काश! बेटी की बातों में ना आती – तृप्ति उप्रेती
“चाय बना दूं”? सुरभि जी ने पास बैठे दिनकर जी से पूछा। “इच्छा तो नहीं है। तुम पियोगी तो थोड़ी मैं भी पी लूंगा”। दिनकर जी अखबार समेटते हुए बोले। सुरभि घुटनों पर हाथ रखकर धीरे-धीरे उठी और रसोई में जाकर चाय बनाने लगी। सर्दियां शुरू हो चली थी। ऐसे में उनके जोड़ों का दर्द … Read more