चलो घर चलें -रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

“आज क्या सत्यानाश कर दिया तुमने खाने का… एक चीज में स्वाद नहीं है… कच्ची अधपकी रोटियां… बेस्वाद सब्जी… एक सलाद तक ढंग से नहीं काट पाई…!”

” अरे यह क्या बात हुई… एक ही रट लगाए हुए हैं आप… मैंने कहा ना आज मेरा मूड नहीं था खाना बनाने का… तो बिगड़े मूड में खाना भी तो वैसा ही बनेगा…!”

” दिन भर का थका हारा इंसान घर आ रहा है और घर में तुम्हारा मूड देखते बैठा रहे… इतना ही मन नहीं था खाना बनाने का तो छोड़ देती… मैं खुद बना लेता… नहीं तो बाहर खा लेता… इतना गंदा खाना तो नहीं खाना पड़ता…!”

” अरे समीर एक बार यह तो पूछ लीजिए कि मूड क्यों नहीं था…!”

” क्या पूछूं मूड क्यों नहीं था… उतना सुनने की शक्ति मुझ में भी नहीं है…!”

 समीर नेहा को चार बातें सुनाकर सोने चला गया…

 नेहा गुस्से में पूरा घर… खाना सब वैसे ही छोड़ कर सोफे पर ही सो गई… सुबह समीर की आंख खुली तो घर, किचन, खाना सब फैला हुआ था… नेहा सोफे पर पड़ी थी…

 समीर बिना कुछ बोले टेबल पर से खाना उठाकर किचन में रखने लगा.… तो बर्तनों की हड़बड़ाहट से नेहा की आंख खुल गई… समीर को सब साफ सफाई करता देखा उसका हाथ बंटाने तुरंत किचन पहुंच गई…” आप छोड़ दीजिए… आपके ऑफिस के लिए देर हो जाएगी… मैं कर लूंगी… वह रात जरा……!

 समीर बीच में ही बोल पड़ा…” नहीं नहीं तुम आराम करो ना… तुम तो महारानी हो… रात को खाना बनाने का मन नहीं था… सुबह साफ सफाई का मन नहीं होगा… अगर तुम्हें कुछ करने का मन ही नहीं करता तो तुम यहां करती क्या हो…!”

” क्या मतलब है आपका…!”

” मतलब क्या… चली जाओ ना जहां मन लगता है…!”

” यह क्या बात बोल रहे हैं…!”

” ठीक ही तो है… चली जाओ मायके बैठी रहना रानी बनकर… कम से कम मैं तसल्ली तो कर लूंगा कि जैसे पहले अकेला था वैसे अब भी हूं…!

 नेहा किचन से निकल कर अपने कमरे में चली गई…

 समीर ने कभी इतना गुस्सा नहीं किया था… एक साल हो गए थे शादी को.… पर अभी तक ऐसी लड़ाई नहीं हुई थी कि समीर उसे वापस जाने को कह दे…

 उसका यह उलाहना नेहा बर्दाश्त नहीं कर पाई… नेहा ने गुस्से में अपना बैग उतारा उसमें कपड़े डालकर… दस मिनट के अंदर ही दरवाजा खोलकर निकल गई… फट से दरवाजा बंद करते बोली…” जा रही हूं… जहां मन लगता है… ठीक है ना… आराम से रहिए…!”

 समीर ने भी पलट कर कोई जवाब नहीं दिया… मायका पास में रहने का ऐसा फायदा अक्सर ही लड़कियां उठा लेती हैं… दो दिन हो गए.… नेहा और समीर की आपस में बातचीत नहीं हुई… शाम को समीर की मां ने समीर को फोन किया…”क्या बात है बेटा… नेहा मायके चली गई… तुम नहीं गए…?”

” मैं क्यों जाऊं… उसका घर है… वह जाए…!”

” यह क्या बात हुई… झगड़ा हुआ क्या…?”

 समीर से रहा नहीं गया… उसने दो दिन पहले का पूरा वाकया मां को कह सुनाया…” अरे समीर बेटा… तुम्हारी बात को जाने बिना गुस्सा करने की आदत नहीं गई अभी तक… नेहा ने तो उसी दिन मुझे फोन किया था सुबह में… उसकी मां की तबीयत थोड़ी खराब थी… इसलिए वह मायके जाना चाहती थी… मैंने ही कहा कि पहले तुझे आ जाने दे… तुमसे सारी बातें कर ले… फिर चली जाए… तुमने पूछा भी की क्या हुआ…!”

” नहीं मां…!”

” देखो बेटा… इसलिए कहते हैं ना कि दो पल के गुस्से से प्यार भरा रिश्ता बिखर जाता है… अगर उसी वक्त पूछ लेते की क्या हुआ मूड क्यों खराब है तो क्या बिगड़ जाता…तुम्हारी पत्नी है ब्याह कर लाए हो…उसकी परेशानी जरूरत सबका ख्याल रखना तो तुम्हारी जिम्मेदारी है ना… जाओ अभी जाओ… समधन जी से भी मिल लेना… और नेहा को भी ले आना… ठीक है ना… और आकर मुझे बताना जरूर ठीक ना…!”

” हां मां…!”

 समीर तुरंत ही नेहा के घर पहुंच गया… नेहा की मां ठीक थीं… थोड़ा बुखार था कुछ दिनों से पर आज नहीं था… नेहा घर में सबसे बड़ी थी… दोनों छोटे भाई बहनों और पापा की जिम्मेदारी हमेशा से निभाती आई थी… इसलिए मां को बीमार सुनकर परेशान हो गई थी…

 समीर के वहां पहुंचने से सभी को बहुत खुशी हुई… समीर ने मौका पाते ही नेहा से कहा…” नेहा मुझे माफ कर दो.… मुझे नहीं पता था मम्मी जी के बारे में…!”

” आप सुनिएगा तब ना…!”

” अच्छा पक्का सुनूंगा… चलो आज चलोगी सुनाने… या अभी और मां की सेवा करने का इरादा है…!”

 नेहा ने शर्माते हुए कहा…” ना… मां की सेवा हो गई… मुझे भी माफ कर दो… गुस्से में निकल आई…!”

” कोई बात नहीं… गलती मेरी ही थी… मां से बात ना हुई होती तो शायद मुझे अपनी गलती का एहसास ही नहीं होता… चलो नेहा अपने घर चलें…!”

स्वलिखित

रश्मि झा मिश्रा

#दो पल के गुस्से से प्यार भरा रिश्ता बिखर जाता है

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