हमसफ़र – संध्या सिन्हा : Moral Stories in Hindi

क़रीब तीन  बरस  बीत गए मृदुल को मेरे जीवन से गए. किंतु मैं तो आज भी उसी मोड़ पर खड़ी हूं, जहां वो मुझे छोड़ कर चला गया था. गहरे अवसाद में चली गई थी मैं. पर किसी के जाने से जीवन रुक नहीं जाता जीना तो पड़ता ही है. द शो मस्ट गो ऑन…”

शादी के बाद पति के साथ  लंदन  में ही बस गई थी।एक बेटे और एक बेटी का छोटा सा खुशहाल परिवार था हमारा।

अभी  पिछले महीने ही  लौटी हूँ अपने देश भारत।

मैं बरेली( पुश्तैनी घर) से इलाहाबाद ( मायके) जा थी । ट्रेन रात के २ बजे बरेली से चल कर सुबह १० बजे इलाहाबाद पहुँचेगी।

सन्नाटे को चीरती हुई ट्रेन अपनी पूरी गति से भाग रही थी. धीरे-धीरे रात और गहरी स्याह होती जा रही थी. आसमान, पेड़-पौधे, खेत-खलियान सभी कुछ अंधकार के आग़ोश में थे।

अपने ही ख़्यालों की पीड़ा  और बरसों बाद अपनों से मिलने के ख़ुशी में खोए होने के कारण मुझे स्वयं ही नहीं पता था की मेरे आसपास कौन-से यात्री हैं, और वो कब मेरे सामने आया 

हाय, मैं निलेश…“ उसने पूर्णत: दोस्ती के अन्दाज़ में अपना परिचय दिया और मैंने इस भाव की गरिमा का मान रखते हुए उसकी तरफ़ देखा तो चेहरा कुछ जाना पहचाना लगा। अभी मैं कुछ बोलती वो एकदम चौंक कर उछल पड़ा और बोला-“ अरे! तुम!!!!’ईशानी ही हो ना!!!

अपना नाम सुन आँख उठा कर देखा तो… चेहरा कुछ-कुछ जाना पहचाना लगा, कुछ देर तक देखने के बाद…

अब उछलने की बड़ी मेरी थी…

 और..मैं ख़ुशी से उछल कर बोली- “तुम!!!!  तुम  निलेश यहाँ कैसे???? और कहाँ हो आजकल???”

“ एकसाथ इतने सवाल??? तुम नहीं बदली ‘क्वेस्चन मार्क’!”क्लास में अधिक प्रश्न पूछने की वजह से लड़के  मुझे ‘ क्वेचन मार्क’ कह कर चिढ़ाते थे।

निलेश और मैं साथ-साथ थे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में थे।क्लासमेट तक ही सीमित थी दोस्ती। उसके बाद आज और इस तरह!!!!

बातचीत का सिलसिला चल पड़ा। उसने बताया “ग्रेजुएशन के बाद एल.एल.बी. की और पी.सी.एस.निकला। आजकल पीलीभीत में एस.पी. हूँ , एक हफ़्ते की छुट्टियों में घर इलाहाबाद जा रहा हूँ।और तुम बताओ कैसी हो???”

“ मैं भी इलाहाबाद मायके जा रही हूँ ‘ पग-फिराने’ ।

“ पग- फिराने?????”

“ हाँ।मेरे पति की एक कार ऐक्सिडेंट में डेथ हो  गई थी  तीन बरस पहले अभी  पिछले महीने भारत लौटी तो …एक रस्म है कि पहले मायके ही जाना है। पता नहीं कैसी रीत है??? ब्याह के बाद ‘ पग फेरा’ और पति की मृत्यु के बाद ‘ पग फिराने’ जाया जाता है।” मैं सिसक पड़ी!!!

रात का अँधेरा और ट्रेन के डिब्बे में हल्की रोशनी में शायद उसने मुझे ध्यान से नहीं देखा या जाड़े की रात में शॉल से सिर ढका था।

“ ओह! सॉरी हमने तुम्हारे दुःख को बढ़ा दिया । और बच्चें???”

“ बेटी की शादी हो गई और बेटा अभी ‘ लॉ’ कर के निकला है, दोनों बच्चे वही लंदन में ही अपने-अपने घर में हैं। बहुत बरस हो गये तो पापा-मम्मी बुला रहे थे… क्योकि  बो बेचारे  इस उम्र में इतना लंबा सफ़र कर नहीं सकते तो मुझे ही बुला लिया, और तुम्हारी पत्नी और बच्चें????” मैंने पूछा।

कुछ देर के लिए हम दोनों ही  मौन हो गए. किंतु हम दोनों के मन बेचैन थे. मौन हमारे बीच वो अनकही बातें कर रहा था, जो शब्द नहीं कर पा रहे थे।

उसने एक गहरी साँस ली और बोला-“ क़रीब पाँच साल पहले हम पूरे परिवार सहित “ विंहदम फ़ॉल” पिकनिक पर गए थे और स्टाफ़ फ़ैमिली के साथ, वहाँ मेरी पत्नी और दोनों बच्चें तेज बहाव के कारण बह गए, बहुत कोशिशों के बाद उनकी डेडबॉडी मिली।”

“ ओह! माई गॉड!!!! “

कितना विचित्र संयोग था. मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो अपनी नहीं मेरी व्यथा सुना रहा हो।ग्रेच्यूशन करते ही मेरी शादी मृदुल से हो गई और मैं लंदन में बस गई थी, निलेश के बारे में मुझे कुछ पता ना था। क़िस्मत में फिर से मिलना लिखा था शायद..

“हम दोनों की एक जैसी ही कहानी है. तुम्हारी मीरा भी तुम्हारे जीवन से ऐसे ही अचानक चली गई जैसे मृदुल.” कुछ क्षण रुक कर मैंने कहा.

“ शायद हाँ।” उसने कहा।

समय से पूर्व ही बूढ़ा हो गया था निलेश, अभी पचास-बावन की ही उम्र होगी हमारी। हम औरते मेंटन भी रहती है, इसीलिए उसने मुझे तुरंत पहचान लिया… लेकिन मुझे थोड़ा सा समय लगा।

कुछ डेट में हमने ढेर सारी बातें की.. फिर सहयात्रियों का ख़्याल कर हम अपने-अपने सीट पर जाकर सो गये।

चाय वाला… गरम -गरम चाय …

सुबह हो गई थी और ६-७ बजने वाले थे और लखनऊ आया गया था शायद… वो भी उठ गया था, वैसे हम दोनों ही सोये ही कहाँ थे…कॉलेज के दिल चल चित्र की तरह पूरी रात आँखों में चल रहे थे।

इस फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में सिर्फ़ चार ही लोग थे…नीचे की बर्थ पर एक बुजुर्ग दम्पंति थे और ऊपर की बर्थ पर  हम दोनों । 

चाय लेने और पीने के लिए हम लोग अपनी-अपनी बर्थ से आकर नीचे आमने-सामने बैठ गये। अभी इलाहाबाद आने में चार घंटे बाक़ी थे,अब सफ़र लंदन से भारत आने तक के सफ़र से भी लंबा लग रहा था, बात करने को कुछ था ही नहीं। बस … वहाँ विदेश में रहने के कारण यहाँ कोई अपना मिल गया ही जैसे… बच्चे तो साथ हमारे लेकिन… उनकी भी अपनी लाइफ थी… मेरा ख़याल बहुत रखते पर… मृदुल की कमी महसूस होती थी.. कितना बात करूँ बच्चों से???

“ बेटा तुम लोग साथ में हों???”( इन दोनों ने रात में हमारी वार्तालाप नहीं सुना था, क़रीब  ८०-८२ के होंगे दोनों, तो दवा खाकर सो गये थे शायद।)

“ जी “ हम दोनों एक साथ बोल पड़े।

ट्रेन की उस काली, सर्द, भयावह वाली रात ने मेरा जीवन ही पूर्ण बदल कर दिया. वो अमावस वाली रात मेरे… नहीं.. नहीं, हम दोनों के अंधेरे निराशा भरे जीवन में ऊषा की नई ख़ुशियों भरी किरण एक नई उम्मीद के साथ यह कहने आई हो जैसे …. “हमें मीरा और मृदुल की स्मृतियों से सदा के लिए मुक्ति दे कर अमावस की इस घोर अंधकार रात से बाहर निकल कर धीरे-धीरे एक नयी उमंग के साथ एक नयी सुबह के नये उजाले की किरण का स्वागत करना चाहिए। एक नये सफ़र का एक नया #हमसफ़र मिल गया हो जैसे…

#हमसफर 

संध्या सिन्हा

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