संस्कारों की लेखनी – डॉ. पारुल अग्रवाल  : Moral stories in hindi

आज दुल्हन के लिबास में रिया बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। ऐसा लग रहा था कि मानो जैसे कोई अप्सरा उतर आई हो। दिव्या की तो जैसे जान बसती थी उसमें,उसकी विदाई का सोच सोच कर दिव्या का कलेजा मुंह को आ जाता। अपने अधर पर मुस्कान सजाए वो अंदर ही अंदर टूट रही थी।

पर कहते हैं ना कि ये विधि का विधान है। बड़े से बड़े राजा महाराजा भी अपनी बेटी को घर नहीं रख पाए।इतने दिन से जो घर शादी की धूमधाम और रिया की शरारतों से गुलजार था आज विदाई के बाद शांत पड़ा था। रिया की विदाई के बाद दिव्या को ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके शरीर का कोई हिस्सा उससे दूर चला गया हो। पर आज कहीं ना कहीं उसके दिल में संतोष था कि उसने अपनी ज़िम्मेदारी को अच्छे से पूरा किया था और विधाता ने जो नियति उसके लिए लिखी थी उसको खुद अपनी लेखनी से पूर्ण कर दिया था।

आज रिया को विदा करने के बाद और सभी मेहमानों के भी विदा होने के पश्चात जब दिव्या थोड़ी देर के लिए अपने कमरे में आराम करने गई तब उसकी आंखों के सामने 25 वर्ष पूर्व का समय घूमने लगा। असल में रिया उसके पति की संतान तो थी पर उसकी बेटी नहीं थी।

इस बात का पता उसके माता पिता और सास ससुर किसी को भी नहीं था। इस राज़ को उसने अपने सीने में दफन किया हुआ था। उसे याद आ रहा था कि आज से 28-29 साल पहले वो मानव की दुल्हन बनकर अपनी ससुराल आई थी। शादी के तीन चार साल पलक झपकते पति के प्यार की खुमारी में ही बीत गए थे।

इस बीच वो दो साल के बेटे की मां बन गई थी।उसका पति मानव कंप्यूटर कंपनी में उच्च पद पर था।एक दिन खबर मिलती है कि कंपनी उसको प्रोजेक्ट पर अमेरिका भेज रही थी। पर अभी दिव्या और बेटा साथ नहीं जा सकते थे क्योंकि दिव्या और बेटे के वीजा की प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो पाई थी।

दिव्या को लगा थोड़े समय की ही तो बात है उसका वीजा बनते ही वो मानव के साथ होगी। मानव चला गया। दिव्या और बेटे के अमेरिका जाने में वीजा संबंधी सारे पेपर्स बनने में लगभग एक साल लग गया पर तब भी वो खुश थी कि अब वो अपने मानव के पास होगी। दिव्या बेटे के साथ अमेरिका पहुंचती है तो उसको मानव खोया खोया लगता है।

वो पूछने की कोशिश भी करती है पर मानव उसको काम का दवाब और इतने दिन अकेले रहने का हवाला देकर टाल मटोल कर जाता है। अभी वो अमेरिका में अपनी गृहस्थी संभाल ही रही होती है तभी उनके घर एक सुबह मानव के घर ऑफिस में साथ काम करने वाली अमेरिकन लड़की मार्था आती है और खूब तेज आवाज़ में मानव पर चिल्लाना शुरू कर देती है।

पहले तो दिव्या को कुछ समझ नहीं आता वो मानव से पूछती है ये सब क्या है? अब मानव जो उसको बताता है वो ये था कि अमेरिका आने के बाद वो अपनेआप को काफी अकेला महसूस करता था ऐसे में उसकी दोस्ती मार्था से हुई जो कि काफी हंसमुख स्वभाव की थी। धीरे धीरे मार्था और वो ऑफिस के बाद का समय एक साथ बिताने लगे।

एक दिन ऑफिस में पार्टी थी और अगले दिन छुट्टी थी। पार्टी में देर तक पीने पिलाने का दौर चला।मानव ने भी औरो को देखा देखी ज्यादा ही पी ली थी।उसको इतना पीने की आदत नहीं थी। वो नशे में चूर था। कब मार्था उसे अपने साथ ले गई उसको याद भी नहीं है। वैसे भी वो बिल्कुल अकेला पड़ गया था। दिव्या को बहुत याद करता था।

वैसे भी उसके वीजा की प्रक्रिया में अभी समय लग रहा था। नशे की हालत में उसके और मार्था के बीच सारी दूरियां समाप्त हो गई। अमेरिका का वातावरण वैसे भी काफ़ी उन्मुक्त है। अब मार्था उसकी प्रेमिका की तरह रहने लगी थी,पर मानव को जल्द ही समझ आ गया था कि मार्था के लिए मानव सिर्फ मन बहलाने का माध्यम है पर अब कुछ नहीं हो सकता है। अब मार्था उसके बच्चे की मां भी बनने वाली है। उसने मानव से पैसा ऐंठने के लिए गर्भपात भी नहीं करवाया।

वैसे भी यहां का कानून बहुत कठोर है। वो मानव के विरुद्ध ही फैसला देगा। ये सब सुनकर एक बार तो दिव्या सुन्न पड़ गई। उसे अपने चारों तरफ अंधेरा दिख रहा था। जिसको अपनी दुनिया माना आज उसने ही दुनिया उजाड़ दी। फिर दिव्या ने अपने दो साल के बेटे की तरफ देखा और एक फैसला लिया। उसने मार्था से बात की।

अभी बच्चा होने में चार महीने का समय था। मार्था को बच्चे से कोई लगाव भी नहीं था। उसको तो सिर्फ पैसा चाहिए था। वैसे भी उसके लिए तो आज मानव था और कल कोई दूसरा। वो अपनी स्वतंत्र ज़िंदगी में किसी का हस्तक्षेप भी नहीं चाहती थी। वैसे भी अमेरिका में ये सब आम बात थी। दिव्या ने मार्था से कहा कि वो बच्चे के जन्म देने के बाद उसको कानूनी तौर पर गोद ले लगी। इसके लिए मार्था जितना कहेगी उसको उतना पैसा दे दिया जायेगा।

मार्था ने जितना पैसा मांगा उसकी किसी तरह मानव और दिव्या ने चुकाया। इस चक्कर में उनकी बैंक में रखी सारी धनराशि खत्म हो गई। चार महीने बाद मार्था ने सुंदर सी बेटी को जन्म दिया। बिल्कुल रुई के फाहे सी कोमल थी। मार्था को तो उससे कोई लगाव नहीं था। वो तो वैसे भी इस झंझट से मुक्त होना चाहती थी।

मार्था को एक अच्छी धनराशि देने के बाद उसने बेटी को दिव्या को दे दिया। इधर मानव अपने किए पर बहुत शर्मिंदा था वो दिव्या से माफ़ी मांगना चाहता था पर दिव्या के मन में उसके लिए सारी भावनाएं समाप्त हो चुकी थी। वो उसके साथ थी तो सिर्फ बेटे की वजह से क्योंकि उसको लगता था कि एक संतान के पालन पोषण के लिए माता और पिता दोनो की आवश्यकता है। वैसे भी खुद उसने अपने माता पिता को बहुत कम उम्र में खो दिया था। यही बात उसके मन में मार्था और मानव के अजन्मे बच्चे को लेकर आई थी।

दिव्या के सास ससुर भी इन सब से अनजान थे। वैसे भी वो बीमार रहते थे। दिव्या उनको ये सब बताकर दुखी नहीं करना चाहती थी। वैसे भी उसका मानना था कि ये उसकी ज़िंदगी का संघर्ष है जिसे उसको खुद ही लड़ना है। अब बच्ची भी उसकी ही ज़िंदगी का हिस्सा थी।

उसने बेटी का नाम रिया रखा। भारत में रहने वाले सभी रिश्तेदारों को लगभग साल होने के बाद बेटी के होने खबर दी। बेटी वैसे भी जन्म के समय ही कम वज़न की थी तो छोटी दिखती थी। वैसे तो वो अमेरिका रुकना नहीं चाहती थी पर अपने इस राज़ पर पर्दा रखने के लिए उसे दो तीन साल तक अमेरिका में रुकना पड़ा।

मानव का प्रोजेक्ट भी कुल पांच वर्ष का था। उसने अमेरिका में अपने आपको को पूरी तरह बच्चों की परवरिश और नए कोर्स करने में झोंक दिया था। वो मानव के साथ एक छत के नीचे रह तो रही थी पर उसकी बातचीत केवल बच्चों तक ही सीमित थी। मानव ने जब दिव्या से माफ़ी मांगनी चाही थी तब दिव्या ने मानव से कहा भी था कि अगर यही सब उसने किया होता तो वो माफ़ कर पाता? उसकी इस बात का मानव के पास कोई जवाब नहीं था।

मानव का प्रोजेक्ट पूरा होते ही वो अपने देश रवाना हो गए। रिया को देखकर सबने उसे दिव्या की बेटी ही माना था। वैसे रिया बहुत गोरी चिट्टी थी तो सबको लगा शायद अमेरिका जैसे देश में पैदा होने से वो इतनी गोरी है। इस तरह समय पंख लगाकर बीत गया। रिया ने भी दिव्या को अपने फैसले पर पछताने का कोई मौका नहीं दिया।

वो दिव्या की हर बार का इस तरह से पालन करती थी कि वो पिछले जन्म में भी दिव्या की ही संतान थी। दिव्या की परवरिश ने उसके अंदर भारतीय संस्कार कूट कूट कर भरे थे। यहां तक कि उसने दोनों बच्चों को बिल्कुल एक जैसा प्यार दिया। उसके कभी अपने बेटे तक को ये भनक नहीं लगने दी कि रिया उसकी सगी बहन नहीं है। वो अभी यादों की गली में घूम ही रही थी कि किसी ने दरवाजा खटखटाया। देखा तो मानव बाहर खड़ा था।

मानव ने उससे दोबारा माफी मांगी। मानव ने कहा वैसे तो उसने जो किया वो उसके लिए माफ़ी का हकदार नहीं है पर क्या वो इस बारे में थोड़ा भी सोच सकती है। दिव्या ने थोड़ा समय मांगा। दिव्या कुछ सोचती उससे पहले ही वो वहां बेहोश होकर गिर गई। मानव ने तुरंत बेटे से डॉक्टर को फोन लगाने के लिए कहा।

बेटा तुरंत गाड़ी निकाल लाया। जल्द ही वो हॉस्पिटल पहुंच गए। डॉक्टर ने कहा कि दिव्या को दिल को दौरा पड़ा है। इनके पास समय थोड़ा कम ही है साथ ही साथ इनकी शुगर बहुत ज्यादा है। दिव्या होश में आ चुकी थी। उसके पास जिंदगी के कुछ ही पल बचे थे।

ऐसे में जब बेटा दवाई लाने गया था तब दिव्या ने मानव को माफ करते हुए कहा कि वो उसका पहला और आखिरी प्यार था पर शायद उनके रिश्ते की यही नियति थी। दिव्या के माफ़ करते ही मानव के चेहरे पर सुकून आ गया और उसने दिव्या का हाथ अपने हाथ में लिया पर दिव्या तो उसको माफ़ करते ही अपनी आखिरी सांस ले चुकी थी।

जाते जाते दिव्या के चेहरे पर संतोष था कि उसने अपनी ज़िंदगी में समझौता जरूर किया पर अपना कर्तव्य भी पूरी ईमानदारी और निष्ठा से निभाया। आज मानव और दिव्या की जिंदगी का कटु सच दिव्या के साथ ही चला गया। रिया को दिव्या ने संस्कारों की लेखनी से अपनी किस्मत में ही लिख लिया था।

दोस्तों,कैसी लगी मेरी कहानी,अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। कई बार किसी का संपूर्ण जीवन त्याग में ही बीत जाता है। दिव्या का जीवन भी एक मिसाल था। जिसने किसी दूसरे की कोख से जन्मे बच्चे को अपने बच्चे के बराबर प्यार दिया। सही कहा है किसी ने पैदा करने वाले से ज्यादा पालने वाले का हक़ होता है। तभी मां यशोदा को देवकी से ज्यादा मान मिला है। 

डॉ. पारुल अग्रवाल

नोएडा

 

#बेटियां ६ जन्मोत्सव

 तृतीय कहानी

1 thought on “संस्कारों की लेखनी – डॉ. पारुल अग्रवाल  : Moral stories in hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!