बादल के मन की व्यथा – मीनू जाएसवाल

हम सब बादलों को देखकर कितने खुश हो जाते हैं जैसे मन में हरियाली सी छा गई हो,खुशी से मन झूमने लगता है और हम चाहते हैं कि बादल यही बरस जाए ,तो तन और मन दोनों खुश हो जाएं अच्छा लगता है उनको देखना उनकी अलग-अलग आकृतियां बनाना और ना जाने कैसी कैसी फीलिंग मन में आने लगती हैं, यह तो थी इंसान के मन की इच्छा, और अब बादल क्या सोचता होगा क्या महसूस करता होगा ,बस यही जानने के लिए मैं कुछ देर के लिए बादल बन गई और उसकी जैसे सोचने लगी,


मैं बादल आकाश में इधर-उधर घूमता हुआ बिना किसी बंधनों के यहां वहां आता जाता कभी सूरज के साथ आंखमिचोली करता तो कभी गड़गड़ा कर उसे जोर जोर से आवाज लगाकर डराने की कोशिश करता , तो कभी शांत हो जाता है एक दम शांत…. ऐसे ही कभी चांद को भी परेशान करता और उसे भी जोर जोर से आवाज करके डराने लगता, जब वह मेरी आवाज सुनता ,तो मेरे ही पीछे छिप जाता यह देख कर मैं मन ही मन खूब इतराता और जोर जोर से आवाज करता और बहुत खुश हो जाता …..पर जब मेरा ध्यान उन लोगों की तरफ जाता,जो मुझे आशा भरी नजरों से देखते हैं , तो कोई उम्मीद भरी नजरों से खुश होकर मुझे देखता और मन ही मन मेरे बरसने का इंतजार करता, तो कोई किसान अपनी फसलों के लिए मुझसे बरसने को कहता, यह सब मैं देखता रहता और कभी कभी तो दो प्यार करने वालों की दिल की धड़कन भी बन जाता यह सब देखने के बाद मन तो करता सब को खुश कर दू और एक बार जी खोलकर झमाझम बरस जाऊं ,लेकिन तभी यह ख्याल मन में आता कि कभी तो मै बहुतों के लिए परेशानी का भी सबब बन जाता हूं, कहीं  तो मेरी वजह से ट्रैफिक जाम ,तो कहीं कोई दुर्घटना हो जाती है, और जो लोग सड़क पर झुगियों में रहते है उनके लिए परेशानी का भी सबब बन जाता,यह सब देख सोच मे पड़ जाता हू कि मैं बरसो या ना बरसो, पर यह तो मेरे हाथ में भी नहीं है …कभी-कभी तो तेज हवाओं के झोंके आकर मुझे गले से लगा लेते और अपने साथ ही ले जाते, और मैं भी बेबस होकर उनके साथ हवा में बह निकलता और कहीं दूर जाकर बरस जाता…. बस यहीं आकर मेरा भी वजूद खत्म हो जाता, और फिर इंतजार बादल बनने…..

 

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