सासु मां ने दिया मुझे प्यारा पिया-सुधा जैन

सुनंदा बहुत ही सुलझी हुई, समझदार और उदारवादी दृष्टिकोण की महिला है। बचपन से ही घर के संस्कार ,अपनी मां का ममता पूर्ण प्यारा व्यवहार, अपने पिताजी की सादगी सरलता, और भावुकता उसके  हृदय में रच बस गई है। अपनी उत्तम शिक्षा के कारण वह विद्यालय में शिक्षिका है।

मन में सपनों का संसार बसाए वह अपने ससुराल आई ।ससुराल में उसकी सासू मां नहीं थे। वर्षों पहले वे बीमारी के कारण चल बसे। घर पर उसकी भावनाओं का सम्मान करने वाले, उसके मन को समझने वाले, उसकी शिक्षा का सम्मान करने वाले ससुर जी हमेशा साथ रहे, और अपने ससुराल के अनुभव बहुत मीठे रहे। अपने शासकीय, सामाजिक, पारिवारिक दायित्व का सुनंदा ने बहुत अच्छे से निर्वहन किया। दो प्यारे प्यारे बच्चों, अनुपम और अनाया की मां बनी।  बच्चों ने अपनी शिक्षा पूरी की और सुयोग्य वर देखकर उन्होंने अपनी बिटिया अनाया की शादी अंकित से कर दी ।अनुपम की जॉब बेंगलुरु में लग गई। अब सुनंदा अनुपम की शादी की कल्पना करने लगी, और सास बहू के संबंधों के बारे में अपने मन को टटोलने लगी।

जब अपने आसपास वह सास और बहू के बीच की अदृश्य दीवार को देखती, तो उसके मन में हमेशा बहुत दुख होता।

क्या पता ईश्वर ने सास और बहू का रिश्ता ऐसा क्यों बनाया है? एक नहीं, अपने परिवेश की कई सासू मां और कई बहुओं को वह जानती है, समझती है, पर कहीं पर भी उसे सास बहू खुश नहीं दिखाई देती… अगर सास से पूछो तो बहुओं के लिए बहुत सारी शिकायतें उनके मन में रहती। बहू को किसी बात का कोई ढंग नहीं है ,कभी भी कुछ भी कपड़े पहन लेती है, अपना किचन व्यवस्थित नहीं रखती, चीजों की सार संभाल नहीं करती, रिश्तेदारी निभाना नहीं जानती, क्या पता इन्हें अपने माता-पिता से कुछ संस्कार भी मिले हैं या नहीं?

ऐसी एक नहीं कई शिकायत  सभी सासु मां के मन में रहती… जब कभी बहू के मन को जानना चाहा तो बहूओं का हमेशा कहना होता” मम्मी जी को हमारा कोई काम पसंद ही नहीं आता ,घर पर अगर खाना बनाते समय कोई चीज बच जाए तो मम्मी जी को बहुत नागवार गुजरता है। घर की हर चीज दूध, दही, फल सभी को निगाह में रखते हैं। हम कुछ भी पहने, उनको अच्छा ही नहीं लगता। कभी हम खुशी-खुशी उनसे कुछ बात भी करना चाहे तो वे जवाब ताने में ही देती है, ऐसा लगता है ससुराल नहीं है, जेल है।



सभी की बातचीत सुनकर सुनंदा को लगता, वह एसी सास नहीं बनेगी… वह अपनी बहू को बिटिया जैसा भरपूर प्यार देगी…  बहु जिस रूप में भी मिलेगी, उसको स्वीकार करेगी… अपने आंचल को प्यार से फैला कर उससे प्यार करेगी…

 अनुपम के लिए सुनंदा लड़की की तलाश करने लगी। अनुपम खुली विचारधारा का समझदार और प्रगतिशील है, अपनी मम्मी के मन को समझता है। वह यह भी समझता है कि मेरे हमउम्र काका, बुआ, मामा सभी के बच्चों के रिश्ते हो गए हैं, और मेरी मम्मी इस बात की बहुत चिंता करती है कि मेरे अनुपम की शादी कब होगी? अनुपम अपनी मम्मी का मन रखने के लिए तैयार होता है, और कहता है ,”मम्मी चलो लड़की देखते हैं” सुनंदा  बहुत उतावली हो जाती है, और दो तीन लड़कियों को देखती हैं, कभी ऊंचाई  कम लगती है, कभी  रंग समझ में नहीं आता, इस तरह से कोई रिश्ता नहीं जमा।

उनका बेटा उन्हें समझाता है, “मम्मी शादी जीवन भर का रिश्ता है ,सबसे महत्वपूर्ण संबंध है ,अतः मैं देख परख कर इस दिशा में आगे बढूंगा, आप चिंता मत करो”

सुनंदा  सोचती रही और अनुपम के हम उम्र सभी भाई बहनों की शादी हो गई। सभी की बहूएं भी आ गई ।सभी बहुएं उसे बहुत अच्छी और प्यारी लगती ,और वह अपने परिवार की सभी बहुओं पर बहुत प्यार लुटाती। कुछ समय बाद अनुपम ने अपने पसंद की लड़की  सौम्या के बारे में बताया, बोला, “मम्मी  सौम्या मेरे साथ ही जॉब करती है ,स्वभाव की अच्छी है, आत्मनिर्भर लड़की है, या यूं कहूं कि आपके जैसी है”…

सुनंदा खुश हो गई, सुनंदा ने अपने पति राजेश को कहा कि अब हमें अनुपम के लिए लड़की नहीं देखना है, और वह अपने ऑफिस की साथी सौम्या से शादी करना चाहता है। उन दोनों एक दूसरे को समझ लिया है। और जीवन की राह पर आगे बढ़ना चाह रहे हैं। राजेश पहले तो नानुकुर करने लगे ,क्योंकि उनके परिवार में किसी ने भी प्रेम विवाह नहीं किया था ।लेकिन सुनंदा के ससुर जी बच्चों का मनोविज्ञान समझते थे, और उन्होंने सहर्ष  स्वीकृति दे दी। सौम्या के माता-पिता उनके घर पर आए। आपस में सौहार्दपूर्ण वातावरण में रिश्ते के लिए मुहर लग गई। सगाई का दिन तय हुआ, और सुनंदा, उनके पति उनकी बिटियां अनाया ,दामाद नंदोई ,देवर भाई, सभी के साथ बेंगलुरु जाकर उन्होंने खुशी-खुशी सगाई की रस्म की। सुनंदा ने उसी दिन सौम्या को देखा, और प्यार से उसे गले लगाया, और सौम्या में उसे अपनी बेटी अनाया की छवि भी दिखाई दी। सगाई के बाद शादी की तिथि तय हुई, और सौम्या के परिवार के 30 सदस्यों और सुनंदा के पारिवारिक आत्मीय जनों के साथ बहुत शालीनता और सादगी भरे वातावरण में विवाह संपन्न हुआ।



सुनंदा, राजेश ,सुनंदा के ससुर जी, अनाया और सभी पारिवारिक जन बहुत खुश थे.. बहुत ही प्यार ,मनुहार और कुमकुम भरे पैरों से, पायल छनकाती हुई सौम्या ने उनके घर में प्रवेश किया। सुनंदा बलिहारी हो रही थी। अपनी बहू की नजर भी उतारी.. सभी रस्में  हुई।  सभी बहुत खुश थे ।शादी के 1 सप्ताह बाद ही उनकी यूरोप भ्रमण की टिकट थी ।शादी के दो-तीन दिन बाद ही राजेश की तबीयत खराब हो गई ,उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा, तब सौम्या ने कहा “अनुपम हम लोग अपनी टिकट कैंसिल करते हैं, अंकल की तबीयत ठीक नहीं है, तब सुनंदा ने कहा” नहीं कोई बात नहीं, तुम्हारी टिकट बड़ी महंगी है, और पापा की तबीयत अब ठीक लग रही है, तुम जा सकते हो”  नियत तिथि पर दोनों ने  विदा ली। सुनंदा की आंखों में आंसू थे, सौम्या उनके पास आई और कहां “आंटी रोते नहीं और  सुनंदा के गले से  लग गई । सुनंदा ने कहा, “हमें प्यार से गले भी लगाती हो और हमें अंकल आंटी भी कहती हो, मम्मी पापा बोलो ना, वह हंसने लगी.. क्या फर्क पड़ता है आंटी ..

सुनंदा ने इस बात को सहजता से ले लिया.. दोनों बच्चे चले गए। बिटिया भी अपने ससुराल चली गई …सुनंदा और राजेश रह गए ।शादी के बाद पहली दिवाली पर दोनों आए ।सौम्या जींस टॉप पहन कर आई थी। आसपास के सब लोगों के लिए यह बात थोड़ी अजूबी थी, क्योंकि छोटे शहर में बहू क्या पहनती है, कैसे बोलती है, कैसे चलती है,? इस बात को बहुत गौर किया जाता है। सुनंदा ने अपने बेटे की  तरफ प्यार से देखा तो बेटे ने कहा” मम्मा सौम्या जो पहनती है,  जिसमें अपने आप को आरामदायक महसूस करती है, वही पहन कर आ गई, अगर मैं उसे साड़ी या सूट पहनाता तो फिर हम एयरपोर्ट पर कपड़े बदलते और फिर हमेशा ऐसा ही करना पड़ता और हम दोनों की जिंदगी इसी में उलझ कर रह जाती, वह जैसी है आपको उसी रूप में स्वीकार करना होगा”

सुनंदा को यह बात अच्छी भी लगी, और उसने किसी की परवाह न करके सौम्या  के साथ बहुत प्यार भरा व्यवहार रखा। सौम्या कब उठती, घर पर कितना काम करती, क्या पहनती,? इस बात को कभी भी तवज्जो नहीं दी। अपना पूरा प्यार, स्नेह, अपनापन उस पर लूटाने की कोशिश करती रही … सौम्या अच्छी लड़की है, वह खुश रहती है, प्यार से बोलती है, घर के कामों में बहुत रमी हुई नहीं है, लेकिन रिश्तो का सम्मान उसके हृदय में है ,जब सभी पारिवारिकजन बैठकर उसी के सामने उसके कपड़े पहनावे आदि के बारे में टिप्पणी करने लगे तो उसने बड़ी सहजता से कहा कि” मैं जैसी हूं, वैसी ही रहूंगी, आज भी कल भी, और वर्षों बाद भी, और मैं ही क्यों? हर लड़की जिस स्थिति में, जिस पहनावे में कंफर्ट महसूस करती हो वैसे ही हमेशा रहे, तो क्या बुराई है ?उसने अपनी बात रख दी। सुनंदा ने तो मन ही मन समझ लिया था कि सास और बहू के मन की अदृश्य दीवार वह तोड़कर रहेगी, अतः सौम्या को उसी रूप में प्यार से स्वीकार किया। त्योहार  के बाद विदा कर बच्चे चले गए। कुछ समय बाद सुनंदा और राजेश भी उनके पास बेंगलुरु गए। अनुपम और सौम्या दोनों ने उनके लिए सब कुछ तैयार रखा था। पलंग पर प्यारी सी चादर बिछी हुई थी। एक अलमारी उनके लिए खाली कर दी गई थी। पापा और मम्मी के लिए खोपरे का तेल, बोरोलीन,  निव्या क्रीम ,पोंड्स पाउडर का डिब्बा सभी कुछ उसी प्रकार जमा कर रखा था, जैसा कि उनके घर पर रहता था। सुनंदा और राजेश खुश हो गए। सुनंदा ने देखा, उनका बेटा अनुपम और सौम्या मिलजुल कर घर का काम करते हैं। अपने बेटे अनुपम को उन्होंने स्त्रियों का सम्मान करने का संस्कार तो दिया था, पर घर के कार्य करने की इतनी आदत नहीं डाली थी, लेकिन यहां पर वह देख रहे थे कि अनुपम बराबर काम करता है। दोनों आपसी सामंजस्य से अपने घर को प्यार से चला रहे हैं।  घर पर खाना बनाने वाली आती है। वह घर पर कुछ काम करना चाहती तो सौम्या प्यार से बोलती” आंटी आप तो आराम कीजिए ,घर पर भी आप बहुत काम करते हैं”



सुनंदा सोचने लगी, कोई बात नहीं ,मेरी बहू खाना नहीं बना रही तो क्या हुआ? हमें खाना प्यार से परोस तो रही है। हम सब मिलकर साथ में खाना खाते। उनके साथ  ऊंटी की सैर की…बड़ा ही आनंद आया ।किसी भी पल  सुनंदा को यह नहीं लगा कि वह बहू के साथ में है। जब भी कभी उसे कहीं चढ़ना पड़ता तो सौम्या झटपट हाथ दे देती.. अच्छे रिसॉर्ट में रुके .. खूब आनंद लिया.. फोटो खिंचवाई…स्विमिंग भी की.. और इस तरह से अपने बच्चों के साथ यात्रा का आनंद लिया।

जब भी वे बेंगलुरु जाते हैं, एक नई जगह पर घूमने का प्लान बनाते हैं ।सौम्या उन्हें शॉपिंग कराने ले जाती है ।बढ़िया मसूरी सिल्क की साड़ी दिलाई है …मॉल में जाकर सुविधा युक्त सलवार सूट ,चप्पल ,लिपस्टिक नेल पेंट की खरीदी करवाई ,और सुनंदा बहुत खुश है। सुनंदा सोचती है, सास और बहू के बीच में जो पूर्वाग्रह है, उनको खत्म कर देना चाहिए। सास भी अपनी जगह सही है ।बहू भी अपनी जगह सही है रिश्तो में थोड़ी स्पेस भी जरूरी है… एक दूसरे को समझना और एक दूसरे को उसी रूप में स्वीकार करना भी जरूरी है, तभी हम जीवन का अतुलित आनंद ले पाएंगे.. सुनंदा को वह क्षण भी प्रतिपल याद आता है, जब उसके जन्मदिन पर प्यारी सौम्या ने यह  गाना गाया” मां ने तो हमें जन्म दिया, तुमने दिया हमें प्यारा पिया, सौ सौ साल जियो हमारी सासू जी”

सुनंदा हमेशा महसूस करती है कि उसने सास और बहू की अदृश्य और ऊंची दीवार को  लांघने की कोशिश अवश्य की है। यह सुनंदा का अपना अनुभव है। सौम्या का अनुभव क्या है ?इसका सुनंदा को पता नहीं है।

कहानी लेखिका: सुधा जैन

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