शुरुआत की बात (भाग 2) – लतिका श्रीवास्तव  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

सुबह की चाय तो पल्लवी के लिए भी एकदम जरूरी थी सो वह झटपट चाय बनाने के लिए रसोई की तरफ बढ़ चली अचानक उसे लगा सासू मां भी तो चाय पियेंगी आखिर सुबह से उठी हैं उन्हें भी कितनी देर हो गई है जाते जाते झांक कर पूजा घर में देखा तो आंखें बंद कर पूजा में लीन थी उन्हे देख उसे अपनी मां की याद आ गई आदत वश जैसे वह अपनी मां से बात करती थी वैसे ही उसने आवाज लगा दी मां आप के लिए भी चाय बना रही हूं पूजा खत्म कर आ जाइए…।

एरी इधर आ तुझे कोई अक्कल नही है मां ने कुछ सीखा समझा कर नहीं भेजा …क्या बिलकुल बच्ची है क्या… मैं पूजा कर रही हूं कोई खेल नहीं खेल रही हूं की जल्दी खत्म कर दूं वो भी चाय के लिए!!तुझे चाय की जल्दी मची है बिना पूजा पाठ ध्यान के सुबह उठते ही चाय चाय…!!लानत है ऐसी आदतों पर …!मुझे ऐसी कोई आदत नही है मेरी पूजा बीच में तोड़ दी तूने मुझे फिर से पाठ पढ़ना पड़ेगा…!लगता है अब से दरवाजा बंद करके पूजा करनी पड़ेगी कहते हुए वह उठीं और ठाकुर द्वारे का   दरवाजा धड़ाम से बंद कर दिया…!

एक बार फिर बिचारी नई नवेली बहू पल्लवी जो बेटी की भांति व्यवहार करने लग गई थी फिर से बहू के किरदार में सिमट गई थी  ….मुरझाए चेहरे और मायके की याद में आंखों में भर आए आंसुओ को समेटे चुपचाप चाय बनाने लगी थी।

पूरे सप्ताह उसने हर वह काम करने की कोशिश की जिससे यह पराया घर उसे अपना घर ही लगे…पर  एक बहू पर जब कभी बेटी ने हावी होने की कोशिश की सासू मां ने उसे पटखनी देते हुए आज्ञाकारी सिमटी बहू की सीमा रेखा दिखा दी।

आज उसने अपनी मां की समझाइश को ताला लगा दिया था कि सासू मां को अपनी मां ही समझना।

रोज की तरह आज उसने सासू मां के ठाकुरद्वारे का रुख ही नही किया ना ही उनके चरण स्पर्श करने गई …ना ही कोई बात की !!पहले पूजा तो हो जाए उनकी।

शोभा जी का मन पूजा में लग नही पा रहा था…बहू आज उनके पास आई ही नहीं….!!आज उन्हें अपनी सासू जी याद आ रहीं थीं यही घर जहां वह बहू बनकर आईं थीं…. समय का पहिया द्रुत गति से घूमता रहा और आज वह इसी घर में सास के पद पर पहुंच गईं थीं…इस बीतते हुए समय ने ढेरो कर्तव्यों के निर्वहन के साथ साथ उन्हें बहुत अधिकार संपन्न भी कर दिया था ..!!

पल्लवी दो कप चाय बनाकर बाहर बगीचे में ले आई और पिता जी के साथ बैठ कर चाय पीने ही वाली थी कि अचानक सासू जी आ गईं…!पल्लवी के साथ पिता जी भी चौंक गए आज इतनी जल्दी पूजा खत्म!!

और मेरी चाय कहा हैं!!दो कप देख कर उन्होंने पूछा।

ये मेरी ले लो मैं बाद में पी लूंगा पिताजी ने सुबह का माहौल प्रदूषित होने से बचाने हेतु जल्दी से प्रस्ताव रख दिया।

वो मां आज मैने आपकी चाय नहीं बनाई रोज बना कर रखती थी पर ठंडी हो जाती थी तो मैंने सोचा   …जैसे ही पल्लवी ने कहा सासूजी ने आगे बढ़ कर उसकी चाय पकड़ ली क्या सोचा तूने कि जाने दो कौन बनाए इनके लिए चाय वाय है ना!!

नहीं नहीं मां मैने सोचा कि जब आपकी पूजा खत्म हो जाएगी तभी गरम बना दूंगी…पल्लवी सहम गई थी

अरे इतना डरती क्यों है खुल कर कह ना हां नहीं बनाई चाय जब पीना होगा आप बना लेना….शोभना जी आश्चर्यचकित खड़ी पल्लवी से कहे जा रही थीं

क्यों मायके में अपनी मां से भी ऐसे ही डर कर बात करती थी क्या ..!!इतना ही संकोच करती थी क्या उनसे ..!! नहीं ना!!तो फिर मुझसे क्यों!!

मैं जानती थी बेटा यही होगा एक दिन आज तूने ना मुझे चाय के लिए पूछा ना चरण स्पर्श किया ना मेरे लिए चाय बनाई….!!मैं सास बन कर हुकुम जो चलाने लग गई तेरे हर काम में मीन मेख वैसे ही निकालने लग गई जैसे मेरी सास मेरे साथ करती थी …!अनजाने में ही मैं डांट डपट कर अपनी बहू को अपने कब्जे में अपने रौब मे रखने के प्रयास में लग गई।

लेकिन आज पूजा घर में अपनी सासू जी की तस्वीर पर फूल चढ़ाते  हुए मुझे लगा  मेरे दिल में मेरे मन में अपनी सासू जी के लिए स्नेह भाव से ज्यादा  डर के भाव हैं..मैं उनका सम्मान करती हूं पर उनसे प्यार नही कर पाई…..मैं भी तो अनजाने में वही व्यवहार अपनी नई बहू के साथ कर रही हूं शायद अपने साथ हुए ऐसे ही बर्ताव का प्रभाव है ….!!मुझे आज भी शिकायत है कि मेरी सास ने मेरी कदर कभी नही की…..!

 

पर मुझे महसूस हुआ मेरी बहू जिसके दिल में आज मेरे लिए सम्मान है प्रेम है जो मुझे अपनी सगी मां से ज्यादा मान देने को उत्सुक हो रही है उसकी नित्य सराहना करने के बजाय मैं उसके मन में भी अपने लिए डर चिढ़ और नफरत पैदा कर रही हूं अभी शुरुआत में ही  तो बहू को मां के स्नेह की ज्यादा जरूरत होती है ससुराल में हर क्षण उसे अपना मायका याद आता है और अभी ही मेरा यह बुरा बर्ताव हमेशा के लिए उसे मुझसे दूर कर देगा फिर बुढ़ापे में जब मुझे बेटी समान बहू की जरूरत रहेगी तब तक तो बहुत देर हो जायेगी मेरी बहू अभी से मुझसे थोड़ी थोड़ी दूर होते होते पूरी तरह से दूर चली जायेगी…!

मैं चाहती हूं बेटा तू मुझे अपनी मां जैसी ही माने या माने लेकिन मैं तुझे बेटी जैसा ही मानूं ही नही अपना व्यवहार भी वैसा ही रखूं…. तू मुझे डर कर दबाव में आकर सम्मान ना दे बल्कि दिल से लगाव दे जुड़ाव हो जाए …..तुझे कम से कम यह शिकायत ना रहे कि मेरी सास ने मेरी मेरे कार्यों की मेरे गुणों की कभी कद्र नहीं की!!

इसीलिए आज से पूजा जल्दी से खत्म और सुबह की चाय मैं बनाकर पिलाऊंगी तुझे भी …शोभा जी ने ठगी सी खड़ी पल्लवी का हाथ स्नेह से पकड़ कर कहा।

हां तुम्हारी सास ने तो तुम्हारी कद्र कभी की नहीं अब कम से कम तुम्हारी बहू ही करने लगे……ससुरजी ने हंसते हुए चुटकी ली तो आज पहली बार पल्लवी भी बेटी सी उन्मुक्त हंसी अपनी सासू मां  के साथ  हंस पड़ी थी।

 

लतिका श्रीवास्तव 

#सासूजी तूने मेरी कदर ना जानी

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