सोने चाँदी का भेद – रश्मि प्रकाश : Moral stories in hindi

दमयंती जी के घर आज सुबह से ही सारे लोग शाम के उत्सव की तैयारी में जुटे हुए थे। ख़ुद दमयंती जी एक एक काम की बारीकी से जाँच पड़ताल कर रही थीं। आने वाले मेहमानों की फ़ेहरिस्त लंबी होती जा रही थी। घर की साजों सज्जा में कोई कमी नहीं थी। शाम को घर के लॉन में जो साजों सज्जा हुई थी वो देखते ही बन रही थी। मेहमान भी आने शुरू हो गए थे। क्रीम रंग की सिल्क की साड़ी में दमयंती जी किसी राजमाता से कम नजर नहीं आ रही थी। सब उनकी व्यवस्था की तारीफ़ करते नहीं थक रहे थे।

सामने दो मेज पर अलग अलग दो ख़ूबसूरत केक रखे हुए थे। एक  छोटा सा केक एक मेज पर वही दूसरे मेज पर एक केक पाँच तले का। सारे मेहमानों के आ जाने के बाद कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा की गई। “जाओ पहले राजा को लेकर आओ।” दमयंती जी ने अपनी बड़ी बहू कनकलता से कहा “पर माँ पहले तो रचिता का केक कटवाना चाहिए ना, उसका पहला जन्मदिन है!बाद में राजा का केक कटवाते हैं वो तो पहले भी अपना जन्मदिन मना चुका है।

” बड़े बेटे राजकिशोर ने कहा “ जो कह रही हूँ वही करो बड़ी बहू… पहले राजा का जन्मदिन मनाएँगे उसके बाद रचिता का।” दमयंती जी ने आँखें दिखाते हुए बेटे को चुप करवा दिया और कनकलता आँखें चमकाती हुई बेटे को लेने चली गई। तभी रचिता को लेकर छोटा बेटा रतन अपनी पत्नी रूचि के साथ लॉन में आते नज़र आए। रचिता परी के कपड़ों में सचमुच परी ही लग रही थीं ।

दमयंती जी  जल्दी से उस ओर बढ़ी और बोली,”तुम लोग अभी रचिता को लेकर क्यों आ गए पहले केक राजा काटेगा उसके बाद रचिता।” रतन और रूचि को बहुत बुरा लगा पर माँ की बात को काटना किसी के बस का नहीं था क्योंकि आज तक वही होता रहा है जो वो कहती रही और चाहती रही । कनकलता अपने बेटे को लेकर आ गई राजा भी किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था।

वो कनकलता का हाथ छुड़ा कर रचिता के पास भाग कर आ गया। “चाचू चाचू कितना अच्छा है ना हम दोनों का जन्मदिन एक ही दिन होता हम दोनों साथ साथ एक ही केक काटेंगे… वाह कितना मज़ा आएगा!” कहकर राजा ताली बजा कर ख़ुशी ज़ाहिर करने लगा उसको ताली बजाते देखकर रचिता भी अपने नन्हे नन्हे हाथों से ताली बजाने लगी। “ राजा इधर आओ.. चलो केक काटो!” दमयंती जी ने आवाज़ दी “आया दादी..।” कहकर वो रचिता का हाथ पकड़े धीरे धीरे मेज की ओर बढ़ने लगा दमयंती जी राजा को मेज़ के पास खड़ा कर दी और हाथ में चाकू पकड़ कर खड़ी हो गई।

“ दादी रचिता को भी मेरे पास लाओ ना हम दोनों साथ में केक काटेंगे.. है ना रचिता।”कहकर वो चाचू का हाथ पकड़कर अपने पास ले आया जिसकी गोद में रचिता थी। “ कनकलता बहू राजा का केक कटवाओ..।” आँखें दिखाती हुई दमयंती जी ने कहा कनकलता राजा को केक काटने बोलती रही पर वो रचिता के साथ ही केक काटने की जिद करता रहा हार कर दमयंती जी ने  दोनों को एक ही केक काटने का इशारा किया ।

दूसरा छोटा केक दमयंती जी को मुँह चिढ़ाता हुआ सा प्रतीत हो रहा था,पर रतन ने मौक़े की नज़ाकत समझ रचिता और राजा से दूसरा केक भी कटवा दिया। अब बारी आई बच्चों को तोहफ़े देने की। दमयंती जी ने अपने पर्स से दो डिब्बे निकाले। दोनों डिब्बे देखने में बिल्कुल एक जैसे थे। वो एक डिब्बा लेकर राजा की ओर बढ़ी और उसे खोलकर एक सोने की चेन निकाल कर अपने पोते के गले में पहना दी जिसमें एक लॉकेट पर र अक्षर अंकित था। सबने दमयंती जी के लिए ताली बजाकर उनकी प्रशंसा की वाह दादी हो तो ऐसी हर जन्मदिन पर पोते को सोने की चेन देती आ रही है।

अब बारी थी प्यारी सी रचिता के तोहफ़े की सबने अनुमान यही लगाया कि जब पोते को हर बार सोने  की चेन दे रही है तो पोती को भी सोने की ही चेन देंगी क्योंकि ये उसका पहला जन्मदिन है। दूसरा डिब्बा ले कर वो रचिता की ओर बढ़ी और डिब्बे में से  चाँदी की पायल निकाल कर रूचि को देती हुई बोली इसे रचिता को पहना दो। रतन और रूचि को दमयंती जी के इस व्यवहार से दुःख तो हुआ पर माँ है तो उनकी आज्ञा मान  कर बेटी को पायल पहनाने लगे।

अब बारी आई नानी के तोहफ़े की। राजा की नानी ने उसे उसकी पसंद की साइकिल तोहफ़े में दी। रचिता की नानी आगे आई और दो डिब्बे में से एक जैसी सोने की चेन निकाली जिसपर भी र अक्षर अंकित था वो पहले अपनी नातिन के पास गई ढेरों बलैयाँ लेती हुई उसके गले में चेन पहनाते हुए बोली,“ मेरी बेटी की पहली संतान होने की ख़ुशी में ये तोहफ़ा तो कुछ भी नहीं है तू अपने घर का नाम रौशन करना मेरी बच्ची ताकि कभी तुझे बेटे बेटी के फ़र्क़ से ना तौला जाए।” उसके बाद राजा को भी चेन पहनाकर बोली,” अच्छे संस्कार लेकर ज़िन्दगी में आगे बढ़ना, हमेशा अपनी बहन का साथ देना मेरे बच्चे।

” दमयंती जी ने रचिता की नानी की बात सुन ली थी जो उन्होंने धीरे से ही कही थी पर वो सुना ज़रूर दमयंती जी को ही रही थी। दमयंती जी  उस वक़्त तो कुछ नहीं बोली पर उनके चेहरे पर अनेकों भाव आ गए थे । सारे मेहमान खाना खाकर चले गए तो वो ग़ुस्से में रचिता ती नानी से बोली,” क्या कह रही थी आप?” रचिता की नानी ने कहा,” देखिए समधन जी नाराज़ होने की ज़रूरत नहीं है..

आपने दो बेटा ही जना और आप आज तक बेटे के मोह में ही रही.. मेरे तो बेटा भी है और बेटी भी.. आप बेटी की माँ नहीं है , इसलिए बेटी के मन को कभी समझ ही नहीं पाई। मेरी बेटी मेरा ग़ुरूर है वो बेटे से ज़्यादा प्यारी है हर सुख दुख समझती है …आप सोने चाँदी में बच्चों को तौल कर उनके प्यार को कम नहीं कर पाएगी। आपके लाख ना चाहने पर भी राजा ने रचिता के साथ ही केक काटा.. बस आपसे यही कहना चाहती हूँ कि आप दोनों बच्चों को बराबर प्यार दीजिए वो आपके ही बच्चों के ही अंश है इतना भेदभाव शोभा नहीं देता।

माफ़ कीजिएगा मैंने बहुत बोल दिया पर क्या करूँ बेटी की माँ हूँ ना ऐसा व्यवहार ना मैंने कभी देखा है …ना करती हूँ बस इसलिए… खैर अब आपको जैसा उचित लगे करे। अब हम निकलते हैं..आपकी मेहमाननवाज़ी के लिए शुक्रिया।”कहकर रचिता की नानी अपने बेटे बहू के साथ वहाँ से निकल गई “ माँ रचिता की नानी कुछ गलत नहीं कह रही थी..

आप का यह व्यवहार हमारे बच्चों के लिए भी  सही नहीं है, दोनों के बीच अभी से लड़का लड़की का भेद ना करें।आज के आपके व्यवहार से मुझे भी तकलीफ़ हो रही है।दोनों आपके ही तो बच्चे है ना दोनों को एक जैसा तोहफ़ा दे देती तो क्या बिगड़ जाता।” चेहरे पर उदासी और माँ के व्यवहार से आहत राजकिशोर आज चुप ना रह सका रतन और रूचि रचिता को लेकर वहाँ से जाने लगे तभी दमयंती जी ने उन्हें रूकने के लिए कहा और अपने गले में पहनी सोने की चेन निकाल कर रचिता को पहना दी और बोली,“

बच्चों मुझे माफ कर दो.. मेरी आँखों पर ये पट्टी पड़ी थी कि बेटी तो कल को चली जाएगी उनसे क्या मोह रखना बेटा सदा साथ रहेगा उसे लाड करना चाहिए पर ये भूल गई कि बेटी तो कल को चली जाएगी तो कम से कम जितने दिन साथ है उतने दिन तो उन्हें प्यार दुलार दे दें।” कहते हुए वो रचिता को गोद में ले कर ढेरों चुम्बन जड़ दिए मानो साल भर का प्यार…

वो प्यार जो आज तक उसे ना दे सकी वो आज उड़ेल देंगी। “ आज सही मायने में घर में जन्मोत्सव मना है वो भी मेरी माँ के बदले विचारों का।” हँसते हुए रतन ने कहा और सब एक दूसरे के साथ खिलखिला कर हँस पड़े। आज भी बहुत घरों में लड़के लड़की के बीच भेद देखने को मिलेगा। पर वो ये क्यों नहीं समझते कि जो बेटियाँ है वो कल दूसरे घर चली जाएगी तो जितने दिन आपके पास है दुनिया जहां का प्यार दुलार उनपर लुटा दे बाद में कहाँ उन्हें ऐसा मौका मिल पाएगा कि आप के साथ वो ज़्यादा समय व्यतीत कर सकें । इस बारे में आप सब की क्या राय है ज़रूर अवगत करायें।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश

# बेटियाँ जन्मोत्सव प्रतियोगिता 

(पहली रचना)

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