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दोहरा चेहरा – समाज के लिए कुछ अपनों के लिए कुछ – संगीता अग्रवाल

” अरे तुम रीमा हो ना पर तुम यहाँ क्या कर रही हो ?” सुगंधा ने अपने कॉलेज की दोस्त को एक सस्ती कपड़ो की दुकान के बाहर खड़े देख पूछा।

” सुगंधा तुम अचानक यहां ?” रीमा खुश होते हुए अपनी दोस्त के गले लगती हुई बोली।

” हां वो मेरे पति का ट्रांसफर यहां हुआ है पर तुम्हे यहाँ देख बड़ी हैरानी हो रही है मुझे !” दुकान की तरफ देखते हुए सुगंधा बोली।

” वो क्या है सुगंधा मैं कई सामाजिक संस्थाओ से जुड़ी हूँ तो यहां अक्सर आती रहती हूँ वृद्धाश्रम के लाचार बूढ़ो के लिए कपड़े खरीदने , बेचारो को उनके ही बच्चो ने घर से बेघर कर दिया है मैं उनके बीच जा थोड़ी खुशी बांट आती हूँ।अब मेरे पति तो अक्सर बिज़नेस के सिलसिले मे बाहर ही रहते है तो सास ससुर की सेवा से बचा समय मैं जन सेवा मे लगा देती हूँ  ।” रीमा गर्व से बोली ।

“अरे वाह ये तो बहुत अच्छी बात है वो बूढ़े लाचार भी खुश हो जाते होंगे ना ये सब पाकर !” सुगंधा बोली।

” यही नही सुगंधा मैं तो कई अनाथाश्रम से भी जुड़ी हूँ वहाँ के बच्चो की पढ़ाई को पैसा देती रहती हूँ मुझे तो कितनी बार मेरे कार्यों के लिए सम्मानित भी किया जा चुका है अभी कल भी मुझे हमारे शहर के मेयर द्वारा पुरस्कार मिलना है तुम भी आना यही पास के कम्युनीटी हॉल मे ही है कार्यक्रम !”रीमा अपने बारे मे बताती हुई बोली।

” जरूर आउंगी आखिर इतने साल बाद कॉलेज की दोस्त मिली है और  इतनी प्रसिद्धि पा चुकी है !” सुगंधा खुश होते हुए बोली।

अगले दिन सुगंधा कम्युनिटी हॉल पहुंची कार्यक्रम शुरु हो चुका था तभी स्टेज पर रीमा का नाम पुकारा गया और सजी संवरी रीमा स्टेज पर अवतरित हुई मेयर ने उसको पुरस्कार दिया और उसकी तारीफ़ के क़सीदे पढ़े। साथ ही शुरु हुआ रीमा का भाषण …

” मैं रीमा बचपन से लाचार बेसहारा अपनों के हाथो सताये बुजुर्ग लोगो को देखती थी तो उनके बच्चों के प्रति मन रोष से भर जाता था साथ ही उन बुजुर्गो के लिए कुछ करने की चाह मन मे हिलोरे मारती थी पर तब मैं इस काबिल नही थी। शादी हुई ससुराल आई यहां अपने सास ससुर की सेवा करते हुए अपने आस पास बेटा बहू द्वारा सताये बुजुर्गो को देख कुछ करने की चाह फिर जोर मारने लगी और मैं सामाजिक संस्थाओ से जुड़ गई। बस तबसे जो मेरा सफर शुरु हुआ वो रुकने का नाम नही ले रहा। मैं आप सबसे विनम्र निवेदन करूंगी अपने माता पिता अपने सास ससुर को कोई दुख मत दो उनका आशीर्वाद नसीब वालों को मिलता है।

अंत मे दो लाइन बोल अपने को विराम दूंगी।…’ घर से मंदिर है बहुत दूर चलो ये कर ले अपने माता पिता को मान भगवान उनकी ही पूजा करले !” रीमा के भाषण खत्म करते ही हॉल तालियों से गूंज उठा । सभी लोग रीमा को बधाई देने लगे।




सुगंधा भी रीमा से मिलकर उसे बधाई दे वापिस आ गई। दोनो कॉलेज के समय से दोस्त थी पर दोनो की शादी अलग अलग शहर मे हुई और धीरे धीरे सम्पर्क टूट गया और अब सात साल बाद दोनो मिली है तो एक दूसरे से नंबर भी ले लिए।

रीमा ने सुगंधा को अपने घर भी आमंत्रित किया जिसे सुगंधा ने फिर कभी पर टाल दिया और उसका घर का पता लेकर रख लिया।

आज सुगंधा अपनी सास की कुछ रिपोर्ट्स लेने एक लेब मे आई थी रिपोर्ट्स मिलने मे अभी वक़्त था उसे याद आया यही पास मे तो रीमा रहती है । उसे सरप्राइज देने के इरादे से वो उसके घर पहुँच गई। वो दरवाजे पर लगी घंटी बजाने ही वाली थी कि अंदर से उसे किसी के चिल्लाने की आवाजे आई।

” किसने कहा है आपको घर भर मे भटकने को एक कमरा दे रखा है ना वहीं रहिये दोनो बूढ़े बुढ़िया क्यो हमे परेशान करते है !” ये रीमा की आवाज़ थी जो चिल्ला रही थी।

“बहू पेट मे थोड़ी गैस बन रही थी सोचा घूमने से ठीक हो जाएगी !” एक औरत जो की रीमा की सास थी शायद उनकी मरी सी आवाज आई । सुगंधा हैरान रह गई ।

” गैस ही बनी थी ना मर तो नही गई आप सारा दिन बैठे रहने से और खाने से गैस ही बनती है कमला आज इन्हे खाना मत देना और आप जो ये पानी फैलाया है ना इसे साफ कीजिये अभी के अभी और फिर अपने कमरे मे जाइये जब तक मैं ना कहूं निकलना मत वहाँ से !” रीमा चिल्लाई।

” वो बहू !”

” आवाज़ नही वरना आप जानती है मेरे एक फोन घुमाने की देर है आप और आपके पति दोनो जेल की सलाखों के पीछे होंगे बहू पर अत्याचार करने के जुल्म मे !” रीमा गुर्राई।

सुगंधा को समझ नही आया बेल बजाए या ना बजाए थोड़ी देर सोचने के बाद उसने बेल बजा ही दी। दरवाजा एक औरत ने खोला जो शायद कमला थी घर की नौकरानी।




” जी किससे मिलना है आपको पहले से मीटिंग फिक्स है क्या आपकी ?” उसने सुगंधा से सवाल किये।

” नही मैं रीमा की सहेली हूँ उससे मिलने आई हूँ !” सुगंधा बोली।

” आप बैठिये मैडम अभी ऊपर गई है मैं उन्हे बुलाती हूँ।” सोफे की तरफ इशारा करती कमला बोली।

सुगंधा वहाँ बैठ गई वो देख रही थी एक पुरानी सी साडी पहने एक बुजुर्ग औरत वहाँ पोंछा लगा रही है उसकी आँख मे आंसू है । सुगंधा को रीमा द्वारा दिया भाषण याद आया । साथ ही ये सोच उसका मन कसेला सा हो गया रीमा की कथनी और करनी देख । तभी सामने की सीढ़ियों से रीमा उतर कर आ रही थी वो सुगंधा को देख झेंप सी गई और सुगंधा की तरफ आने की जगह अपनी सास के पास गई।

” अरे मांजी ये क्या कर रही है आप आपसे कितनी बार कहा है आप ये सब मत किया कीजिये पर आप सुनती ही नही हो …कमला ओ कमला इधर आओ देखो मांजी से पानी बिखर गया इन्हे इनके कमरे मे ले जाओ और यहां से तुम साफ करो …जाइये मांजी आप कपड़े बदल आराम कीजिये !” रीमा चाशनी से भी मीठी आवाज़ मे बोली।

” वो बहू !” वो महिला कुछ बोलने को हुई तो रीमा ने उन्हे आँख दिखा दी और वो चुपचाप वहाँ से चली गई।

” सुगंधा तुम अचानक यहाँ !” हँसते हुए रीमा सुगंधा से मुख़ातिब हुई।




” वो बस मम्मीजी की रिपोर्ट्स लेनी थी पास की लेब से उसमे वक़्त था तो सोचा तुमसे मिल लूं …ये तुम्हारी सास है ?” सुगंधा ने कहा।

” हां सुगंधा मांजी को काम का बहुत शौक है कितनी बार मना करती हूँ मैं कुछ करने को पर निगाह बचते ही काम मे लग जाती है इनको हर आराम देने की कोशिश करती हूँ मैं पर मैं व्यस्त होती हूँ तो ये झट काम करने लगती है । कमला को कितनी बार बोला है इनका पूरा ध्यान रखो पर वो भी कामचोरी कर जाती है !” रीमा हँसते हुए बोली।

सुगंधा जवाब मे फीकी हंसी हंस दी । क्या कहती वो कल तक उसे जिस सहेली पर नाज था आज उसका दोहरा चेहरा देख उसे गुस्सा आ रहा था । उसके लिए वहाँ रुकना मुश्किल हो रहा था इसलिए रीमा से बहाना कर वहाँ से निकल गई । बाहर आ वो सोच रही थी क्या रीमा के पति उसकी हकीकत नही जानते या उन्हे भी उसने धमकी दे चुप कर रखा है । हद है कैसे लोग दोहरे चेहरे लगा कर रखते है दुनिया के लिए कुछ और अपनों के लिए कुछ । समाज सेवा का दम भरने वाली शहर भर मे जानी जाने वाली रीमा का ये चेहरा कोई देख ले तो पता लगे रीमा की हकीकत।

#दोहरे_चेहरे

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

( स्वरचित रचना )

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