सतरंगी सपने –  वीणा

 जिज्जी…ई कऊन नौकरी है जे मे सफेद साड़ी पहन के जाते हैं , एकदम्मे न अच्छा लगता है ई रंग..रंग होना चाहिए.. लाल , पीला , हरा , सतरंगी जे पहनो तो मन खिल जाय । ई का कि सुबह सुबह ही सफेद कपड़ा पहन के मन उदास कर लिए । सच कहती हूँ जिज्जी..हम तो कबहुँ न पहनें ई सफेद और काला रंग। ऐसा लगता है जैसे दुनियाँ अन्धार हो गई है , शुभा आँखों में आँसू लिए बेला की कही बातें सोच रही थी । शुभा की देवरानी बेला ज्यादा पढ़ी लिखी तो न थी , पर शोख , चंचल और सुंदर होने की वजह से उसके सास ससुर ने उसे अपने छोटे बेटे के लिए पसंद कर लिया था बेला भी अपने नाम की तरह पूरे घर को अपनी चंचलता से महकाती रहती ,



पर बारह दिन पहले हुए एक हादसे ने बेला की दुनिया उजाड़ कर रख दी ,सारे रंग बिखर गए उसकी जिंदगी से ।जीती जागती पत्थर हो गई वह । तभी शुभा के कानों में अपनी चचिया सास की आवाज सुनाई पड़ी–आज. बारहवीं है ,आज से न पहनेगी ये रंगीन कपड़े , साज श्रृंगार अब शोभा नहीं देगा इसे । सुनकर दिल दहल उठा शुभा का । फूल सी बेला की कातर आँखें देख शुभा का हृदय चीत्कार कर उठा , जैसे वह कह रही हो.. जिज्जी , ई सफेद रंग हम कबहुँ न पहनेंगे , हमको तो लाल ,पीला ,सतरंगी रंग पसन्द है जिज्जी ।सोचते सोचते शुभा उठी और चचिया सास को बोली — चाची , बेला कभी नहीं पहनेगी सफेद कपड़े , उसकी दुनिया अँधेरी नहीं है ,बेला की आँखों में सतरंगी सपने हमेशा झिलमिलाते रहेंगे..उसे जीने दीजिए चाची । ईश्वर क्रूर हो सकता है उसके प्रति ,पर हम तो उस पर अपना स्नेह और प्रेम लुटा सकते हैं , कहते हुए शुभा उठी और बेला को सीने से लगा लिया उसके सपनों और जिंदगी में रंग भरने के लिए..

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