भटकन – उर्मिला शर्मा 

     “ऐ अम्माजी बबुनी नहीं दिख रही हैं। आप देखी हैं का। भोरे से नहीं दिख रही हैं। थोड़ा आटा सानना है।” – बेबी ने अपनी सास से पूछा।

“नाहीं दुलहिन हमहूँ  भोरे से खोज रहे हैं। कब से ठंढा तेल मांग रहे हैं, सिर में लगाने वास्ते।”- खाट से ही गौरी ने जवाब दिया। 

“ऐ भोला, चिंटू थोड़ा फुआ को बुलाओ तो। तुमने देखा है का।” – बेबी ने कहा।

“नाहीं अम्मा फुआ को हम कब से खोज रहे हैं, होमवर्क बनवाने के लिए।” – सात वर्षीय भोला ने कहा। 

सुबह के नौ बजने को आये थे लेकिन राधा का कहीं आता- पता नहीं था। उसका बड़ा भाई दिनेश तो आठ बजे ही चला गया था। वह गांव के चट्टी पर दवा- दुकान में सेल्समेन था। 

उसके बाबूजी भी खेत पर जा चुके हैं। दूसरा भाई सुरेश दिल्ली में एक फैक्टरी में काम करता था। दो भाइयों की छोटी बहन राधा सबकी दुलारी थी। पढ़ने में भी अच्छी थी। अतः भाईयों ने हमेशा उसे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे। खासकर दिनेश जो शहर में रहता था। उसकी इच्छा थी कि राधा को वह मास्टरनी बनाएगा। अभी- अभी वह इंटर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई थी। 

        आज सुबह से राधा को घर में किसी ने नहीं देखा था। बिना बताए तो वह कहीं नहीं जाती थी। जाती भी तो भतीजा चिंटू को साथ लिए फिरती। सबके माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई थी। गौरी बेचैन सी खाट से उठते हुये बोली -“ऐ दुलहिन बाहर जाकर जरा अगल- बगल में देखो तो। भोला को खेत पर भेज दो अपने दादा को बुलाने।”

थोड़ी ही देर में भोला दादा के साथ आया। उसके पीठ पर ही बेबी भी आ गई। “अम्माजी बबुनी किसी के घर नहीं मिलीं। कहां चली गयी, कुछ समझ में नही आ रहा।” – बेबी के चेहरे पर साफ चिंता दिखायी पड़ रही थी।

राधा के बाबूजी घबराए से सबका मुंह देख रहे थे और बात को समझने की कोशिश कर रहे थे। धम्म से बैठ गये। गौरी कपार पर हाथ मारकर रोकर कहने लगी -” ई लड़की कहां चली गई सब उसके भाई सब मिलके उसको बिगाड़े हैं। उसका रंग- ढंग कुछ अजबे था।”



बेबी घर में घूम- घूमकर उसे तलाश कर रही थी। जाने कोई छोटी वस्तु थी वह। उसके कॉलेज का बैग खोलकर देखा। चारो तरफ बारीकी से मुआयना कर रही थी। तभी बक्सा पर टार्च से दबाकर रखा हुआ एक कागज देखा। जल्दी से जाकर देखा तो राधा द्वारा लिखित एक चिट्ठी थी – “अम्मा, बाबूजी हम मालती दीदी के साथ जा रहे हैं। वो अपने भाई के साथ हमारी शादी कराएंगी। आपलोग हमें ढूंढने के कोशिश मत कीजियेगा। हम अपनी ख़ुशी से जा रहे हैं। बेबी दौड़ती हुई आयी और एक सांस में ही सास- ससुर को चिट्ठी पढ़ सुनाई। गौरी ने कपार पीटते हुए कहा – दादा रे! ई मलतिया हमलोग को बर्बाद कर दी। कैसा हित बनकर कब का दुश्मनी निकाल गई रे।” घर मे कोहराम मच गया। गाँव में तो पहले ही मच चुका था।

सारे घरवाले बैठ कर उस दिन को याद करने लगे जब उसके गांव में ग्रामीण हेल्थ वर्कर मालती पहली बार तब आयी थी जब बेबी छोटे बेटे के जन्म के समय गर्भवती थी। तब मालती आयी थी, सामान्य चेकअप व स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी देने। कैल्शियम और आयरन की गोलियां भी दे गई थी। कितनी आत्मीयता से मिली थी। उसके बाद से गांव में आने- जाने के क्रम में इनलोगों के घर आना न भूलती थी। चिंटू के जन्म पर ‘छठीयारी’ में बुलाने पर वह आयी भी थी। कितना सुंदर बाबा सूट लायी थी। बेबी जहां भी जाती उसी को पहनाकर ले जाती। कितना सुंदर शहराती बच्चा सा दिखता था चिंटू उसे पहनकर। राधा से मालती कितना घुल- मिल गयी थी। कभी उसके लिये सलवार- कुर्ती लाती तो कभी लिपस्टिक। 

अपने मोबाइल से उसकी फोटो भी खिंचती। भोला, चिंटू की तस्वीरें खिंचकर भी उन्हें दिखाती। और बच्चे कितने कौतुहल से दिखते थे। तब राधा के परिवार वाले कितना धन्य समझते थे अपने को । मालती को तो वो ‘ डॉक्टर दीदी’ ही कहते थे। जब मालती उनके यहाँ आती , खाली हाथ नहीं आती। कभी फल, मिठाई वगैरह लेकर आती थी। दो- चार घण्टे रुकती जिसमें ज्यादा से ज्यादा समय राधा के साथ गुजारती। दोनों बैठकर जाने क्या गिटिर- पिटिर करती थीं। जबसे राधा मालती के सम्पर्क में आई थी। शहरी लड़कियों सा रहन- सहन अपनाने लगी थी। बन- सँवर रहती। उसकी जरूरतें बढ़ने लगी थीं। उस घर मे उसे कमियां ही कमियां नजर आने लगी थी। गौरी को अच्छी तरह याद है कि छह महीने पहले मालती ने अपने मानसिक रूप से विकलांग भाई के लिए राधा का हाथ मांगा था। यह भी कहा था कि राधा को उसके घर सब रानी बनाकर रखेंगे। राज करेगी वह उसके इकलौते भाई अजय की पत्नी बनकर।

 उनलोगों ने उसके भाई को देखने के बाद ही अपना फैसला बताने को कहा। राधा के भाई और पिता देखने गए थे। अजय को देखकर वो अंदर ही अंदर आग- बबूला हो उठे। किसी तरह अपने पर काबू रखते हुए उन्होंने कहा कि घर जाकर राय- मशविरा कर बता देंगे। मशविरा क्या करना था। अजय को देखने के बाद कुछ विचारने का प्रश्न ही नहीं उठता था जीवित मांस का लोथरा सा था वो जिसे अपने शरीर की भी कोई सुध नहीं थी। इतने भी गए- गुजरे नहीं थे वो लोग की अपनी शक्ल- सूरत से अच्छी व होनहार बेटी के लिए ऐसे लड़के के लिये हां कहते। अगले ही दिन मालती आयी।



 उसके एहसानों तले दबे होने के बाद भी उन्होंने से सकुचाते हुये ना कह ही दिया। मालती ने इसे सहजता से लेते हुए हंसकर कहा-” आपलोग बुरा न मानें, मैंने तो ऐसे ही कह दिया था। चूंकि राधा हमें इतनी पसन्द है कि अपना लोभ न रोक पायी।”

फिर बात आई- गई हो गई। मालती का आना बदस्तूर जारी रहा। और आज यह घटना घट गई। यानी कि मालती ने राधा का माथा फेर दिया है। दिमाग घुमा दिया है। पता नहीं क्या- क्या प्रलोभन दिए होंगें। गौरी यह सब सोचती रही।

इस घटना के दो दिन बाद सोच- विचारकर राधा के पिता और भाई मालती के घर उसके गांव पहुंचे। मालती ही निकलकर आयी। जब इन्होंने राधा से मिलने की बात कही तो मालती उन्हें बैठने को बोल अंदर गयी। द्वार पर बैठे- बैठे आधा घण्टा से ऊपर हो गया तब राधा सजी- सँवरी साड़ी पहने मांग में सिंदूर लगाये सामने आई। आते ही बड़ी रुखाई से कहा -” हम मन किये थे कि हमें खोजने का कोशिश मत करियेगा। क्यों आये आपलोग, चले जाइये और दुबारा मत आइयेगा। हम बहुत खुश हैं यहां।”

पिता और भाई बहुत समझाए, गिड़गिड़ाकर उसे अपने साथ वापस चलने को कहा। किन्तु राधा टस से मस नहीं हुई। बल्कि उसने यहां तक कह दिया -” आपलोग हमारे लिए मर चुके हैं। जा सकते हैं आपलोग।” कहकर अंदर चली गयी।

यह सुनकर भाई महेश का दिल टूट गया और पिता का हाथ पकड़कर उठा दिया तथा कंधे पर बाहों का सहारा देते हुए वापस घर ले आया। राधा के बर्ताव ने उनको बहुत आहत किया था। गौरी ने सुना तो माथा ठोक लिया। उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि राधा ऐसा कैसे कह सकती है। उसने जी भरकर मालती को कोसा और बददुआ दी। न जाने मालती ने उसकी मासूम बेटी को क्या पट्टी पढ़ाई है जो वह अपने बाप भाई को ऐसा बोल गयी। अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाला काम कर वह सुखी होने की बात कह रही है। मन मारकर उन्होंने भी उसे मरा हुआ ही मान लिया। महेश ने आग- बबूला होते हुए कहा -” कान खोलकर सब सुन लो, उस लड़की से घर में किसी ने आगे से नाता रखा तो हमसे बुरा कोई न होगा। अगर वह गांव में दिख गयी तो काट के रख दूंगा।”



चूंकि मालती के गांव और राधा के गांव के बीच करीब एक किलोमीटर का ही फासला था। अतः दोनो गांव में लोगों का आना- जाना लगा रहता था। मालती के गांव की एक लड़की राधा के पड़ोस में ही ब्याही गयी थी। उसी ने नैहर से आकर राधा की मां को बताया कि एक रोज रात में राधा के कमरे में उसका ससुर बुरी नीयत से घुस आया था। राधा के शोर मचाने पर सब जाग गये थे। अगले दिन गांव में इसकी खूब चर्चा हुई थी। सुनकर गौरी का कलेजा फट गया।

 आखिर मां थी वो। पर बेटे की सख्त चेतावनी को भी वह भूल नहीं सकती थी। बेबस सी आँसू बहाती रही। कुछ दिनों बाद राधा को लेकर उड़ती- उड़ती खबर गांव के साथ- साथ उसके घर तक भी पहुँची कि राधा अब गांव के नजदीकी शहर में रहने लगी है वह भी अकेली। हाँ कभी- कभी मालती उसके साथ देखी जाती है। अब तो राधा का हुलिया ही बदल गया है। जीन्स- टॉप के साथ- साथ तमाम तरह के आधुनिक लिबास में वह देखी जाती है। खबर तो यह भी फैली है कि मालती उसके माध्यम से पैसा कमाती है। उसे देह – व्यापार के दलदल में धकेल दी है।

गांव में वैसे ही राधा के घरवालों की थू- थू हो रखी थी। ये सारी खबरें सुन घरवाले खासकर राधा की मां सौ- सौ मौत मरती थी। मन ही मन विचारती की उसकी मासूम राधा क्या से क्या हो गयी। क्या उसे घरवालों की याद नहीं आती। क्या ऐसी ही ज़िन्दगी की इच्छा की थी। सचमुच खुश है वह? या वह वापस आना चाहती होगी तो भाई की चेतावनी के डर से न आ पाती होगी। या फिर किस मुंह से वापस आये, यह सोचती होगी। किन्तु उसके सवालों का जवाब कहां मिलने वाला था। शहरी चकाचौंध व ऐशोआराम की चाहत में भटककर दलदल भरी जिंदगी को अपनी नादानी में उसी ने तो चुना था। जहां से चाहकर भी वापस लौटना नामुमकिन था उसके लिए।

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