लहसुन की चटनी – नीरजा कृष्णा

माधवी अपने बच्चों के पास आई हुई थीं। बेटा बहू दोनों डाक्टर… दोनों ही अति व्यस्त। चाह कर भी माँ के पास बैठने का समय नहीं निकाल पाते थे पर घर में उनके लिए पूरी सुखसुविधाओं का प्रबन्ध था। रमा चौबीस घंटे उनकी सेवा में थी। आज सुबह से वो मम्मी जी के उखड़े मूड को नोटिस कर रही थी। सदा की हँसमुख माधवी जी बात बात पर झल्ला सी रही थीं। रमा उनके पैर दबाने लगी तो उन्होंने उसके हाथ झटक कर कहा,”तुम सब तो मुझे बीमार ही बनाने पर तुले हुए हो। इस समय मेरे पैरों में बिल्कुल दर्द है ही नहीं, तू क्यों परेशान हो रही है?”

वो प्रतिरोध करते हुए बोली,”पर मेमसाहब का आर्डर है।आपके पैरों में तीन बार तेलमालिश भी करनी है पर आप कराती ही नहीं हैं। मैडम जी रोज मुझसे पूछती हैं।”

उनकी आँखें छलछला गई। वो धीरे से रमा से कह बैठी,”आज शाम को सामने पार्क में घूमने चलेगी। मेरी बहुत इच्छा है।”

“जरूर मांजी! ड्राइवर को बुला लेते हैं।”

वो चिढ़ गईं,”नहीं नहीं, कार से नहीं, पैदल घूमने चलते हैं।”

रमा बेचारी घबड़ा गई थी। सहम कर बोली,”अभी आपको ज्यादा पैदल चलना मना है ना। कुछ तकलीफ़ बढ़ गई तो मेरी नौकरी चली जाएगी।”


उन्होंने उदास होकर मुँह फेर लिया था। किसी तरह कुछ खाकर वो खिड़की के पास खड़ी हो गई। सामने आउटहाउस में माली और दरबान की पत्नियाँ धूप में बैठी कुछ खा रही थीं और गीत गाते हुए खिलखिला भी रही थी। वो भावविभोर होकर देखते देखते  मुस्कुरा उठी। ये अभावग्रस्त साधारण महिलाएं भी अपने सीमित साधनों में कितनी खुश हैं और आपस में चहचहा रही हैं। आज वो अपने को रोक नहीं पाईं और उनके कदम अनायास उसी दिशा में बढ़ चले। रमा पीछे पीछे बदहवास सी दौड़ कर उनको रोकने की कोशिश करने लगी पर ये क्या…. वो एक आत्ममुग्धा या आत्मविस्मृता सी होकर उसी आउटहाउस की ओर बढ़ती जा रही थी। उन महिलाओं के गीत से सम्मोहित सी वो उनके सामने खड़ी होकर निहारने लगी थी।

उनको इस तरह एकाएक सामने देख कर वो दोनों ऐसी ठिठकी मानो सामने कुछ व्याधा देख कर गाड़ी में ब्रेक लगा दिया हो। दोनों अपने हाथों को पीछे छिपाने की असफल कोशिश करने लगी थी। वो हँस कर बोलीं,”अरे अरे, तुमलोग चुप क्यों हो गईं? कितना सुंदर तो गा रही थी।”

वो दोनों आँचल मुँह में ठूँस कर सहमी सी खड़ी थीं। एक बच्चा दौड़ कर एक खस्ताहाल कुर्सी ले आया था। रमा ने उन्हें उसी पर सहारे से बैठा दिया था। वो खुश होते हुए बोलने लगीं,”तुमलोग क्या खा रही थीं…मुझे देख कर हाथ पीछे क्यों कर लिए। दिखाओ ना, कितनी बढ़िया सौंधी सौंधी खुशबू आ रही है।”

वो दोनों सिर झुकाए खड़ी रहीं। उत्तर रमा ने दिया,”ये लोग ज्वार की रोटी लहसुन की तीखी चटनी से खा रही थीं।”

उनके चेहरे पर मुस्कान भर गई और बेसाख्ता कह बैठीं,”अरे वाह, कितना मज़ा आ रहा होगा। अकेले अकेले ही खा लोगी। हमें भी चखाओ भई।”

वो अविश्वास से देख रही थी। रमा का सहमति का इशारा और उनकी स्वयं की आँखों में प्रेमपगी मनुहार देख कर वो मालिन दौड़ कर एक प्लेट में रोटी चटनी ले आई। माधवी जी खुश होकर खाते हुए बोल पड़ी थीं,”वाह वाह, इतना स्वाद तो आज ही जाना।”


रमा भी खुश होकर देख रही थी। तभी बाहर गाड़ी का हार्न बजा। सब सहम गए…. इस समय अचानक मेमसाहब कैसे…अब तो सबकी क्लास लग जाएगी। मांजी तो वहाँ से हिलने को भी तैयार नहीं था। तभी खटखट सैंडल बजाती मेमसाहब वहीं पहुँच गई और तैश में पूछ बैठी,”अरे आपसब यहाँ महफ़िल जमाए बैठे हैं। मम्मी जी का एक्सरे कराना था।”

पर मांजी तो दूसरी ही दुनिया का आनंद लूट रही थीं। तभी स्नेहा(मेमसाहब) कह उठी,”बड़ी बढ़िया सुगंध आ रही है। ये आपसब क्या खा रहे हो?”

माधवी जी ने अपनी प्लेट उसकी ओर बढ़ाते हुए एक कौर चखने का आग्रह किया। वो धम्म से वहीं जमीन पर पसर कर हँसी,”एक कौर से मेरा काम नहीं चलने वाला। मेरे लिए जल्दी से रोटी पर खूब सारी लहसुन की चटनी लेकर आओ। और मम्मी जी, आपको इस अद्भुत आनंद के अविष्कार के लिए थैंक्स।”

नीरजा कृष्णा

पटना

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!