निरइच्छा – अनुज सारस्वत

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“साक्षी चार दिन बाद प्रोजेक्ट रिफाइन सबमिट करने का दिन है। अरे यार थोड़ा काम रह गया। बस आज मैं कर लूंगी और बता अच्छा सुन ये प्रोजेक्ट का काम निबटे तो मनाली चलेंगे घूमने।बहुत सर दर्द हो गया और अब थोड़ा रिलेक्स चाहिए मुझे”

अनुपमा ने साक्षी को फोन पर कहा और थोड़ी देर बाद फोन रख दिया। और खाना खाने नीचे चली गयी।

“मम्मी क्या बनाया है? बहुत भूख लगी है कितने दिन हो गये प्रोजेक्ट में लगे”

“तेरे फेवरेट गोभी के परांठे दही के साथ चल खाले।”

सब लोग खाने पर बैठ गये। तभी फोन आया साक्षी की मम्मी का फोन आया कि साक्षी के सीधे हाथ पर गर्म खौलता तेल गिर गया है। अनुपमा खाना छोड़ भागी साक्षी के घर और देखा तो साक्षी बहुत रो रही थी। और रोते रोते बोली।

“अनुपमा मुझे दर्द का दुख नही है लेकिन 2 दिन बाद मेरा प्रोजेक्ट है ।वो कैसे करूंगी मेरे 6 महीने खराब हो जायेंगे। “

इधर अनुपमा की समझ नही आ रहा था कि क्या करे। साक्षी को डाक्टर के पास ले जाकर मरहम पट्टी कराने के बाद घर छोड़ा।

घर पर आकर मम्मी को सारी बात बताई। फिर मम्मी ने कहा।

“कोई बात नही बेटा।आज तेरा हनुमान जी बनने का समय है। अगर तू चाहे तो”

अनुपमा बोली “अब मम्मी ये हनुमान जी कैसे आ गये बीच में।यहाँ मैटर कुछ और चल रहा।”


मम्मी बोली “देख तेरा मन हो तो बताऊं वरना रहने दे”

“अच्छा बता दो सुन लेंगे”

अनुपमा बोली

फिर मम्मी ने बताना शुरू किया

“बाल्मीकि जी ने अंतिम अध्याय उत्तरकांड लिखने के बाद रामायण को पूरा किया।और बंद करते हुए बोले

“मैनें भगवान राम की गाथा का एक एक अंश एक एक क्षण इस रामायण नाम की माला में मोती बनाकर पिरोया है।कितनी मेहनत से।” ऐसा कहकर थोड़ा सा अभिमान उनमें आ गया। फिर नारद जी प्रकट हुए और बोले

“और गुरूजी क्या चल रहा है? सुना है रामायण समाप्त कर लिये हो। लेकिन ?”

“लेकिन क्या नारद जी?”

बाल्मीकि जी ने उत्सुकतावश पूछा

“अरे कुछ नही मैं कंदरप पर्वत से आ रहा हूँ। हनुमान जी के पास से उन्होनें तो कुछ अद्भुत ही काम किया है।”

अब बाल्मीकि जी से रहा ना गया और बोले

“मुनिवर पहेलियाँ ना बुझाओ। सत्य बताओ”

“सत्य जानने के लिए आपको उसी पर्वत पर जाना होगा। “

इतना कहकर नारद जी अंतर्ध्यान हो गये।

बाल्मीकि जी झट से उस पर्वत पर पहुंच गये। और चढ़ना प्रारंभ किया तो कुछ लिखा हुआ सा प्रतीत हुआ। जब देखा तो स्तब्ध रह गये पूरा पर्वत संस्कृत के श्लोकों से पूरी रामायण का बखान था। फिर शिखर पर पहुंचे तो हनुमान जी एक शिला पर कुछ लिख रहे थे वो भी अपने नाखून से। बाल्मीकि जी को देखकर प्रणाम किया और सत्कार किया।

बाल्मीकि जी ने पूछा

“हनुमान यह सब क्या है? “

“हनुमान जी बोले जस्ट रिलेक्स ॠषिवर इटस नथिंग सिंपल गुणगान आफ माय लार्ड राम। “

मतलब तुम नाखून से पूरा रामायण लिख दिये इस पर्वत पर अविश्वसनीय। बाल्मीकि जी अचंभित होते हुए बोले।

“अरे गुरूदेव हम कहाँ कुछ लिखे जो राम जी की इच्छा हुई उन्होने ही लिखवाया।मैं मैं नही हूँ राममय हूँ। साँस भी लेता हूँ तो उनकी कृपा से।आँख झपकता हूँ तो उनकी कृपा से कितने अहसान है प्रभू राम के पूरा जीवन उन्ही की देन है मेरा।आप बताओ बड़े चिंतित लग रहे हो।”

हनुमान जी ने पूछा

वाल्मिकी जी बोले

“अब का बतायें प्रभू तुम तो लिख दिये हनुमद रामायण अब हमारी कौन पढ़ें है। और तुम्हे तो रायल्टी भी है तुरंत घर घर बंट जायेगी।हमारी धरी की धरी रह जायेगी।”

फिर हनुमान जी बोले


“क्या गुरूदेव इतनी सी बात “

इतना कहकर उन्होंने पूरा पर्वत तोड़ दिया रामायण लिखित और कहा

“लो जी तुसी टेंशन खत्म।मेरे तो रोम रोम में राम हैं। और मुझे कौन सा प्रसिद्ध होना था राम जी का दिया हुआ जीवन है।राम राम जपता हूँ बस और क्या चाहिए”

वाल्मीकि जी चरणों में गिर गये। और बोले

“प्रभू माफ कर दो अहंकार आगया था कि मुझ जैसा ग्रंथ कोई नही लिख पायेगा  पर आप अपने नाखून से ही मुझसे उत्तम लिखे और हटा दिया ह्रदय में बिना कोई संकोच लिये। “

यह सब अनुपमा ध्यान से सुन रही थी। उसकी आँखो से आँसू आ गए इतना निर इच्छा  वाले हनुमान जी के बारे में सुनकर।

फिर उसने तुरंत अपनी प्रोजेक्ट फाइल को साक्षी के नाम से बनाकर साक्षी को देकर आयी दोनों सहेलियों के आँखो में आँसू थे। साक्षी का प्रोजेक्ट हो चुका था दो दिन बाद अनुपमा का था दिन रात करके अनुपमा ने 75% प्रोजेक्ट तो बना लिया था। फिर प्रोजेक्ट वाले दिन कालेज में स्ट्राइक हो गई जिससे उसका प्रोजेक्ट 10 दिन बाद सबमिट होता। अब उसके पास भरपूर समय था। बापस आते समय हनुमान जी का मंदिर देखकर रूक गयी और मुस्कराकर बोली

“क्यों हमारे सुपर हीरो सबका ध्यान रखते हो? आई लव यू हनुमान जी और बहुत बड़ा वाला थैंक्यू “

हनुमान जी के हाथ में रखा फूल गिर जाता है जैसे अनुपमा का थैंक्स स्वीकार कर लिया हो।

 -अनुज सारस्वत की कलम से

(स्वरचित एवं मौलिक)

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