सहनशक्ति – कंचन श्रीवास्तव

पारिवारिक कलह इंसान को तोड़के रख देती है।

हां ठीक ही कहा , बाहरियों से तो आदमी लड़ सकता है पर अपनों से  नहीं।भाई लड़े भी तो कैसे ,बड़े हैं तो भी सुनो ,छोटे है तो भी। इसलिए सिर्फ अपने भीतर ही मंथन करो और मुस्कुराते रहो।

यही कहानी हर घर की है पर दूसरों के सामने रहना ऐसे होता है जैसे कुछ हुआ ही न हो।मेरा घर सबसे साफ सुथरा है।

अब राम को ही ले लो , कितनी ही समस्याओं से जूझा , 

मैं जब से देख रही हूं वो तब से परेशान हैं भगवान जाने कितनी मुसीबतें अपनी तकदीर में लिखा के आया है।

 चाची बताती हैं कि जनमते ही मां चल बसी तो इसे दूध के लिए तड़पना पड़ा। कभी दाल का पानी तो कभी साबूदाने का पानी पी पीकर बड़ा हुआ,वो बताती है कि कभी रोता नहीं था।


जैसे जैसे वो बड़ा होने लगा खाने में जो मिलता खा लेता।

फिर लोगों ने देखा वो कुछ नहीं बोलता ,तो कुछ भी आने पर सबसे पहले उसका हिस्सा निकाल कर रख देते फिर सब लोग खाते और जब वो आता तो खाता।

धीरे धीरे समय बीतने लगा और अब तो  वो सबकी नज़रों में भी चढ़ने लगा,पढ़ाई में अव्वल जो रहा।

एक दिन उसकी नौकरी लग गई,सभी बहुत खुश हुए।

और कुछ महीनों में उसके मन पसंद लड़की से शादी भी हो गई।

पर कहते हैं ना कि सुख अगर भाग्य में न लिखा हो तो नहीं मिलता चाहे कुछ भी हो।

शादी तो उसकी मन पसंद हुई पर ज्यादा दिन तक ठीक ठाक  न चला , और वो तलाक ले ली।

इसका इसे दुख तो हुआ पर कुछ ही दिनों में अपने बच्चों के साथ हिल मिल गया।और खुश रहने लगा।

सच कितने ही घरों के लिए ये मिशाल बना। उसकी सहनशक्ति आज उसके खुश का कारण है।


और कितने ही घरों की प्रेरणा। कायल हैं हम उसकी सहनशक्ति के कि कैसे  सहनशीलता से  इंसान खुश ही नहीं रह सकता ।

बल्कि पारिवारिक कलह को भी खत्म कर सकता है।

स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव

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