व्यर्थ की तकरार – गीता वाधवानी : Moral stories in hindi

अनंत और अंबिका दोनों एक दूसरे से बहुत प्यारकरते थे। पढ़ाई पूरी होने के बाद दोनों ने अपने-अपने घरवालों से इस बारे में बात करनेका सोचा था। 

अंबिका को जॉब करने में कोई रुचि नहीं थी। वह होम मेकर ही बनना चाहती थी। कॉलेज में वह शार्प माइंड और हाजिर जवाबीके लिए मशहूर थी। अनंत को भी उसकी हाजिर जवाबी बहुत अच्छीलगती थी। अनंत अपने पापा का बिजनेस संभालनाचाहता था। उनका फ्लोरटाइल्स का बहुत बड़ा व्यापार था। 

अनंत और अंबिका के सारे दोस्तों को उनके प्यार केबारे में पता था और वे लोग यहभी जानते थे कि दोनों विवाह करना चाहतेहैं। एक बार सारे दोस्त मिलकर घूमने गए। वापसी में शाम के समय सड़क के किनारे एक गधा खड़ा था। उसे देखते ही अनंत को मजाक  सूझा। उसने कहा -“-देखो अंबिका, तुम्हारा रिश्तेदारखड़ा है।” 

अंबिकाने तुरंत कहा -“हां, ससुराल की तरफ से है।” 

अनंत और बाकी सब दोस्त खूब हंसे। अनंत ने  बुरा नहीं माना क्योंकि मजाक की शुरुआत उसी ने की थी। ऐसे हीं कभी-कभी मजाक, फिर बहस और फिर कभी-कभी तकरार हो जाती थी लेकिन थोड़ी देर बाद सब कुछ नॉर्मलहो जाता था। 

पढ़ाई खत्म होनेके बाद दोनों ने अपने परिवार में एक दूसरे के बारे में बताया। दोनों परिवारों ने बच्चोंको देख कर, उनसे बातचीत करके विवाहके लिए हामी भर दी। पहले धूमधाम से सगाई हुई और फिर विवाह। अनंत की एक छोटी बहन भी थी रिया। अंबिका जैसी सुंदर भाभी  पाकर वह भी बहुत खुशथी। 

घर गृहस्थी सुखपूर्वक चलनेलगी। अनंत के माता-पिता भी बहुत खुश थे। बस उन्हें एक ही बात थोड़ी खलती थी कि जब कभी किसी बात पर बहस होती थी तो अबिका चुप नहीं रहतीथी। अपनी बात को सही साबित करके ही रहतीथी। कई बार उसकी बात गलत भी होती थी पर वह अपने पक्ष को मजबूत करने में लगी रहती थी। 

एक बार राजनीति के समाचार सुनकर इसी तरह बहस छिड़ गई। अनंत एक पार्टी को सही कह रहा था तो अंबिका दूसरी पार्टीको। इसीबात पर दोनों लड़ पड़े। पापा जी को यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कहा-“राजनीतिक पार्टियों के चक्कर में तुम दोनों तकरार करके अपना रिश्ता क्यों खराब कर रहे हो? दोनों एक दूसरे को सॉरी बोलो और बात खत्म करो।” 

दोनों ने डांट खाकर एक दूसरेको सॉरी कहा। 

इसी तरह एक बार सास बहू वाला सीरियल चल रहा था। जो कि लोगों को बहुत पसंद था। पति-पत्नी और सास का सीन चल रहा था, जिसमें सास बहू को जली कटी सुन रही थी और उसकी शिकायत अपने बेटे से कर रही थी। बेटे को लगताहै कि मां सही कह रही है। 

इस सीन को लेकर अनंत और अंबिका में बहस शुरू हो जाती है। अनंत सीरियल के हीरो का पक्ष लेकर मां को सही कह रहाथा और अंबिका कह रही थी कि सीरियल वाली सास चाल चल रही है और वह गलत है, बहू सच्ची और सही है। बहस ने बढ़ाते बढ़ाते तकरार कारूप ले लिया। घर वालोंने बहुत समझाया कि तुम क्यों इस सीन को लेकर लड़ रहे हो। इसे मनोरंजनकी तरह देखो और भूल जाओ। लेकिन दोनों में से कोई चुप नहीं हो रहा था। 

अंबिका-“मम्मी जी, सारे मर्द एक जैसे ही होते हैं, इनको पत्नियां ही गलत नजर आती है।” 

अनंत यह सुनकर चिढ़ गया और बोला-“आखिर मैंने ऐसा क्या कह दिया, जो तुम मुझे सारे मर्दों जैसा कह रही हो।” 

दोनों एक दूसरे को ताने मार रहे थे। आखिरकार अनंत नाराज होकर ऊपर वाले कमरे मेंचला गया। ग्यारह, साढ़े ग्यारह तक वह डिनर करने के लिए नीचे नहींआया। अंबिका की सासने कहा-“जाओ अंबिका, अनंत को बुला लो।” 

अंबिकाने कहा-“खुद नाराज होकर गयाहै, खुदही आएगा, मैं क्यों जाऊं बुलाने?” 

अनंतको बुलाने रिया ऊपर गई। दरवाजा खटखटाने पर अनंत ने दरवाजा नहीं खोला। रिया घबराकर जोर-जोर से पुकारने लगी। आवाज सुनकर पापा ऊपर आए और किसी अनहोनी की आशंका से डर कर उन्होंने धक्के मार-मार कर दरवाजे की कुंडी तोड़ दी। पंखे से अनंत लटका हुआ था। पापा ने तुरंत बेड पर चढ़कर उसके गले में पड़ा फंदा काट दिया और अनंत बेड पर गिरा। तब तक रिया भाग कर सबसे ऊपरी मंजिल पर रहने वाले डॉक्टर अंकल को बुलाकर ले आई थी। 

डॉक्टर साहबने तुरंत इलाज शुरू कर दिया। उनके सही उपाय द्वारा अनंत बच गया। डॉक्टर साहब ने कहा- अनंत बच गया है क्योंकि उसके इस कदम को उठाए हुए कम समय हुआ था। सांसअभी चल रही थी।” 

अंबिका बहुत पछता रही थी और रो रही थी। अनंत अब खतरे से बाहर था। जब वह होश में आया तो उसने बताया कि” मैं अपनी गलती मानकर सबको सॉरी बोलने नीचेआ रहा था, तभी मैंने अंबिका की आवाज सुनी, मैं बुलाने क्यों जाऊं, नाराज होकर खुद गयाहै, खुदही आएगा। इतना सुनते ही मेरा पारा फिर से हाई हो गया और मैंने यह कदम उठाया।” 

अंबिका ने अनंतको और पूरे परिवार को सॉरी बोला। दोनों ने कहा-“अब हम कभी बहस और व्यर्थ की तकरार नहीं करेंगे और हमें लगा कि ऐसा फिर हो रहाहै तो बात को वही खत्म कर देंगे।” 

अंबिका अपनी गलती पर पछताते हुएं सोच रही थी कि ईश्वर का अनगिनत बार धन्यवाद कि अनंत की जान बच गयी वरनामैं इसके बिना कैसे जी पाती। अब कभी तकरार नहीं करूंगी। 

स्वरचित, अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

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