असली सुख –  तृप्ति उप्रेती

नमित ने आज फिर गुस्से में खाना नहीं खाया। यह लगभग रोज की बात हो गई थी। किशोर बेटे के ऐसे व्यवहार से मोहिता आहत हो जाती। वह और रमन उसे कई बार समझा चुके थे पर नमित का स्वभाव दिनों दिन बदलता जा रहा था। नमित मोहिता और रमन का इकलौता बेटा था। रमन … Read more

कैक्टस – सुनिता मिश्रा

दिदिया का फोन आया। दिदिया मेरी बड़ी बहिन।माँ तो मुझे दो वर्ष का दिदिया की गोद में छोड़ अनंत यात्रा पर चली गई।मेरे लिये तो माँ,बहिन जो भी मान लें, दिदिया ही थी। दिदिया उस समय पहिली कक्षा में पढ़ती होंगी।वो मुझे गोदी में लेकर अपने साथ स्कूल ले जाती। मुझे पास में बिठा लेती।कागज़ … Read more

डायरी – बिभा गुप्ता

रामदास बाबू को हमेशा अपनी डायरी में कुछ न कुछ लिखते देख मानसी कुछ समझ नहीं पाती थी कि उसके ससुर दिनभर आखिर उस डायरी में क्या लिखते रहते हैं।बहू को आते देख जब वे डायरी को अपने तकिये के नीचे छुपा लेते तो मानसी की जिज्ञासा और बढ़ जाती।उसे यकीन हो जाता कि उसके … Read more

सतरंगी सपने –  वीणा

 जिज्जी…ई कऊन नौकरी है जे मे सफेद साड़ी पहन के जाते हैं , एकदम्मे न अच्छा लगता है ई रंग..रंग होना चाहिए.. लाल , पीला , हरा , सतरंगी जे पहनो तो मन खिल जाय । ई का कि सुबह सुबह ही सफेद कपड़ा पहन के मन उदास कर लिए । सच कहती हूँ जिज्जी..हम … Read more

घुटन – नीलिमा सिंघल

निलांशा अनमने मन से काम किए जा रही थी जितनी तेजी से हाथ चल रहे थे उससे चौगुनी तेजी से दिमाग 5 साल हो गये विहान की पत्नि बने पर कुछ ऐसा हुआ ही नहीं कभी जब लगा हो विहान और उसका घर निलांशा का भी हो, माँ पापा की सहमति से निलांशा विहान की … Read more

कर्तब्य –अरुण कुमार अविनाश

” चेत सिंह।” इंस्पेक्टर साहब ने आवाज़ दी तो मैं चिक उठा कर अंदर आया। इंस्पेक्टर साहब ने खाना खा लिया था और अब वे हाथ धोकर हाथ-मुँह पोछ रहें थे – मुझें देखते ही उन्होंने टेबल पर पड़े टिफिन बॉक्स की ओर इशारा किया – ” बचा खाना काली को दे देना और ध्यान … Read more

नकुशा से आशा – सरला मेहता

” आशा बेटी ! प्रसाद बन गया हो तो आ जाओ। हम आरती कर लेते हैं। ” दादी ने पूजा घर से पुकारा। एक दादी ही तो  है जो माँ के गुज़रने के बाद उसका ध्यान रखती है। विमाता बिंदु के आने से आशा की खुशियों को मानो ग्रहण ही लग गया। उसने आशा को … Read more

पति के नाम एक पाती – सरला मेहता

सुनो जी, प्यार भरी लंबी उम्र,,, और क्या लिखूं,प्रिये प्रियतम  के नाम से कभी पुकारा ही नहीं। हाँ, पाँती लिखने ही बैठी तो आज सारी दिल की बातें लिख ही दूँगी। आप बहुत अच्छे हैं,अरे यह ‘आप’ संबोधन तो मेरे लिए दीवार ही बन गया है। आज तो मैं ‘तुम’ ही लिखूंगी,चाहो तो बुरा मान … Read more

मायका – भगवती सक्सेना गौड़

माँ तो सबकी प्यारी ही होती है, पर निर्मल को अपनी मां दुनिया की सबसे खूबसूरत , होशियार और प्यार की मूरत लगती थी। माँ के साथ लाड़ प्यार के दिन का कोटा पूरा करके ससुराल आ गयी थी, वो भी अब उस रूप को अपनी आत्मा में सहेजकर बेटियों पर लुटाने लगी थी। फिर … Read more

अनजानी धारणा – भगवती सक्सेना गौड़

सोसाइटी के एक फ्लैट में वर्मा जी साल भर से रहते थे। दोनो पति पत्नी की आदत थी, रात नौ बजे डिनर करके, दस बजे तक वो लोग बिस्तर पर आ जाते थे। सारे दोस्तो, रिश्तेदारों को पता था, उनके दरवाजे पर नौ बजे लॉक लग जायेगा। कई बार मज़ाक में कहते थे, “हम खाना … Read more

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