पगला कहीं का- रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi
लाला फकीर चंद की तंद्रा अब धीरे धीरे लौट रही थी। विलुप्त सा हो गया अहसास पुनर्जीवित हो रहा था। उन्हे लगा जैसे पूरे शरीर में आग सी लगी हुई है। ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी धधकती हुई भट्टी के निकट लेट रहे हैं। पहले धुंधला सा और धीरे धीरे कुछ स्पष्ट सा … Read more