इंसानियत का फ़र्ज़ – रेणु गुप्ता

“मम्मा, मैंने आपसे कल भी कहा था, मैं ऐनी आंटी और उनकी बेटियों को इस हालत में छोड़कर इंडिया नहीं लौटूंगी। फिर आप मुझे यहां से निकालने के लिए इंडियन ऐंबेसी से बार-बार बातें क्यों कर रही हैं? यहाँ अंकल के बिना आंटी की हालत बहुत खराब है। वह बहुत कमजोर दिल की हैं। हर समय घबराई हुई रोती रहती हैं। उन्हें और उनकी तीनों बेटियों को मैं ही संभाल रही हूं।

अंकल के यूक्रेन की सेना जॉयेन करने से पहले मैंने उनसे प्रौमिज़ की थी, कि मैं उनके वापस लौटने तक आंटी और बच्चों का ध्यान रखूंगी। तो आप ही बताइये, मैं उन्हें यूं अकेला छोड़ कर कैसे आजाऊं?” कीव में रह रही मेडीकल छात्रा अनाहिता ने रूस और यूक्रेन में छिड़ी लड़ाई के दौरान फ़ोन पर अपनी मां से कहा।

“बेटा, तू समझती क्यों नहीं? भयंकर जंग छिड़ी हुई है। कीव के हालात दिन पर दिन बिगड़ते जा रहे हैं। जगह जगह सीरियल ब्लास्ट हो रहे हैं। तेरी जान को खतरा है बेटा। पापा के गुज़र जाने के बाद तू ही मेरे  जीने का इकलौता सहारा है। तुझे कुछ हो गया, तो मैं जीते जी मर जाऊंगी। तुझे उस गैर परिवार की चिंता है, मेरी नहीं? इतने से दिनों में वे तेरे सगे हो गए और मैं पराई?” अनाहिता की मां ने धार धार रोते बिलखते उससे कहा।



“याद करो मां, जब मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में मुझे रूम नहीं मिला था, तो आंटी ने अंकल की मर्जी के खिलाफ जाकर मुझे अपने घर में रखा। मैं आपको इतनी बार तो कह चुकी हूं, आंटी बिल्कुल आप की तरह मेरा ख्याल रखती हैं। इतनी अच्छी हैं, कि पूछो मत। अपनी बेटियों और मुझ में बिल्कुल भेदभाव नहीं करतीं। पहले मुझे खाने को देती हैं, फिर खुद खाती हैं। मैंने अंकल से वादा किया था, मैं मरते दम तक आंटी और उनकी बेटियों का साथ नहीं छोडूंगी। अब उनसे किए वायदे का मान तो रखना है न मम्मा मुझे?

प्लीज मम्मा, आपने और पापा ने ही तो बचपन से मुझे सीख दी है, इंसानियत से बढ़कर कुछ नहीं। डरिए मत, मुझे कुछ नहीं होगा। आपको तो मुझ पर फ़ख्र होना चाहिए कि मैं आप दोनों के सिखाए रास्ते पर चल रही हूं।”

बेटी के जज़्बे  को देखकर मां का सीना गर्व से फूल आया।

आंखों से बहते आंसुओं के बीच वह बुदबुदाईं, “जीती रह मेरी बिटिया। इंसानियत का फ़र्ज़ सबसे पहले, और सब बाद में।”

रेणु गुप्ता

जयपुर

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