संकल्प – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

सप्तपदी का  मुहूर्त आधी रात के बाद ही था।परी बहुत थकी लग रही थी।नींद से बोझिल आंखें से जब भी मुझपर पड़तीं,वही सवाल पूछतीं।नज़रें चुराकर कहीं और देखने लगता। बार-बार घड़ी देख रहा था,तभी शशांक के पिता जी ने आकर कंधे पर हांथ रखकर कहा”संकल्प जी, घबराहट हो रही है?मैं समझ सकता हूं।

मैंने भी बेटी ब्याही है।एक पिता के लिए सबसे बड़ी चुनौती ही यह।सहन भी नहीं हो पाता और रो भी नहीं सकते।आप थोड़ा आराम कर लीजिए।बहुत समय से बैठें हैं यहां। निश्चिंत रहिए ,सब मंगल ही होगा।मैं परी को पिता की कमी कभी महसूस नहीं होने दूंगा।”

संकल्प हड़बड़ाते हुए बोले”अरे नहीं समधी जी।परी के भविष्य के प्रति मैं पूरी तरह से निश्चिंत हूं।शशांक बहुत ही समझदार बच्चा है।आप जैसे अच्छे परिवार से रिश्ता जुड़ना तो सौभाग्य है मेरा और सरोज का।बस ,बेटी को दुल्हन के रूप में देखकर भावुक हो गया था।”

भोर होने को थी।आंखें भी झपकने लगीं थीं,तभी परी ने शशांक के साथ आकर पैर छुए।परी की आंखों से आंसू लुढ़क कर पैरों में आ गए।संकल्प ने दोनों को उठाकर सीने से लगा लिया।परी फफक-फफक कर रोते हुए बोली”बाबा,मां कहां हैं?मैंने कहा था कि मेरी शादी की सारी रस्मों में वो आपके साथ रहेंगी।वो नहीं मानी ना।वहीं पुरानी दकियानूसी सोच को सच मान बैठी।झूठा वादा किया उन्होंने मुझसे।आप तो समझा सकते सकते थे उन्हें पापा!”

हमदर्दी के पीछे का कड़वा सच – रश्मि प्रकाश

संकल्प जानते थे,आंखों में यही सवाल लिए परी देख रही थी उनकी ओर।कैसे कहें उससे कि मां का बच्चों की शादी देखना शुभ नहीं होता।ये वो भी नहीं मानते थे,पर उनकी मां मानतीं थीं।उनकी बात भी ना मानकर पच्चीस साल पहले विवाह खंडित होते देखा था अपना संकल्प ने।जल्दी से परी के आंसू पोंछते हुए बोले”अरे पगली,सरोज ने तो पूरी शादी देखी होगी सबसे छिपकर।तू क्या नहीं जानती अपनी मां को।

बस तेरे सप्तपदी के समय मौसी की तबीयत खराब हो गई थी ना,उसे लेकर ही व्यस्त हो गई।मुझे सख्त हिदायत देकर गई है कमरे में,कि यहां से हिलूं ना।देख, मैं एक मिनट के लिए भी उठा नहीं हूं यहां से।चल ,अब मां से भी आशीर्वाद ले ले।”

संकल्प ने आगे बढ़ते ही देखा,सरोज सामने से आ रही थी।उसे फोन पर संकल्प ने ही बताया था कि विवाह संपन्न हो गया।कमरे का दरवाजा बंद करके बैठी होगी वह।रो भी रही होगी।मां होने की भी कैसी विडंबना है?अपनी ही बेटी की शादी देखना अशुभ संकेत बन जाता है।परी और शशांक ने सरोज के पैर छुए तो ,सरोज ने उन्हें गले से लगाकर खूब सारा आशीर्वाद दिया।

परी ने चढ़ाई कर दी”कर ली ना आपने अपने मन की।मुझसे हमेशा कहती रही कि तेरी शादी तो देखूंगी मैं सामने बैठकर।जब शादी का समय आया,तो बहाना बनाकर गायब हो गई।बाबा को बुद्धू बना सकती हैं आप,मुझे नहीं।बताओ तो,मौसी की तबीयत क्या सच में बिगड़ी थी?”

सरोज हंस दी।परी से अच्छा और कौन समझ सकता था उसे।ये लड़की भी ना सूंघ कर सच का पता लगा लेती है।सांसें पढ़ सकती है अपने मां और बाबा की।दोनों को हांथ पकड़कर कमरे में ले गई सरोज।कुछ रस्में थीं ,जो विवाह के बाद मायके में होती थीं।सरोज ने अपने हाथों से परोसकर परी और शशांक को खाना खिलाया।विदाई शाम को होनी थी।शशांक के परिवार में नववधू का आगमन गोधूलि बेला में होता था।संकल्प के घर में भी यही रिवाज था।

विदाई की तैयारी करती हुई सरोज ने संकल्प से पूछा”सब अच्छे से निपट गया ना ?कोई अड़चन तो नहीं आई?नियम सब सही तरीके से पूरे करवाए थे ना आपने?”संकल्प ने सरोज का हांथ थामकर कहा”इतना टैंशन क्यों लेती हो तुम?सब हो गया अच्छे से।अरे तुम्हारी तैयारी ही इतनी पक्की थी कि कहीं किसी अड़चन की जगह ही नहीं थी।

कहीं आप के भी तो दो चेहरे नहीं? – भाविनी केतन उपाध्याय

मैंने तो बस रुपये दिए,बाकी सारी तैयारी तो तुम्हारी थी सरोज।तुमने मुझे बहुत बड़े यज्ञ का हिस्सा बनाया आज।बेटी का संप्रदान करने का सौभाग्य देकर तुमने मुझे ऋणी कर दिया।

भगवान परी को हमेशा खुश रखे।उसका सुहाग अखंड रहे।अच्छा सरोज!तुम खुश तो हो ना?शशांक कैसा लगा तुम्हें बातचीत में।उसके पापा से बात तो की होगी तुमने।बहुत अच्छा परिवार है।हमारी परी बहुत खुश रहेगी वहां।अब भगवान से और कुछ नहीं मांगना मुझे सरोज।बस मेरी बच्ची को खुश रखे।तुम्हें खुश रखे।”

सरोज के सब्र का बांध अब टूटने लगा।संकल्प का हांथ अपने हांथ में लेकर रोने लगी एकाएक।संकल्प के पैरों में झुककर कहा”मुझे एक बार तो माफी मांगने का मौका दे दो संकल्प।इस बोझ के साथ मैं मर भी नहीं पाऊंगी।तुम्हारे जीवन में मेरे और परी के अलावा क्या और कुछ नहीं?कभी तो भगवान से अपने लिए भी कुछ मांग लिया करो।किस मिट्टी के बने हो तुम।

कौन करता है किसी पराई बेटी के लिए इतना सब।परी को तुमने राजकुमारी बनाकर पाला और अब महारानी बनाकर विदा करोगे।तुम जैसे अच्छे इंसान क्या और भी बनाया होगा ईश्वर ने?अपने मन को चंदन बनाकर घिस दिया,मेरे और परी का जीवन संवारने में।मुझे माफी मांग लेने दो संकल्प आज।नहीं तो मैं परी की विदाई साफ मन से नहीं कर पाऊंगी। प्लीज़।”

संकल्प ने सरोज को बांहों में भरकर कहा”पहले भी मैंने कहा था सरोज,कोई माफी -वाफी नहीं मांगोगी तुम।तुम मेरा अभिमान पहले भी थी,अब भी हो और कल भी रहोगी।

मैंने तुम पर कोई उपकार नहीं किया,उल्टा तुमने मुझे परिवार देकर कृतार्थ किया है।तुमने जो किया ,वह नासमझी थी प्यार में।मैं भी तो प्यार करता हूं तुमसे।जब मेरा प्यार सही है,तो तुम्हारा प्यार गलत कैसे हो सकता है?बस मन में एक ही मलाल था ,वह भी आज दूर हो गया।उठो सरोज,चुप हो जाओ।परी कभी भी आ जाएगी हमें ढूंढ़ते।उसे कुछ पता नहीं चलना चाहिए।वो मेरी बेटी है,हमारी बेटी है।”

ज़िंदगी-सुख दुःख का संगम। – रश्मि सिंह

सरोज रोते-रोते चुप हो गई।परी का सूटकेस सजा रही थी दोबारा।तभी परी आई हांथ में कुछ लिए,दिखाकर पूछा “मां,ये आप लोगों  की शादी का कार्ड मिला मुझे,बाबा की पुरानी आलमारी से।मैं फोटो ढूंढ़ रही थी,तभी देखा।मां,ये तो हांथ से डिजाइन किया हुआ कार्ड है।किसने डिजाइन किया था,आपने या बाबा ने?”संकल्प ने झट उसके हांथ से कार्ड लेकर कहा”ऑफकोर्स,बाबा ने।तेरी मां को डिजाइन बनाना कहां

आता है।मैंने बड़े चाव से बनाया था यह कार्ड।तेरी दादी को दिखाकर बोला था कि इसी के प्रिंट बनवा देंगें।उन्हें भी कार्ड बहुत पसंद आया था।अच्छा लगा तुझे?”

“हां बाबा , बिल्कुल यूनीक है। पारंपरिक शैली में बना हुआ।प्योर एथनिक है।हमारी शादी में फिर आपने क्यों नहीं बनवाया ऐसा कार्ड?बूढ़े हो गएं हैं आप अब?क्या अब ऐसी डिजाइन नहीं बना सकते।बोलिए?अरे !एक मिनट !बाबा,इसमें तो शादी की तारीख दूसरी है।आप लोग तो नवंबर में शादी की सालगिरह मनाते हैं।इसमें तो मई महीना पड़ा है।ऐसा क्यों?”

सरोज का चेहरा पीला पड़ने लगा था।परी सच जानना अच्छी तरह जानती थी।एक बार यदि पीछे पड़ जाए,तो पेट से सारी सच्चाई निकाल कर ही मानती थी।क्या जवाब दे उसे।तभी संकल्प ने हमेशा की तरह संभाला”बस ,तूने शुरू कर दी अपनी पुलिसगिरी।अरे बाबा ये तो एक मॉडल था।जब शादी पक्की हुई तब डेट बदल दिया गया था।बस!”

“तो फिर उस डेट वाला कार्ड कहां है?मुझे तो कभी नहीं दिखा।मां ,आपने रखा है क्या कहीं?”परी की जिरह शुरू होते देख सरोज ने कहा”अच्छा ,तू जासूसी ही करती रहेगी,या शशांक के पास जाकर बैठेगी कुछ देर?सभी रिश्तेदार घेरे बैठें होंगें उसे।

एहसान फरामोश – कमलेश राणा

बिचारा कितना असहाय महसूस कर रहा होगा।जा तू उसके पास अभी,मैं फाइनल पैकिंग कर के आ रहीं हूं।बाबा से बोलकर मिष्टी दही भिजवा दें। कार्ड के बारे में बाद में छानबीन करना।हमारी शादी को बहुत साल हो गए ,अब तू अपनी नई शादी में कंसन्ट्रेट कर।समझी।”

संकल्प कमरे से निकल चुका था।सरोज जानती थी,उस विवाह के कार्ड से संकल्प का अतीत जुड़ा हुआ है।उस अतीत में जो सबसे भयावह घटना हुई ,उसका कारण सरोज ही है।

दोपहर होते ही आशीर्वाद समारोह शुरु कर दिया गया।सारे रिश्तेदार परी और शशांक को धान-दूरबा सर पर रखकर आशीर्वाद दे रहे थे,और दोनों सभी बड़ों के पैर छू रहे थे।मिष्टी दोई और रसगुल्ला खिलाया जाता था इस आयोजन में।परी झल्ला रही थी ,कि अब और नहीं खाऊंगी।

शशांक शांत होकर नियम पालन कर रहा था।आखिर में माता-पिता का नंबर आया।संकल्प और सरोज दोनों ने एक साथ मिलकर बेटी -दामाद को आशीर्वाद दिया।बेटी के हांथ में दो कार्ड देते हुए संकल्प बोले”एक मेरी शादी का कार्ड,एक तेरी शादी की रस्मों का कार्ड।मेरा डिजाइन किया हुआ।तुझे चाहिए था ना।देख कैसा बनाया है तेरे बाबा ने।”परी ने लपककर दोनों कार्ड ले लिए।

एक तो मां-बाबा की शादी का पुराना सैम्पल,पर दूसरे कार्ड में तो पापा ने शादी की पूरी रस्में चित्रित कर दीं थीं।सिंदूर दान के समय का चित्र तो बेहतरीन बना था।उठकर पापा के गले से लिपटकर भावुक होकर बोली”थैंक यू बाबा,यह बेस्ट गिफ्ट है आपकी तरफ से।इससे अच्छा और वास्तविक गिफ्ट कुछ और हो ही नहीं सकता।

“दोनों एक दूसरे के आंसू पोंछ रहे थे।समय हो गया था विदाई का।शुभ लगन में परी की विदाई कर दी गई।मोहल्ले वाले जा चुके थे।रिश्तेदार अपने-अपने कमरों में जाकर आराम करने लगे।सरोज ,संकल्प को पकड़कर कमरे में ले गई।एक गिलास नींबू पानी देकर बोली”अब बस भी करो रोना।जीवन में कभी रोते नहीं देखा तुम्हें,संकल्प। बेटियां शादी के बाद विदा होती ही हैं,यही रीत है।दो -चार दिनों में ही तो अष्ट मंगला के लिए आएंगे दोनों।चलो अब बिल्कुल नहीं रोना।”

असली चेहरा – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

“सरोज,ये आंसू बेटी की विदाई के हैं।ये आंसू खुशी के भी हैं,बेटी को इतना अच्छा पति मिला।ये आंसू धन्यवाद के भी हैं,ईश्वर के प्रति ।ये आंसू मेरे संकल्प को जीवित रखने और पूर्ण होता देखने के अभिमान के भी हैं।मैंने तब तुमसे जो संकल्प किया था ,आज ईश्वर की दया से पूर्ण किया।परी को मैंने सही हाथों में सौंपा है।

मरने के बाद जब धीरज से मिलना होगा,तो उसे कह  पाऊंगा,कि उसकी बेटी और पत्नी दर-दर की ठोकरें नहीं खा रहीं।ख़ुश हैं दोनों। अपने-अपने परिवार में।”संकल्प की आंखों में सत्य और ईमानदारी के आंसू भी देख सकती थी सरोज।वह भी तो रो रही थी,पर उसके आंसू बेटी की विदाई के नहीं ,पश्चाताप के थे।

संकल्प जो उसे कॉलेज से प्यार करता था,पर वह नहीं करती थी।वह तो एक आवारा किस्म के मोहल्ले के ही लड़के को दिल दे चुकी थी। मां-बाबा को पता चला तो सीधे शब्दों में मना कर दिया था।उसके ना तो परिवार का पता था,और ना ही वह शिक्षित था। आते-जाते रास्ते में शिशिर (लड़के)ने सरोज से दोस्ती कर ली।फिल्मी अंदाज में बात करना सरोज को लुभा गया।

कॉलेज की पढ़ाई खत्म होते ही संकल्प के घर से विवाह का प्रस्ताव आया था।संकल्प सीनियर था। क्रिएटिव कॉर्नर का हेड था।स्केच ,स्लोगन,कविताएं,और भी जाने कितने गुण थे उसमें।सरोज को तो निकम्मे शिशिर में ही अपना हीरो दिखता था।एड कंपनी में नौकरी पर लग गया था संकल्प। क्रिएटिव हेड था।

मां-बाबा को रिश्ता मंजूर था,सरोज को नहीं।मां ने कसम देकर उसे आशीर्वाद करवाने पर मजबूर किया था। आशीर्वाद मतलब सगाई।तब संकल्प एक दिन शादी का कार्ड डिजाइन कर दिखाने लाया था।सरोज को कार्ड देते हुए कहा था उसने”मेरे सपनों का विवाह होगा यह।पहली प्रति तुम्हारे लिए।अगर कुछ बदलना हो तो बता दो।”

सरोज को क्यों कुछ देखना या बदलना था।उसकी योजना तो कुछ और ही थी।शादी की तारीख जल्दी थी,तो मां-बाबा तैयारी में लग गए।संकल्प रोज़ फोन पर पूछता बाहर जाकर मिलने के लिए,पर सरोज मना कर देती।शिशिर के साथ बड़ी मुश्किल से बात हो पाई एक दिन।तभी सरोज को उसने योजना समझा दी थी।सरोज उसके प्यार में अंधी और बहरी दोनों हो गई थी।

“बारात आ गई,बारात आ गई।सारे लोग चिल्लाने लगे।खिड़की से उसने भी देखा।मां कमरे में नींबू का शर्बत लेकर आईं थीं।खिड़की से संकल्प की मां को संकल्प के पिता के साथ देखकर कहा”अरे,हम लोगों में तो मां बच्चों की शादी नहीं देखती।ये कैसे आ गईं? आधुनिक सोच वाले होंगे ये।चल जल्दी से शरबत पी लें।अभी नीचे जाना होगा,पीढ़ी पर बैठकर।शुभ दृष्टि होगी ।फिर माला बदल होगा।देर मत करना।”

” मुखौटों की दुनिया ” – डॉ. सुनील शर्मा

संकल्प का फोन आया तभी”सरोज ,तैयार होकर कैसी लग रही हो?मैं आ जाऊं क्या मां के साथ देखने?रहा नहीं जा रहा।”

“नहीं-नहीं,अभी आप नहीं सकते।यहां मेरे साथ घर की बुजुर्ग महिलाएं हैं।और आपकी मां भी आईं हैं क्या ?क्यों?”

“हां-हां,मां को मैं ही जबरदस्ती लेकर आया हूं।मुझसे सबसे ज्यादा प्यार करने वाली ही मेरी शादी ना देखे,ये तो ग़लत है।मैंने अपनी कसम दी उन्हें,तब आईं हैं।तुम खुश हो ना सरोज?”

“हां,हूं।”बस इतना ही कहा सरोज ने।

शादी के कार्यक्रम शुरू हो चुके थे।सारे सदस्य बारात की अगुवाई में लगे थे।तभी मौका देखकर,सजी संवरी सरोज पीछे के दरवाजे से बाहर निकल आई मुंह ढांककर।किसी ने देखा ही नहीं।दूर शिशिर खड़ा था।दोनों स्टेशन पहुंचे और दूसरे शहर भाग गए।

यहां शादी की वेदी सजी धरी रह गई।ना शुभ दृष्टि हुई,ना माला बदल।संकल्प को सप्तपदी के प्रति विशेष लगाव था।इस रस्म से ही तो सात जन्मों का बंधन ,सात वचनों के साथ बंधता है।सप्तपदी की जलती हुई वेदी के समक्ष चुपचाप अपने आसन पर बैठा रहा संकल्प।घर वालों‌ ने वापस चलने की बात कही ,पर वह ना माना।विवाह के पूर्ण मुहुर्त तक उसी आसन पर बैठा रहा संकल्प।मानो रात से शादी कर रहा हो।सुबह बारात बिना वर-वधू के वापस चली गई।

सरोज के मां-बाबा संकल्प के पैरों में गिरकर माफी मांगने लगे। संकल्प ने कहा”मेरे भाग्य में था यह,आप लोगों का कोई दोष नहीं।

एक महीने लगे थे संकल्प को इस से उबरने में।सरोज की खोजबीन पुलिस कर रही थी। संकल्प ने भी व्यक्तिगत तौर पर पुलिस से कह कर रखा था।साल भर  बाद खबर मिली,कि सरोज एक महिला सुधार गृह में है।पति (शिशिर)चोरी करके भागता -भगता कार की चपेट में आकर मारा गया।सरोज को सुधारगृह में रखा गया था।

दोहरा चेहरा – समाज के लिए कुछ अपनों के लिए कुछ – संगीता अग्रवाल

संकल्प ने जाकर सरोज को वहां से निकाल कर उसके घर में पहुंचाया।अपने घर में भी बताया।सरोज, संकल्प का सामना नहीं कर पा रही थी।पैर पकड़कर बस इतना ही कहा”संकल्प ,मुझे अपनी चिंता नहीं,अपनी बेटी की है।दुनिया इसे जीने नहीं‌ देगी।समाज में कौन हमें इज्जत से रखेगा अपने पास।

मां-बाबा तो एक बार कुछ नहीं कहेंगे,पर भाई।वो तो एक दिन भी मुझे और मेरी बेटी को नहीं‌ रखेंगे।शादी के मंडप से भागकर मैंने उनकी पहले ही बेइज्जती करवा दी है।मुझे यहां नहीं लाना था संकल्प यहां। मुझे अब मरना पड़ेगा।इसके अलावा और कोई चारा नहीं।”संकल्प ने उसी दिन अपनी मां को बताया कि सरोज से शादी करेगा।

उसका सहारा बनेगा।मां को यह फैसला अनुचित लगा।जो लड़की एक बार धोखा दे सकती है अपने ही मां-बाप को,उसका आगे भरोसा करना बेवकूफी है।संकल्प की जिद के आगे मां भी हार गई।सादे तरीके से कोर्ट में संकल्प ने सरोज को अपनी पत्नी स्वीकार किया।उसे तो सरोज पहले ही पसंद थी,और अब पसंद से ज्यादा जिम्मेदारी थी उसकी।

उस दिन से परी संकल्प की ही बेटी बन गई थी।सरोज के माता-पिता और संकल्प के माता-पिता के अलावा यह बात और कोई नहीं जानता था।भाई को भी झूठ बोल दिया गया कि वह दूसरे शहर जाकर नौकरी कर रही है।

जिस शुभ विवाह का सपना संकल्प और सरोज दोनों ने देखा था,वह पूरा कहां हुआ।ना सप्तपदी हुई ,ना सिंदूर दान हुआ।संकल्प शादी के मुहूर्त में बैठा रहा वेदी के सामने,और वहां उसी मुहूर्त में सरोज आवारा शिशिर के साथ ट्रेन बदल-बदलकर भाग रही थी।

संकल्प ने आगे कहा”सरोज ,आज मेरा संकल्प पूरा हुआ।मैंने अपनी बेटी का शुभ विवाह,शुभ मुहूर्त में विधि -विधान के साथ किया।जो मेरी शादी के लिए मैंने सपने देखे थे,परी की शादी में दोबारा जी लिया उन सपनों को।और तो और हमारी शादी का, मेरा बनाया 

हुआ कार्ड आज मेरी बेटी को उपहार में देकर,मैं खुश हूं।तुमने मुझे परी का पिता ना केवल ही बनाया,बल्कि परी को मेरी ही बेटी बनाया ।तुम्हारे साथ के बिना,तुम्हारा संकल्प,अपना संकल्प कभी पूरा नहीं कर सकता था।आज दो विवाह शुभ हुए हैं सरोज,है ना!

कौन घर का चिराग़ – उषा गुप्ता

बधाई हो सरोज बेटी के विवाह की।”

सरोज ने संकल्प के सीने से लगकर कहा”आपको भी ,परी के बाबा।”

शुभ्रा बैनर्जी 

#शुभ विवाह

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