकुर जी की चांदी की तीन कटोरियों में से एक कटोरी ही गायब हो गई…मृणाल जी उसे अपनी खुशी से अब तक कितना कुछ दे चुकी थीं…पर उनकी आंखों में उनके ही घर में बार-बार धूल झोंका जा रहा था… घर में उसके अलावा और आता ही कौन था जिस पर शक किया जाए… इस बार मृणाल जी का मन टूट गया…!

 इतने दिनों से बार-बार की जा रही गलतियों को नजर अंदाज करने वाली मृणाल जी अब बिफर पड़ीं… उन्होंने साफ साफ कह दिया…” नीलू अब तू पहले वाली नीलिमा नहीं रही… जिसे हमने बिल्कुल अपना लिया था… हमने तो सोचा था तेरा हम लोगों से एक दिल का रिश्ता है… तू कभी हमारे साथ धोखा नहीं करेगी… पर यह सब गलत था… तूने मुझे ही ठग लिया… अब मैं कैसे तुझ पर भरोसा करूं बता…!

 नीलू सर झुकाए खड़ी थी कुछ ना बोली… उसे शायद अपनी गलती का एहसास हो गया था… मृणाल जी ने फिर कहा…” देख नीलिमा अगर तू ईमानदारी से पहले की तरह काम कर सकती है तो कर वरना छोड़ दे… कामवाली तो हमें कई मिल जाएंगी… तुझे तो घर का सदस्य बना कर एक रिश्ता जोड़ कर रखा था… अगर वही नहीं रहा तो क्या फर्क पड़ता है तू या कोई और…!”

 उसके बाद नीलिमा ने काम छोड़ दिया… कभी कभार दूर से दिख जाती तो मृणाल जी के सीने में अपनेपन की एक टीस उठ जाती और शायद नीलिमा के भी… पर यह दिल का रिश्ता टूट चुका था उसे दोबारा नहीं जोड़ा जा सका……!

स्वलिखित

रश्मि झा मिश्रा

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