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कहीं आप के भी तो दो चेहरे नहीं? – भाविनी केतन उपाध्याय

” ला दे रितु, मैं बाकी की रोटियां सेंक लेती हूॅं जाकर अपने कमरे में आराम कर…. सुबह से लगी है काम में थक गई होगी ” काव्या ने प्यार और अपनेपन से अपनी देवरानी से कहा।

” नहीं दीदी,बस आठ दस रोटियां ही सेंकने की बाकी है मैं कर लूंगी, वैसे भी पूरा काम हो गया है तो फिर जाकर कुछ देर बैठूंगी” कहते हुए रितु फटाफट अपना हाथ चलाने लगी।

जैसे ही रितु रसोई का सारा काम कर कमरे में गई काव्या ने आकर रसोई की कमान संभाली और बड़बड़ाने लगी जिससे उसका पति निरंजन, ससुर जी रमाकांत जी और देवर मनीष को सुनाई दे,” सुना था और सोचा था कि घर में बहू आएगी तो मेरा हाथ बटाएगी पर यह हो गया कि महारानी हाथ बंटाने बजाय कमरे में घंटों आराम फरमाती है। पहले भी मैं ही करती थी अब भी मैं ही करती हूं तो घर में एक सदस्य बढ़ने से काम कम होने की बजाय बढ़ गया है मेरा तो।” 




मनीष अपनी भाभी की बात सुनकर गुस्सा हो गया और गुस्से में भुनभुनाते हुए अपने कमरे में गया जहां बेचारी रितु इन सब बातों से बेखबर थकान से चूर हो कर सो गई थी क्योंकि शादी को इतना समय नहीं हुआ था कि उसे घर के सारे काम करने की आदत हो और ऊपर से जेठानी काव्या का यह दोहरा चेहरा जो उसके सामने कुछ और बाकियों के सामने कुछ और।

मनीष ने गुस्से में चिल्ला कर रितु को उठाया,” मैडम, नींद पूरी हो गई हो तो हमारी थाली परोसने का कष्ट करेंगी?” रितु बेचारी बड़ी बड़ी आंखें कर के मनीष को ही देखे जा रही है कि आज उन्हें क्या हुआ है ? आखिर थक हार कर उसने पूछ ही लिया कि,” क्या बात है ?” मनीष ने नीचे जो हो रहा था उसके बारे में बताया तो रितु चौंक पड़ी, फिर आंखों में आसूं लिए उसने अपने पति से कहा,” आप को मुझ पर भरोसा नहीं ? मैं ही सब काम कर के दीदी के कहने पर ही कमरे में आई थी और मेरी जरा सी आंख लग गई। मुझे पता नहीं था कि दीदी ऐसा भी कर सकते हैं ? मैं तो उनकी प्यारी बातों में आकर ही आई थी, वो इस तरह के दोहरे चेहरे रखते होंगे उसका मुझे पता भी नहीं था। आइंदा से मैं ध्यान रखूंगी पर अभी आप यह बात हम दोनों के बीच ही रहने दिजीए खामखां बात का बतंगड़ बनाने से कोई फायदा नहीं उल्टा घर में कलह हो जाएगा।” 

मनीष अपनी समझदार और सुलझी हुई पत्नी को प्यार से देखता रहा फिर कसकर अपनी बाहों में भर लिया तो रितु ने मज़ाक करते हुए कहा,” कहीं आप के भी तो दो चेहरे नहीं ?” इस बात पर मनीष मुस्करा उठा।

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

धन्यवाद

कामिनी केतन उपाध्याय

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