अरमानों की पतंग – रीता मिश्रा तिवारी

निशा जैसे ही तैयार होकर नीचे आई तो नमन ने कहा । सुबह सुबह कहां जा रही हो , आज तो सन्डे है न दीदी ? हां तो…मैं कहां जाती हूं क्या करती हूं , तू पूछने वाला कौन है ? तेरा प्यारा भाई जिसे तू बहुत बहुत प्यार करती है । हां चल_चल ठीक … Read more

भटकन – उर्मिला शर्मा 

     “ऐ अम्माजी बबुनी नहीं दिख रही हैं। आप देखी हैं का। भोरे से नहीं दिख रही हैं। थोड़ा आटा सानना है।” – बेबी ने अपनी सास से पूछा। “नाहीं दुलहिन हमहूँ  भोरे से खोज रहे हैं। कब से ठंढा तेल मांग रहे हैं, सिर में लगाने वास्ते।”- खाट से ही गौरी ने जवाब दिया।  “ऐ … Read more

सहनशक्ति – कंचन श्रीवास्तव

पारिवारिक कलह इंसान को तोड़के रख देती है। हां ठीक ही कहा , बाहरियों से तो आदमी लड़ सकता है पर अपनों से  नहीं।भाई लड़े भी तो कैसे ,बड़े हैं तो भी सुनो ,छोटे है तो भी। इसलिए सिर्फ अपने भीतर ही मंथन करो और मुस्कुराते रहो। यही कहानी हर घर की है पर दूसरों … Read more

लहसुन की चटनी – नीरजा कृष्णा

माधवी अपने बच्चों के पास आई हुई थीं। बेटा बहू दोनों डाक्टर… दोनों ही अति व्यस्त। चाह कर भी माँ के पास बैठने का समय नहीं निकाल पाते थे पर घर में उनके लिए पूरी सुखसुविधाओं का प्रबन्ध था। रमा चौबीस घंटे उनकी सेवा में थी। आज सुबह से वो मम्मी जी के उखड़े मूड … Read more

हैसियत – माता प्रसाद दुबे,

तीन साल बाद प्रकाश लखनऊ आया था। अपने बड़े भाई रामकुमार के घर,पांच वर्ष पहले रामकुमार ने लखनऊ मे प्लाट खरीद लिया था। और एक आलीशान घर बनवाकर वे अपने परिवार के साथ यही बस गये थे। गांव वाले घर मे प्रकाश अपने परिवार के साथ रहता था। रामकुमार सरकारी नौकरी करते थे। प्रकाश और … Read more

मेरी भोली भाली बेटी – सुषमा यादव

एक दिन मैं अपनी दोनों बेटियों के साथ ग्रुप वीडियो कालिंग कर रही थी,, बातों, बातों में दोनों कहने लगी कि,याद है , मम्मी ने बचपन में हमें कितना मारा था,, कभी, हाथों से, तो कभी चिमटे से,, और हां बेलन से भी,, रोटी बनाते, बनाते,, मैं हंसने लगी,अरे,,पढ़ाई के लिए ही तो मारा था,,अगर … Read more

बदलती आदतें – मीना माहेश्वरी

परिवर्तन एक बहुत ही धीमी गति से चलने वाली सहज प्रक्रिया है, कुछ परिवर्तन ऐच्छिक होते हैं तो कुछ परिस्तिथिवश थोप दिए जाते हैं, और कब वह हमारी आदतों में शुमार हो जातें है हमें पता ही नही चलता।   मैं बचपन से ही बहुत खुले माहौल में रही थी, हमारे यहां किसी तरह की कोई … Read more

बलात्कार – प्रीती सक्सेना

बलात्कार शब्द सुनते ही हमारे दिमाग में तुरंत एक ऐसी लड़की या महिला की तस्वीर सामने आ जाती है, जिसकी मर्जी के बिना उसकी इज्जत लूटी गई हो, उसके साथ जबरदस्ती की गई हो, पर क्या बलात्कार देह के साथ ही होता है , नहीं मन के साथ भी हो सकता है, होता है और … Read more

हार जीत – रीता मिश्रा तिवारी

कितनी अच्छी हवा आ रही है न मम्मा… ये लो चाय और चाय के साथ हवा भी पियो…और हां, हम लोग न कल पूरी जा रहे हैं। श्रुति कह कर चली गई। पुरी और मुस्कुराती रेवती जी अतीत की दुनिया में विचरने लगी। समर आकर कहता है ,मम्मा gm(good morning) आज जल्दी जाग गया है? … Read more

” दूजा ब्याह” – उषा गुप्ता

“अरे , बहुत बुरा हुआ !” “कोई उम्र नहीं थी उनकी …पर यह कैंसर किसे छोड़ता है ?” “घर में कोई औरत नहीं बची ,कैसे घर चलेगा ?” “बड़ा बेटा-बहू विदेश में है ।यहाँ बस छोटा बेटा और मिस्टर श्रीवास्तव ही बचे हैं ।” यह खुसर-पुसर चल रही थी पांचवें माले पर रहने वाली मिसेज … Read more

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