यादें – उमा वर्मा

आज मई की चौबीस तारीख है ।मेरे पति की बीसवीं बरसी।लगता है अभी कल ही की बात है ।समय कितना जल्दी बीत गया है ।वह दिन भुलाएँ तो कैसे? सुबह के आठ ही बजे थे पर उस दिन का सूरज मेरे लिए डूब चुका था ।सुबह उठे तो मैंने उन्हें  सहारा देकर  मुंह धुलाया।बाथरूम ले गई और नाश्ता करने के बाद दवा खिलाया ।कुछ दिनों से वे बीमार चल रहे थे ।फिर कहा,मै अपने बेटे से बात करना चाहता हूँ ।बुला दो उसे ।मैंने बेटे को कहा ” पापा से मिल लो ” वह तुरंत पास पहुंचा ।दुनिया जहान की बात हुई दोनों में ।घर गृहस्थी, बैंक, मकान की रख रखाव की तमाम बातें ।फिर बेटा ऑफिस  चला गया ।मै कुछ काम से दूसरे कमरे में गयी ।वापस लौटी तो वे जा चुके थे अनंत  की ओर ।वे नहीं रहे।पल भर में मेरी दुनिया उजाड़ हो गई ।मै जोर जोर से चिल्लाने लगी ।कमरे से बहू दौड़कर आई ” क्या हो गया ” कहकर वह भी रोने लगी ।फिर परिवार और मुहल्ले के बहुत लोग आ गए ।कुछ ही देर में इनको ले जाने की तैयारी होने लगी ।तभी किसी ने मेरे माथे पर एक लोटा पानी डाल दिया ।मेरा सारा  सिन्दूर धुल कर बाहर आने लगा ।मै कुछ समझ नहीं पाई थी ।जो मेरे लिए  चाँद  सितारे तोड़ कर लाने की बात  कहते, वे खुद सितारों में  गुम हो गये ।उनकी अंतिम विदाई हो गई ।

जिनके बिना  जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे अब उन्ही के बिना  जीवन जीना होगा ।कैसा यह नियति का खेल था ।शाम तक बहुत सारे लोग चले गये ।मै बस रोती रही ।इनको खोजते रही,पर अब ये कहाँ मिलने वाले थे ।मेरी तो दुनिया उजाड़ हो गई थी ।फिर रीति रिवाज का सिलसिला शुरू हो गया ।इसी बीच इनके भतीजे की शादी की बात चलने लगी जो कि पहले से चल रहीथी ।तीन दिन बाद ही शादी का कालक्रम रखा गया ।शादी मंदिर में होगी, यही तय किया गया ।परिवार के कुछ लोग लज्जित हो गये और शादी में नहीं गये।कुछ लोग गये भी ।पर मेरे लिए यह दुखद था।गमी के माहौल में शादी ।लोगों ने कहा- सूतक में शादी? क्यो, और कैसे? मै मूक बनी सब कुछ देख और सुन रही थी ।शादी वाले दिन मंदिर से मिठाई का पैकेट आया ।बहू और बेटी ने गुस्से में कहा ” हमारे यहाँ दुख का कारण है, यह मिठाई  किस खुशी में  आया ।” फिर जीजी ने डब्बे से एक टुकड़ा मेरे  मुंह में डाल दिया, मै क्या करती ।फिर मेरी बहू और बेटी ने गुस्से में कहा ” अम्मा पगला गयीं हैं ” मिठाई खा रही है ।तेरहवीं बीत गयी,सब कुछ खत्म हो गया ।



मेरे पति बेदर्दी से मुझे छोड़ कर चले गये ।मै दिन रात गम में डूबी रहती ।न खाने का होश था न सोने की सुधि थी ।साल बीत गए ।मै कमजोर हो गई ।तभी लगा किसी ने  अन्दर से आदेश दिया हो ।मरने वालों के साथ तो मरा नहीं जा सकता है, जबतक  जीवन है उसका  निबाह तो करना ही पड़ेगा ।मै बिस्तर पर चली गयी तो  कौन  सेवा  करेगा, परिवार तो  छोड़ नहीं देंगे  फिर भी क्या यह ठीक  होगा? मन में एक रोशनी जगी।अपने पर  ध्यान देना चाहिए ।और मेरी जिंदगी नये सिरे से शुरू हो गई ।समय के साथ नाशता, खाना, सोना सब कुछ ठीक होने लगा ।परिवार और बच्चों में  मन लगाने लगी।सब कुछ तो  उन्ही का है ।मै ढंग से कपड़े पहनती, बाल संवार ती।कुछ लोगों ने कहा वाह बहुत टिपटाप से रहती हैं ।तो  क्या करें? गन्दा रहें, बाल उलझाये  रहें? तभी मेरे दुख  का सबूत  मिलेगा? सुख और दुख  तो खुद महसूस करने की बात है आज इतने साल बीत चुके हैं ।सभी सुखी है पर मन में उस समय की शादी का आज भी मलाल है ।लोग अब भी पूछते हैं मुझसे ” आप के यहाँ सूतक में शादी होता है क्या, अपने चाचा थे दस दिन बाद ही शादी करते ।मै जवाब नहीं दे पाती।आज का यह लेख मेरे पति की बीसवीं याद में उन्ही को समर्पित  ।वे आज भी मेरे  दिल में जिन्दा हैं ।

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