स्वयं सिद्धा – प्रीती सक्सेना

आज भी समर घर नहीं आए,, रात भर आंखे, दरवाजे पर ही लगी रहीं, देख रही हूं,, कुछ दिनों से न बात करते हैं, न ही मेरी तरफ़ देखते ही हैं, जबसे डॉक्टर ने स्पष्ट कर दिया,, मैं मां नहीं बन सकती,, समर बिल्कुल बेजार से हो गए मुझसे,, एक दिन तो साफ कह दिया,, मेरे पास न इतना फालतू पैसा है, तुम्हारे इलाज के लिऐ,, और न ही समय,,, मैं कहती तो क्या कहती,, माता पिता, इन सात सालों में, एक एक करके मेरा साथ छोड़ गए,, कोई भी तो नहीं जो मेरा साथ दे सके,, मैं भी तो मां बनना चाहती हूं,, पर नहीं बन पा रही तो मेरा क्या कसूर है???

 

     सुबह धड़धड़ाते अंदर आए,, बस अब और नहीं,,,, मैं तुम्हें बर्दाश्त नहीं कर सकता,, अब साथ रहना नामुमकिन है,, तलाक़ के पेपर्स पर साइन करो और निकलो यहां से,, पर मैं जाऊंगी कहां,, रहूंगी कहां??? प्लीज समर,, मुझे एक मौका दो,,, देखो अब तुम मेरी सहन शक्ति के बाहर हो,, मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहता,, अभी मैं जा रहा हूं,, थोड़ी देर बाद आऊंगा,, मुझे घर खाली चाहिए,, समझी।

 

      जानती थी,, कुछ सालो से मुझसे विमुख हो गये, पर आज अचानक, घर से ,,अपनी जिंदगी से,, बेदखल कर देंगे ,, मैने ये तो सोचा भी न था,, मैने स्कूल की, अपनी साथी टीचर को फ़ोन किया,, संछिप्त में अपनी व्यथा बताई,, उसने अपने घर पर सामान लेकर आने को कहा,, थोड़ी हिम्मत बंधी,, मैंने सामान बांधा,, पूरे घर को, भरी नजरों से निहारा,, कितने प्यार से हमने,, अपना ये घरौंदा सजाया था,, आज से,, मैं इसे देख भी न पाऊंगी।

 



  गहरी सांस लेकर घर से बाहर आई,, चाबी, ऊपर मकान मालिक को दी,, ऑटो में सामान रखकर सहेली के घर आई,, उसने नाश्ता दिया,, गर्म चाय पिलाई,, पेट में खाना गया, भूखी अंतड़ियां, कुलबुला गईं,, याद आया, कल दोपहर से पेट में कुछ गया नहीं,, सहेली बोली,, आज तू स्कूल से छुट्टी ले ले,, मेरे मामा यहीं पास की कॉलोनी में रहते हैं उनके घर एक रूम, किचन का सेट है,, किराया भी तू दे पाएगी,, चल वहां चलते हैं,, मैं तो कुछ सोचने समझने की हालत में ही नहीं थी,,, जैसा वो कहती जा रही थी,,, बस मैं करती जा रही थी ।

 

कमरा अच्छा था, खुला हुआ था,, किचन छोटा पर व्यवस्थित था,, सहेली मुझे छोड़कर स्कूल चली गई,, मैने किराया ऑनलाइन एडवांस, ट्रांसफर किया,, और दरवाजा अंदर से बंद किया और,, फूट फूटकर रो पड़ीं,, क्या हो गया,, मेरी जिन्दगी,, एकाएक कैसे बदल गईं,, हिम्मत कर उठी,, जानती थी,, अब सब मुझे करना है,, उठी सरसरी निगाह से कमरे में नजर डाली,, इक तरफ़ पलंग,, एक अलमारी,, एक टेबल कुर्सी,, किचन में सिर्फ गैस,।      क्या ये सच है या सपना,,,      , सिर पके फोड़े की तरह,, बुरी तरह दुख रहा था,, सहेली का फ़ोन आया,, तू चिंता मत कर, मैं हाफ डे लेकर आ रही हूं,, खाने को लेकर आऊंगी,, फिर आगे का देखते हैं,,, मेरी आंखे भर आईं,, अपने ने एक ठोकर में अलग कर दिया,,, और पराए अपना बना बैठे।

  

    शुक्र है भगवान का,, एक नौकरी है मेरे पास, वरना….. क्या होता??? समर ने एक बार भी नहीं सोचा, कहां जाऊंगी कैसे रहूंगी,, मन कड़वाहट से भर उठा,, क्यों मै कमजोर पड़ रही हूं,, क्या पुरूष के बिना एक स्त्री का कोई अस्तित्व नहीं,, मैं तुम्हारे बिना जीकर दिखाऊंगी समर,, कमजोर नहीं हूं मैं,, दरवाजे पर दस्तक हुई,, देखा तो सहेली थी,,, आत्म विश्वास से चमकता चेहरा देखकर,, ताज्जुब से बोली,, क्या बात है,, मुझे बहुत खुशी है,, तुमने अपने को इतनी जल्दी संभाल लिया,, मैने उसकी आंखो में विश्वास से देखकर कहा,, न डरूंगी,, न हारूंगी,, स्वयं सिद्धा हूं,,, सारी परिस्थिति को जीतकर दिखाऊंगी,, चल खाना खाते हैं,, फिर जरुरत का सामान लेने बाजार भी तो जाना है…….

 

प्रीती सक्सेना

इंदौर

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