डायरी के पन्ने – नीतिका गुप्ता 

रणदीप काफी देर से मंगला की फोटो को एकटक  देख रहा था….. जैसे कि उसे शिकायत कर रहा हो कि क्यों जीवन के सफर में उसे इतनी जल्दी अकेला छोड़ कर चली गई ….??

रणदीप के हाथ में मंगला की लिखी हुई डायरी थी जो वह अपनी बेटी रुही के जन्म के बाद से लिखती थी…. रूही के जन्म के कुछ महीनों बाद मंगला को पता लगा कि उसे कैंसर है… बहुत इलाज हुआ था,, दवाइयां चलीं,, कीमोथेरेपी हुआ,, हर बार एक उम्मीद जाग जाती थी कि अब बस सब कुछ ठीक हो गया… लेकिन कुछ ही समय बाद फिर से वही सब परेशानी शुरू हो जाती…।

मंगला को शायद अंदाजा था कि यह बीमारी लाइलाज हो सकती है… वह चाहती थी कि उसकी बेटी उसे जाने और रणदीप अपनी बेटी को समझ सके… इसलिए मंगला ने डायरी लिखना शुरू किया,, उसमें उसने एक लड़की से संबंधित हर छोटी बड़ी बात लिखी …उसकी परेशानियां, उसका डर, उसकी भावनाएं.. जिससे रणदीप रूही का एक बेस्ट पापा बन सके।

मंगला का डर सच साबित हुआ और वह अपनी बीमारी से हार गई ….अपनी दूधमुंही बच्ची को रणदीप की बाहों में छोड़ कर वह इस दुनिया से हमेशा के लिए अलविदा हो गई…।

 

मंगला के जाने के बाद रणदीप ने खुद को रूही का माता और पिता दोनों ही बना लिया.. उसने अपना बिजनेस भी घर से ही करना शुरू कर दिया।

अपने सपनों को तिलांजलि देकर वह सिर्फ रुही की परवरिश में लग गया और उसकी परवरिश सफल भी हुई।

रूही हमेशा अपने क्लास में अब्बल आती है और हर तरह की एक्टिविटीज में भाग लेती है अपने पापा की जान है वह…।

जो भी रुही को देखता है बस रणदीप की ही तारीफ करता है कि उसने अपनी बेटी को कितने अच्छे संस्कार दिए हैं… बिन मां की बच्ची को सीने से लगाकर पाला है।

 

आज रुही अचानक से ही स्कूल से हाफ डे लेकर घर आ गई…. उसको देखकर रणदीप ने पूछा भी ,”क्या उसकी तबीयत खराब है?”


मगर बिना कोई जवाब दिए उदास सी, चुपचाप सी, अपने कमरे की तरफ चली गई.. रणदीप की नजरों से उसकी स्कर्ट पर लगा हुआ वह लाल दाग नहीं छुप पाया…..।

 

रणदीप जान गया कि उसकी छोटी सी रूही किशोरावस्था में प्रवेश कर चुकी है और आज उसको अपनी मां की सबसे ज्यादा जरूरत है।

 

उसी समय से रणदीप बहुत परेशान है कि जीवन के इस नए चरण, इस नए पड़ाव के बारे में उसे क्या और कैसे समझाए?

 

एक आदमी के लिए बहुत ही मुश्किल है अपनी बेटी से इस बारे में बात करना लेकिन रणदीप को यह करना है क्योंकि वह रूही का सिर्फ पिता ही नहीं उसकी मां भी है….।

 

रणदीप को पूरा यकीन था कि मंगला ने अपनी डायरी में इस बारे में जरूर कुछ लिखा होगा और वह मंगला की डायरी को पढ़कर रुही से बात करने और उसकी उलझन को सुलझाने का तरीका समझ लेता है।

 

अपनी रुही के जीवन के इस नए पड़ाव में उसकी मां की तरह उसका साथ देने के लिए पूरी तरह से तैयार है…. पर पहले बाजार जाता है वहां से रुही के लिए कुछ जरूरी सामान खरीद कर लाता है,, इंटरनेट से कुछ जानकारी इकट्ठा करता है,, और रुही का पसंदीदा खाना बनाकर उसके कमरे में ले जाता है।

 

बेटियां पापा की परी होती है लेकिन कुछ समय ऐसे होते हैं जब उन्हें मां की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। आज का समय बदल रहा है पिता भी अपनी बेटियों के दोस्त बनकर उनकी हर समस्याओं को, भावनाओं को समझ रहे हैं और समाधान भी कर रहे हैं

 

  मेरी इस रचना के बारे में आप अपने बहुमूल्य विचार अवश्य बताइएगा।

 

स्वरचित एवं मौलिक रचना

   नीतिका गुप्ता 

 

 

 

 

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