अरमानों की पतंग – रीता मिश्रा तिवारी

निशा जैसे ही तैयार होकर नीचे आई तो नमन ने कहा ।

सुबह सुबह कहां जा रही हो , आज तो सन्डे है न दीदी ?

हां तो…मैं कहां जाती हूं क्या करती हूं , तू पूछने वाला कौन है ?

तेरा प्यारा भाई जिसे तू बहुत बहुत प्यार करती है ।

हां चल_चल ठीक है।

क्या ठीक है बता…मम्मी सब्ज़ी लाने गई है आकर तेरे लिए पूछेगी तो क्या कहूं ?

निशा पास आई और नमन के नाक को खींचा फिर गाल को थपथपाकर बोली , कहना फ्रेंड के साथ पिकनिक पर गई है।


पिकनिक कहां पर है और कौन सी फ्रेंड ?

नमू ! बहुत सवाल करता है । वो…. शिल्पा है न उसी के साथ जा रही हूं ।

अच्छा..।

तो अब जाऊं सरकार…।

हा ह ह ह ह हा दोनो खिलखिलाकर हंस पड़े ।

हां अब जाओ और मोबाइल पर पबजी खेलने लगा।

काफी समय जब हो गया तो मम्मी की बैचैनी बढ़ने लगी । फोन भी नहीं लग रहा था। चिंता में घुली जा रही थी रात के एक बज गए थे पर अभी तक निशा वापस नहीं लौटी थी।

सोफे पर बैठे बैठे सोचते हुए मम्मी की आंखें लग गई तभी..

टिंग टॉग, टिंग टॉग  मम्मी जल्दी उठकर दरवाजा खोली तो निशा लड़खड़ाते कदमों से अंदर आई , और मम्मी के सवालों का जवाब दिए बिना अपने कमरे में चली गई और दरवाजा बंद कर दिया।

दीदी अब चुप चुप रहने लगी थी , किसी से बात नहीं करती थी। समय से ऑफिस जाती आती काम भर ही बात करती।

मैं सोचने लगा हमेशा खुश रहने वाली दीदी को अचानक क्या हुआ जो चुप हो गई । कोई तो बात है…मम्मी के पूछने पर भी सब ठीक है कह देती । हमेशा कमरे में ही रहती थी।

हम सबके साथ बैठकर अब टीवी भी नहीं देखती थी । कुछ तो बात है पता करना होगा ।

एक रात दीदी के रूम से रोने की आवाज़ सुन मैं दरवाजे के पास खड़ा सुनने लगा , पर…कुछ समझ नहीं आया तो मैंने आवाज़ लगाई दीदी..दीदी ।

दीदी ने दरवाजा खोला  “नमू तू कोई काम था”?

रोने से उसकी आँखें लाल लाल सूज कर बड़ी हो गई थी।

वही तो..मैं भी पूछ रहा हूं क्या हुआ ? आंखें क्यूं सूजी हुई है ? रो क्यूं रही हो ?


कुछ नहीं भाई..।

मैं दीदी की बांह पकड़ कर कमरे के अंदर आ गया और पलंग पर बिठाते हुए कहा चल अब  बता क्या बात है छोटा हूं पर नासमझ नहीं जो इतना भी ना समझूं ।

नमू ! पहले वादा कर किसी से कुछ नहीं कहेगा ।

ठीक है वादा ! अब बता…।

नमू ! उस दिन मैं पिकनिक में शिल्पा के साथ नहीं ,संजय के साथ गई थी।

संजय ! ये कौन है ?

वो मेरे ही ऑफिस में काम करता है । हम एक दूसरे को पसंद बहुत करते थे ; न जाने कब हमें प्यार हो गया पर… पर…

पर क्या दीदी ! बोलो पर क्या…?

रोते हुए बोली..मैं समझती थी वो भी मुझे प्यार करता है पर नहीं .. मैं गलत सोचती थी। उस दिन वो मेरे जूस में नशीली दवा मिलाकर….।

मैं..मैं मां बनने वाली हूं ।

वो ऑफिस भी नहीं आता है । उसका फोन ऑफ आ रहा है । पता की तो मालूम हुआ वो नौकरी छोड़ दिया है ।

उसके डेरे पर भी गई थी , तो वॉचमैन ने बताया दूसरे किसी बड़े शहर  में उसको नौकरी मिल गई है। किस शहर में नहीं पता ।

वो… वो मुझे धोखा दे गया नमू…और फफक फफक कर रो पड़ी ।

मैंने अपने जीवन की डोर उसके दिल से जोड़ ली थी । उसे अपना जीवनसाथी मानती थी । कितने सारे सपने उसके साथ मिलकर देखे थे । कितने वादे किए थे ।

सब झूठा वादा किया उसने । क्यूं ! क्यूं नमू ! क्यूं ऐसा किया उसने मेरे साथ ।


मैं मम्मी को बताने वाली थी ।

उसने भी कहा था की वो अपने मम्मी पापा को शादी के लिए मना लिया है । फिर क्यूं किया ऐसा…मैं तो उससे सच्चा प्यार करती थी न भाई ।

झूट क्यूं बोला ऐसा क्यूं  किया उसने मेरे साथ । सिसकते हुए बोली ।

अब… अब तू बता मेरे भाई मैं क्या करूं मेरे अरमानों के पतंग की डोर तो टूट गई ।

टूट नहीं गई दीदी…तूने जिस पतंग को पसंद कर अपने अरमानों की डोर बांधी थी । जिसे दिल में बसाया था । वो तो तुम्हारी जिंदगी की पतंग को काट कर कहीं दूर उड़

गया ।

दरवाजे पर खड़ी मम्मी सब कुछ सुन ली थी ।

अंदर आकर बेटी को गले से लगाया और शांत गंभीर ठहरी आवाज से ढाढस बंधाते हुए कहा । मैंने कहा था की ये दुनिया बड़ी खराब है ।

कभी भी किसी पर आंख मूंद कर  भरोसा नहीं करना चाहिए । जाने कब कहां किस रूप में शिकारी शिकार की तलाश में आए और शिकार करके भाग जाय..।

पर आज के बच्चे बड़ों की बात सुनते कहां है उनकी बातें उन्हें कांटों की तरह चुभते हैं तो , अब रोने और पछताने से क्या होगा । जब कांटे खुद से चुभोए है तो घाव का दर्द तो सबको सहना है ।

मेरे गुनाह माफी के लायक नहीं है मां ! मैने तुम्हारी बात न मानकर बहुत बड़ी गलती है । मुझे माफ कर दो । जो कहोगी जो भी सजा दोगी मंजूर है ।

मां उसे डॉक्टर के पास ले गई । सब ठीक हो जाने के कुछ महीनों बाद धूमधाम से उसकी शादी कर दी गई।

मौलिक स्वरचित

रीता मिश्रा तिवारी

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