मायका -पिंकी नारंग

कब आ रही है हमारी बिटिया रानी? इस बार आओ तो कुछ ज्यादा दिन के लिए आना |यूँ पल मे आना पल मे जाना नही भाता हमें, सुषमा फ़ोन पर बेटी से दुलार करते हुए कह रही थी |

 

   ठीक है माँ ज्यादा दिन की छुट्टी ले कर आउंगी वैसे कभी माँ का मन भरता भी है बेटी से और अदा खिलखिला कर हॅसने लगी और हॅसते हॅसते अचानक से सीरियस हो कर सुषमा से कहने लगी “माँ एक बात पुछू नाराज़ तो नही होगी, कल निम्मो बुआ मिली थी बाजार मे एक ही शहर मे है कभी कभी मुलाक़ात हो जाती है, बहुत कमजोर हो गई है खूब प्यार कर रही थी मुझे बात करते करते आँखे भर आ रही थी |मुझे कह रही थी जब मायके जाऊ तो उन्हें एक दो दिन पहले फ़ोन कर दू, अपने हाथ के बने बेसन के लड्डू पापा के लिए भेजना चाह रही थी |

कह रही थी उनके भाई को बहुत पसंद है |”

   मैंने भी कह दिया बुआ इस बार आप भी चलिए ना मेरे साथ कानपुर वो आपका भी तो मायका है, माँ जानती है मायके के नाम से वो मुँह दूसरी तरफ करके दुपट्टे से अपनी गीली आँखे पोंछने लगी |

सच माँ मुझे एहसास हुआ दादी दादा जी के जाने के बाद तो बुआ का मायका जैसे छूट ही गया और ना तो पापा और ना ही आपने बुआ को कभी ऐसे बुलाया जैसे आप दोनों मुझे बुलाते है |क्या मायका सिर्फ पेरेंट्स के रहने तक होता है? अगर ऐसा है तो मुझे भी इस कल के लिए तैयार रहना चाहिए क्यूंकि भईया भी…… रोते हुए अदा ने फ़ोन रख दिया |

 

   बेटी की बातों ने सुषमा को सोचने पर विवश कर दिया था क्या वो सच मे ऐसे समाज की नींव रख रही है सासुमां बाउजी के रहते दीदी की हंसी कितनी गूंजती थी इस घर मे, वो भूल गई थी ये घर अगर उसकी बेटी का मायका है तो इस घर की दूसरी बेटी उसकी नन्द भी है |

फिर से अपने घर मे बेटियों की हंसी सुनने के लिए जब उसने अपनी नन्द को फ़ोन किया तो भाभी की आवाज़ सुनकर नन्द सोमैया का गला भर आया |सुषमा ने भी हंसते हुए कहा “दीदी बेसन के लड्डू ज्यादा बनाना अब मै भी खाती हूँ पर खाती सिर्फ आपके हाथों से हूँ इसलिए जल्दी आना अपने मायके |”

दोनों की भीगी भीगी हंसीसारे माहौल मे गूंजने लगी |

पिंकी नारंग

मौलिक

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