हैसियत – माता प्रसाद दुबे,

तीन साल बाद प्रकाश लखनऊ आया था। अपने बड़े भाई रामकुमार के घर,पांच वर्ष पहले रामकुमार ने लखनऊ मे प्लाट खरीद लिया था। और एक आलीशान घर बनवाकर वे अपने परिवार के साथ यही बस गये थे। गांव वाले घर मे प्रकाश अपने परिवार के साथ रहता था। रामकुमार सरकारी नौकरी करते थे। प्रकाश और उसके परिवार का जीवन व्यापन खेती पर निर्भर था।

प्रकाश रामकुमार के घर पहुंच चुका था। सामने गेट के अंदर चमचमाती हुई गाड़ी खड़ी हुई थी। गेट पर लगी डोर बेल का  बटन दबाकर प्रकाश उत्सुकता से अन्दर की तरफ देख रहा था। “कौन है”अन्दर से प्रकाश की भाभी प्रेमा की आवाज़ आई।

“भाभी प्रणाम मै हूं भाभी प्रकाश” प्रकाश बोला। “अरे प्रकाश अचानक कैसे आ गये फोन कर दिया होता” प्रेमा गेट खोलते हुए बोली। प्रकाश एकटक अपनी भाभी की ओर देख रहा था। उन्होंने अपने बालों को कटवा दिया था। गांव मे हमेशा साड़ी पहनने वाली उसकी भाभी पूरी तरह बदली हुई नजर आ रही थी।वह पूरी तरह मार्डन लिबास अपना चुकी थी।”बस भाभी आपसे और दादा से मिलने का मन कर रहा था,” प्रकाश अन्दर आते हुए बोला। “तुम्हारे दादा के पास अब गांव जाने का समय ही कहां है, कोई काम है क्या” भाभी प्रकाश को बैठने का इशारा करते हुए बोली।” कोई काम नही है,बस आप लोगो और बच्चो से मिलने का मन कर रहा था” प्रकाश हैरान होते हुए बोला।”रवि और प्रभा कालेज गये है, तुम्हारे दादा शाम तक आयेंगे, तुम्हारे पास कोई काम तो है नही,यहा तो किसी के पास समय ही नही है, जो अन्य चीजो के बारे मे सोच भी सके, तुम इस कमरे मे आराम करो मै चाय भेजवाती हूं” सामने बने हुए कमरे की ओर इशारा करते हुए प्रेमा अन्दर की ओर चली गई।


प्रकाश कमरे मे बैठा सोच रहा था। “क्या ये वही उसकी भाभी है, सीधी सादी भोली भाली जिसे वह अपनी मां की तरह मानता था। जिसका कोई काम उसके बगैर नही होता था।

आज वह एकदम बदल गई थी,वह अकेला बैठा हुआ था। उसकी भाभी के पास उसके पास बैठने और बात करने का भी समय नही था”।

“साहब चाय ले लीजिए”घर की नौकरानी मेज पर प्लेट रखते हुए प्रकाश से बोली। “सुनिए जरा भाभी को भेज दीजिए”प्रकाश नौकरानी से बोला। “मेम साहब अभी तैयारी कर रही है, उन्हें और साहब को पार्टी मे जाना है” नौकरानी  प्रकाश को सम्बोधित करते हुए बोली। तभी डोर बेल बज उठी  

“अभी आती हूं” नौकरानी को रोकते हुए प्रेमा गेट की तरफ बढ़ गई। कुछ देर बाद रवि और प्रभा के साथ प्रेमा अन्दर आते हुए बोली। “तुम्हारे प्रकाश चाचा आएं है गांव से” “नमस्ते” रवि और प्रभा ने दूर से ही प्रकाश का अभिनंदन

किया। “खुश रहो, यहां आओ बच्चों मेरे पास” प्रकाश रवि और प्रभा को देखकर प्रसन्नता के साथ बोला।”अरे नही चाचा अभी हमे तैयार होना है”रवि और प्रभा एक साथ बोले। “चलो जल्दी तैयार हो जाओ तुम्हारे पापा आने वाले है” प्रेमा रवि और प्रभा को निर्देश देते हुए बोली।”जी मम्मी”रवि और प्रभा प्रेमा के साथ दूसरे कमरे मे चले गए।

प्रकाश हैरान हो रहा था। ये कैसै हो गया,क्या कारण है। किसलिए उसकी सगी भाभी जो कल तक उनके साथ रहती थी शहर मे आते ही उसके व्यवहार मे इतना परिवर्तन,वे बच्चे जो उसके साथ ही रहते थे, हंसते खेलते थे, आज उनकी मानसिकता कितनी परिवर्तित हो चुकी है कि,वे उसके पास भी नही आए, जैसे वह कोई मेहमान था। गांव की पुश्तैनी बीस बीघा,जमीन का आधा हिस्सा जो सड़क की तरफ था।

जिसकी कीमत ज्यादा थी।वह दादा ने अपने हिस्से मे करके तीस लाख रुपए मे बेच दिया। उसने ही अपने दादा की जमीन बिकवाने मे उनका साथ दिया था।

डोर बेल बज उठी, रामकुमार को देखते ही प्रकाश ने उनके पैर छुए। “कैसे हो प्रकाश और गांव मे सब ठीक है”रामकुमार ने बैठते हुए प्रकाश से पूछा।”ठीक है दादा” प्रकाश बोला। “प्रकाश अब गांव जाना मेरे लिए सम्भव नही है,अब मेरी हैसियत भी बदल चुकी है, तुम्हे ही गांव मे रहना है”तुम्हे कोई जरूरत हो तो मुझे फोन कर देना,” रामकुमार ने प्रकाश को समझाने लगा। “चलिए अब तैयार हो जाइए चलना नही है क्या” प्रेमा ने आवाज दी।” बस चलता हूं”रामकुमार प्रेमा के कमरे की तरफ बढ़ गया।


प्रकाश समझ चुका था। रिश्तो को जिन्दा रखने के लिए हैसियत का खेल क्या है, जहां परिवार टुटकर बिखर जाता है।अपनो के व्यवहार मे परिवर्तन हो जाता है।

“दादा प्रणाम, भाभी प्रणाम,शाम हो गई है,अब मै चलता हूं, गलती हो तो माफ़ कर दिजिएगा,” कहते हुए प्रकाश बाहर निकल पड़ा और चल पड़ा अपने गांव की ओर।

माता प्रसाद दुबे,

मौलिक एवं स्वरचित,

लखनऊ,

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