• infobetiyan@gmail.com
  • +91 8130721728

असली चेहरा – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

माँ को खुशी का ठिकाना नहीं था।वह अपने आँसू रोक नहीं पा रही थी। आखिर बहू-बेटे ने काम ही ऐसा किया था ! बहू ने रोजमर्रा के काम में आने वाले कुछ जरूरी समान साथ में दे दिये हैं। 

अभी तक जिस नये घर का गृह प्रवेश भी नही हुआ था उसमें बेटा अपनी माँ को बड़े मनुहार के साथ लेकर आया था, सबसे पहले….वह भी प्यार और  सम्मान के साथ। 

अब तक बेचारी “माँ ” बेटे द्वारा लिये गये किराये के मकान में सीढ़ी के नीचे कोने में खाट पर बिस्तर डालकर सोती आई थी। करती भी क्या , जब से बेटे की शादी हुई थी उनके कमरे में बहु रहने लगी थी। एक कमरा बाहर था जिसमें आये गये  मेहमानों के साथ -साथ बेटे के दुकान के सामानो से भरा हुआ था। 

वह हमेशा सोचती थी चलो कोई बात नहीं…बच्चों की खुशी में ही माँ की खुशी शामिल रहती है। यही सोच कर वह खुशी -खुशी उस सीढ़ी के नीचे कोने में लोग-बाग, सर्दी-गर्मी की परवाह किए बिना सुकून से रह रही थी। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है हरेक माँ बाप अपने बच्चों के लिए कुछ न कुछ त्याग तो करते ही हैं। 

माँ….शब्द कान में पड़ते ही वह ख्यालों से बाहर आईं 

कितना प्यार करता है मेरा बेटा आज सबसे पहले मुझे लेकर आया है नये घर में। सोच -सोचकर वह  निहाल हो रही थी । 

“माँ” अब से तुम यहीं रहो, बड़े प्यार से बेटे ने कहा।” 

“बेटा, तू तो मुझे घर  दिखाने  लाया था न ! मैं अकेले कैसे रहूँगी तुम सब मेरे साथ रहने आओगे तब रह लूँगी।” 

“नहीं माँ सबसे पहले तुम्हारा हक है इस घर पर, कुछ दिन तुम रह लो फिर हम भी तुम्हारे साथ रहेंगे।” 




बेटे ने जरूरी चीजें जो माँ को चाहिए सब लाकर रख दिया।

अपना ख्याल रखता देख माँ की आँखों से ममता आंसुओं के रूप में ढलकने लगी । बेटा माँ को आश्वस्त कर कि तुम आराम से रहो मैं आता रहूँगा, दरवाजा सटा कर निकल गया। 

वापस आया तो पत्नी ने पुछा, “मान गईं माँ ?” 

“हाँ, उसे मानना ही पड़ा ।मेरे लिए वह कुछ भी कर सकती है। ” 

बहू ने मन ही मन कहा “सच में बड़ी भोली है सासु माँ, कोई शक भी नहीं किया।” 

इत्मीनान से लेटते हुए बेटे ने कहा-” मेरे लिये मेरी माँ कुछ भी करने के लिये तैयार हो जाती है। अन्धों की तरह प्यार करती है मुझसे।” 

पत्नी ने लंबी साँस लेते हुए कहा-” चलो ! अच्छा हुआ” इसी बहाने जान छूटी तुम्हारी माँ से।

अब जाकर चैन मिली। जम दूत की तरह दरवाजे पर पड़ी  रहती थी !!” 

“तुम अपना सामान पैक कर लो। अगले हफ्ते से हम भी वहीं चल कर रहेंगे।”

कभी नहीं ! मैं यहां से कहीं नहीं जा रही।समझे !

बेटे ने पहली बार गौर से पत्नी को देखा। पत्नी बोल पड़ी- “ऐसे मुझे क्यूँ देख रहे हैं?” 

“देख रहा हूँ उस दोहरे चेहरे को जिससे मैं अनभिज्ञ था।” 

“मतलब?”

“मतलब यह कि देर ही सही तुम्हारी असलियत का पता तो चल ही गया। ” 

“कहना क्या चाहते हो?” 

“यही की तुम अंदर  से  कुछ  और बाहर से कुछ  और  हो। तुमने मासूमियत का खोल ओढ़ रखा था। तुम्हें मेरी माँ खटक  रही थी।” 

पत्नी झुंझलाहट के साथ बोली -” तुम खुश नहीं हो मैंने तो…. 

गलती मेरी थी। कोई बात नहीं अब सुधार कर लूँगा। अच्छा हुआ समय रहते मेरी आँखों से झूठ की पट्टी खुल गई। आज से मैं अपनी माँ के साथ रहने जा रहा हूं तुम अपनी माँ को बुला लो तुम्हारे साथ रहेंगीं। 

स्वरचित एंव मौलिक 

डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर,बिहार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!