श्राद्ध की परिभाषा – अनुज सारस्वत

 

“बेटा चलो जल्दी नहा धोकर तैयार हो जाओ पंडित जी आने वाले होंगे आज दादा जी के श्राद्ध है ना”

अमित ने अपनी 7 वर्षीय बेटी श्रुति को  बोला , पूरा परिवार नहा धोकर तैयारी में लग गया, अमित पंडित जी के द्वारा बताई गई सामग्री के साथ तर्पण की व्यवस्था करने में जुट गया और उसकी पत्नी किचन में पूड़ी कचौड़ी, दही बड़े, सब्जी बनाने की तैयारी करने लगी ,पंडित जी आये और पूरे विधि विधान से  श्राद्ध तर्पण पूरा कराया, उन्होंने  कुछ पूडी गाय को कुछ पूडी कौवा को कुछ कुत्तों को कुछ चिड़ियों के लिए पंडित जी ने निकलवाई ।

यह सब बेटी श्रुति की आंखों में कैद होता जा रहा था, सारी पूजा समाप्त होने के बाद पंडित जी को भोजन और दक्षिणा देने के बाद सारे परिवार ने पैर छूकर आशीर्वाद लिया और पंडित जी को ससम्मान विदा किया।

अमित अपने कमरे में घुस आई था कि उसकी बेटी ने अर्जुन की भाँति  प्रश्नों की बौछार शुरू कर दी इस प्रकार

“पापा यह श्राद्ध क्यों मनाते हैं?

इतना सारा खाना पीना क्यों बनाया जाता है?

पंडित जी को क्यों बुलाया आपने ?



उन्होंने इतना सारा खाना जानवरों को क्यो डलवाया ?

फिर अपने पंडित जी को कपड़े और पैसे क्यों दिए ?”

अमित मुस्कुराया उसने एक एक करके बताना शुरू किया

“बेटा श्राद्ध अपने पूर्वजों को याद करने को सब होता है देखो जैसे श्री चंद्रशेखर आजाद जयंती ,भगत सिंह जयंती, गांधी जयंती ,नेहरू जयंती होती है उसी प्रकार हमारे पूर्वजों को थैंक्स बोलने का दिन होता है, और देखो हमारी संस्कृति में पूरी प्रकृति का ख्याल भी रखा जाता है पंडित जी को बुलाना ,इसी बहाने दान देने की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है और इनके परिवार का भरण-पोषण हो जाता है।

एक दूसरे की मदद करने से ही सृष्टि चलती है ।

और और यह लोग वेद मंत्रों के स्पेशलिस्ट होते हैं जिससे घर का वातावरण भी शुद्ध हो जाता है पॉजिटिव एनर्जी आती है ,अब देखो हमारे सारे त्योहारों में प्रकृति का पशु पक्षियों का बहुत ध्यान रखा गया जैसे तुमने देखा होगा मम्मी  गाय की रोटी बनाती है जिससे घूमने वाली गाय को मिल जाता है रही बात कौवो और पक्षियों को  खिलाने की बात ,देखो बेटा कौवा पक्षी जो होता है वह पीपल और बरगद के बीज खाता है ज्यादातर,इन दिनों कौवा का अंडे का टाईम होता है जिससे इन्हे खाने की बहुत जरूरत होती है, और पीपल बरगद के वृक्ष को उगाने में इनका ही बहुत बड़ा रोल है क्योंकि कोई भी पीपल और बरगद नहीं उगाता ,यह पक्षी उसके बीज और फल खाकर बीट करते हैं, और यह पेड़ उग आते हैं जगह-जगह,हमें इन्हे विलुप्त होने से बचाना है, और तुमने साइंस में पड़ा होगा पीपल ट्री ऑक्सीजन देता है 24 घंटे, और बरगद के तो अनगिनत लाभ है ,तो देखा बेटा उसकी असली परिभाषा क्या होती है  श्राद्ध की। वैसे तो अपनी इच्छा है करो या नही लेकिन मुझे न करने का कोई कारण नजर नही आया करने के बहुत कारण जो है “

यह सब सुनकर श्रुति को बहुत अच्छा लगा और छत पर जाकर खुद कौवा को  खाना खिलाया ।

-अनुज सारस्वत की कलम से

(स्वरचित एवं मौलिक रचना)

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