भाभी का घर – नीरजा कृष्णा

भैया भाभी ने बहुत मेहनत और अरमानों सें छोटा सा बंगला बनवाया है… बाबूजी और अम्मा तो तरसते ही रह गए… बहुत इच्छा थी बेटे बहू के प्यारे से नीड़ को देखने की…वो चाह कर भी उनकी इच्छा पूरी नही कर पाए…उन दोनों की बीमारी… छोटी बहन के विवाह की जिम्मेदारी… अपने  दो बेटे और … Read more

दिल की व्यथा – डा. मधु आंधीवाल

कल तक खूब रंगो की बहार थी । आज फिर वही सन्नाटा । सब अपने फ्लैटों में बन्द । रेखा सोच रही थी । वह अपने गांव की होली का त्यौहार एक हफ्ता पहले और एक हफ्ता बाद तक बच्चों की तो लाटरी निकल आती थी पर इन बड़े शहरों में त्यौहार कम मनते हैं … Read more

एक कदम का फासला – गुरविन्दर टूटेजा

********************* कल बॉलकनी में खड़ी थी तो…. नज़ारा देख मन में उठे कई सवाल  थे….!!! मॉल से निकले पैसे वालों के… गुब्बारे वाले के साथ व्यवहार को देख हम बेहाल थे….!!! बच्चे की जिद्द पर गुब्बारे वाले की तरफ इशारा करके पूछा…. कितने का गुब्बारा है…?? गुब्बारे वाला दौड़कर आगे आया और बोला….बीस रूपये का … Read more

बादल के मन की व्यथा – मीनू जाएसवाल

हम सब बादलों को देखकर कितने खुश हो जाते हैं जैसे मन में हरियाली सी छा गई हो,खुशी से मन झूमने लगता है और हम चाहते हैं कि बादल यही बरस जाए ,तो तन और मन दोनों खुश हो जाएं अच्छा लगता है उनको देखना उनकी अलग-अलग आकृतियां बनाना और ना जाने कैसी कैसी फीलिंग … Read more

इंसानियत का फ़र्ज़ – रेणु गुप्ता

“मम्मा, मैंने आपसे कल भी कहा था, मैं ऐनी आंटी और उनकी बेटियों को इस हालत में छोड़कर इंडिया नहीं लौटूंगी। फिर आप मुझे यहां से निकालने के लिए इंडियन ऐंबेसी से बार-बार बातें क्यों कर रही हैं? यहाँ अंकल के बिना आंटी की हालत बहुत खराब है। वह बहुत कमजोर दिल की हैं। हर … Read more

माएके का ज़ख्म – अनुपमा

मां बार बार फोन कर रही थी इतने सालों से देखा नही तुझे मालती और बच्चों को , आ जा इस बार फिर पता नही मुलाकात हो या न हो । मालती हां मां आती हूं जल्दी ही ये कह कर फोन रख देती थी ।  ये सिलसिला पिछले दस सालों से चल रहा था … Read more

मैं हूँ न – प्रीति आनंद अस्थाना

***** “अरे तुमने रामेश्वर बाबू के बारे में सुना? बेचारे बहुत परेशान हैं आजकल!” रामेश्वर बाबू? ये नाम तो पुष्कर को  जाना-पहचाना लग रहा था। वही तो नहीं जिन्होंने आज से दस वर्ष पहले उसकी मदद की थी? पूरी कहानी तैर-सी गई आँखों के सामने! उसका इंटरव्यू था दिल्ली में, उसके लिए उसे कुछ सर्टिफिकेट्स … Read more

मन के भाव –  माता प्रसाद दुबे

विधा- संस्मरण – पांच वर्ष पहले की बात है। मैं अपने कार्य से हफ़्ते में दो बार लखनऊ से कानपुर तक सफर करता था। सुबह जाकर शाम को वापस लोकल ट्रेन से आता था।   एक दिन ट्रेन लेट थी। मैं लखनऊ के मानक नगर स्टेशन पर बेंच पर बैठा ट्रेन का इंतजार कर रहा … Read more

मायका -पिंकी नारंग

कब आ रही है हमारी बिटिया रानी? इस बार आओ तो कुछ ज्यादा दिन के लिए आना |यूँ पल मे आना पल मे जाना नही भाता हमें, सुषमा फ़ोन पर बेटी से दुलार करते हुए कह रही थी |      ठीक है माँ ज्यादा दिन की छुट्टी ले कर आउंगी वैसे कभी माँ का मन … Read more

बचपन की चोरी – अंजु पी केशव

 अब बचपन की चोरी को चोरी कहना भी कहाँ तक उचित है भई…. शरारत कहिए,, मुसीबत कहिए, गनीमत कहिए पर चोरी तो मत कहिए। अब कौन सा संविधान की मर्यादा भंग कर दी जो पेड़ से दो-एक अमरूद तोड़ लिए या पेड़ से गिरी हुई अमिया बटोर ली। रहे रास्त कभी किसी के बगीचे के … Read more

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