टीवी रिश्तों को जोड़ने का जरिया – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

आज जब राखी टीवी पर रामायण देख रही  थी तो सहसा अपने बचपन  में चली गई  

जब सब मोहल्ले वाले  साथ  में शटर वाली टीवी पर रामायण, महाभारत, रंगोली, चित्रहार और फिल्में देखते तो त्यौहार जैसा माहौल हो जाता था। जब  सब मिलकर हंसते, बोलते,खाते ,पीते हुए टीवी का आनंद लेते थे बहुत मजा आता था।  क्योंकि उस समय टीवी मोहल्ले के किसी एक या दो घरों में ही मिलती थी तो सब नियत समय पर टीवी वाले घर में इकट्ठा हो जाते थे पर जब आंधी या जोर से हवा चलती तो एंटीना हिलने से टीवी सिग्नल नही लेती और फिर  सब हिल जाते। ऊपर नीचे दौड़ते, चक्कर लगाते । कभी छत पर जाके एंटीना ठीक करते कभी टीवी का बटन घुमा घुमा कर देखते कभी जोर जोर से चिल्ला कर एक दूसरे से पूछते आई या नही आई  और कभी एंटीना पकड़ कर बैठते

टीवी आ जाती तो सब खुश और नही आती तो फिर एक दूसरे पर दोषारोपण करना शुरू पर इन सब में भी एक खास अपनापन था दिल का रिश्ता जो था सभी से कि कोई भी एक दूसरे से गुस्सा नही होता और वापस सब टीवी देखने में मशगूल हो जाते । और हद तो तब होती जब सीरियल शुरू होने से कुछ मिनट पहले लाइट चली जाती अब सब परेशान कोई मंत्र जपता कोई भगवान को याद करता कोई तो शर्त भी लगाता की लाइट आयेगी या नही और किस को क्या कीमत चुकानी पड़ेगी वो भी तय होता और राखी जैसे बच्चे जो कुछ नहीं कर पाते वो सबकी हां में हां मिलाते नजर आते

राखी मन ही मन बचपन को जी रही थी और मुस्कुरा रही थी तभी उसके दोनों बच्चे आए और टीवी के रिमोट को लेकर लड़ने लगे

बेटी टीनएज में थी तो उसको अपने पसंद की मूवी या वेब सीरीज़ देखनी होती थी जबकि बेटा 10 साल का था तो उसे अपने कार्टून या शॉर्ट्स देखने होते थे

राखी को समझ नहीं आता था कि दोनों सगे भाई बहन होकर भी एक दूसरे की पसंद से खुश नहीं थे जबकि उसके चारो बहन भाई(तीन बहन और एक भाई) एक दूसरे के लिए अपनी पसंद को दरकिनार कर देते थे

यहाँ तक कि मोहल्ले में दोस्त भी जिनसे खून का नहीं पर दिल का रिश्ता था, एक दूसरे पर जान न्यौछावर करते थे।

सबके घरों में टीवी नहीं होकर किसी किसी के यहाँ ही होता था पर मजाल है कभी कोई किसी को अपनी टीवी पर देखने के लिए मना करता हो बल्कि हर रविवार को सब इकट्ठा होकर एक ही टीवी पर देखते और खुश होते

कहने को तो एक ही टीवी होता था पर वो मनोरंजन करने के साथ साथ अनेक रिश्तों को बांधे रखने का काम भी बखूबी करता  था।  दादा दादी, ताऊ ताई, चाचा चाची, बहन भाई , लगभग सारे रिश्तेदार और यहां तक कि पड़ोसी भी  साथ में बैठकर एक साथ टीवी देखते थे क्योंकि पहले सारे कार्यक्रम पारिवारिक जो आते थे साफ सुथरे बिना अश्लीलता परोसे हुए ताकि साथ में देखने में किसी को असहज महसूस न हो। और सब एक दूसरे की पसंद का ख्याल भी करते थे और उसी के अनुरूप टीवी पर प्रोग्राम चलाया जाता । कभी कभार तो खाना भी इकट्ठे होकर ही खाते सब , लगता था जैसे रोज़ ही कोई त्योहार मना रहे हों 

 

राखी बच्चों को समझाती कि बेटा एक दूसरे की पसंद नापसंद का ख़्याल करोगे तो ही एक दूसरे से दिल का रिश्ता बनेगा वरना ये खून का रिश्ता मज़बूत भी नहीं हो पाएगा फिर तुम मेरे और मामा मौसी की तरह दूर रहकर भी पास कैसे रह पाओगे

राखी और उसके बहन भाई दूर भले ही थे पर दिल से हमेशा पास थे और उसके इसी प्यार का नतीजा था कि बच्चे भी अपने चचेरे और ममेरे ,मौसेरे भाई बहनों से बहुत नज़दीक थे

बच्चे थोड़ी देर लड़ते फिर एक दूसरे को दुःखी देखकर दुःखी हो जाते और कभी रूठते तो कभी मनाते। 

राखी को उनकी लड़ाई वाला प्यार देखकर अपना बचपन याद आ गया

ये तो अच्छा था कि राखी संयुक्त परिवार में पली बढ़ी थी इसलिए दिल से जुड़े रिश्तों की अहमियत समझती थी और टीवी से जुड़ी उनकी यादों ने अभी तक उन रिश्तों को जोड़ा हुआ था ।वो यदा कदा ही अपने सभी पुराने यार दोस्तों से मिल पाती थी पर जब भी मिलती अपनी पुरानी यादों को याद करके खूब हंसती मुस्कुराती

 

वरना आजकल तो..

 

    सब इसके विपरीत हो गया । आज तो एक घर के हर कमरे में अलग अलग  टीवी होता है। किसी को किसी से कोई लेना देना नही ।सब अपने हिसाब से प्रोग्राम देखते हैं अपनी अपनी टीवी पर ।आजकल सभी आयु वर्ग के हिसाब से प्रोग्राम बनाए जाते हैं 

बच्चों के अलग, मां बाप के अलग, दादी दादा  के अलग तो कोई करे भी क्या।और कभी एक साथ बैठकर टीवी देखने भी लगे तो कोई ऐसा अश्लील सीन आएगा कि न चाहते हुए भी सबको उठना पड़ जाता है।

    पहले जहां टीवी रिश्तों को जोड़ने का जरिया थी वहीं  आज रिश्तों में दूरी का कारण कहीं न कहीं टीवी भी है। क्योंकि आजकल बिजी लाइफ में एक खाना खाने का टाइम (लंच या डिनर)ही होता है जब पूरा परिवार साथ होता है । पर आजकल बच्चे तो बच्चे बड़े लोगों को भी खाना खाते वक्त टीवी देखनी होती है 

किसी को कार्टून तो किसी को न्यूज किसी को आस्था चैनल तो किसी को सीरियल (डेली सोप) । तो बस फिर चल देते हैं सब अपने अपने कमरों में अपने अपने खाने के साथ और फिर आपस में मेल मुलाकात हो ही नही पाती।

    और अब तो पहले की तरह कोई एंटीना ठीक करने का झंझट भी नही है डिश टीवी जो लगी है घरों पर। सबके टीवी पर अलग अलग सीरियल चलते है वो भी एक ही टाइम पर । रही सही कसर मोबाइल ने पूरी कर दी।जिनके पास एक से ज्यादा टीवी नही वो अपने  मोबाइल पर ही टीवी देखते हैं

    कभी कभी अपने बचपन की वो यादें बहुत याद आती हैं जब परिवार में टीवी एक और खुशियां अनेक  थीं पर आज टीवी  भले ही अनेक हो गए हों पर खुशियों में कमी ज़रूर हो गई है । परिवार , पड़ोसी, रिश्ते, नाते से हम लोग जहां बचपन में ही रूबरू हो गए वहीं हमारे बच्चे इन सब से लगभग अनजान है क्योंकि उन्होंने ऐसा माहोल ही नहीं देखा जो हमने देखा है संयुक्त परिवार का।

    दोस्तों शायद वो सुख सुविधाएं हमे न मिली हों जो हमारे बच्चों को मिल रही है पर फिर भी हमने बचपन को भरपूर जिया है दिल के  रिश्ते बनाए हैं जो बचपन से पचपन की उम्र तक साथ हैं । पर हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे बच्चों के जीवन में  इन दिल से बने रिश्तों का अभाव है।

    और  मुझे लगता है हमे उस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

 

कुछ पंक्तियों में अपनी बात रखना चाहूंगी_

 

जहां पहले  टीवी रिश्तों को जोड़ने का जरिया होती थी

वही अब हर रिश्ते की अपनी अलग टीवी होती 

दादा दादी जहां आस्था चैनल है देखते

वहीं बच्चे अपनी टीवी पर कार्टून चैनल देख खुश होते

मम्मी अपने सास बहू के सीरियल देखने में बिजी है 

तो पापा अपना क्रिकेट मैच एंजॉय है करते

सबकी पसंद अब अलग हो गई है

जिसके चलते रिश्तों में दूरी बढ़ गई है

टीवी का साइज जरूर बढ़ गया है

पर जिंदगी में खुशियों के रंगों का स्तर शायद घट गया है

साथ ही  दिल का रिश्ता अब इंसानों से ज्यादा सोशल मीडिया और गैजेट्स से जुड़  गया है

 

    आपको क्या लगता है ?

    अपने विचारों से ज़रूर अवगत कराइए

    धन्यवाद 

निशा जैन

 #दिल का रिश्ता

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