एहसान फरामोश – कमलेश राणा

सुजीत जी और विनय की बहुत अच्छी दोस्ती थी। सुजीत के पिताजी शहर के जाने माने डॉक्टर थे पैसा भी बहुत था ऐसा नहीं कि यह सब उनका ही कमाया हुआ हो उनके पुरखे भी काफी संपत्ति छोड़ गये थे लेकिन इसके बाद भी उन्हें और सुजीत को घमंड छू भी नहीं गया था बहुत सादगी से भरा जीवन था उनका। 

वहीं विनय के पिता की छोटी सी दुकान थी वह भी कम ही चलती थी कुल मिलाकर खींचतान कर गुजर बसर हो रही थी। सुमित इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ़ था अतः वह बिना जताये उसकी हरसंभव मदद करता रहता था। उसके यहाँ जब भी कुछ अच्छा बनता वह तुरंत विनय को बुला लेता। 

कई बार तो सुमित विनय के लिए कपड़े लेकर आता और यह कहकर उसे देता कि वह अपने लिए लेकर आया था पर उसका साइज़ छोटा आ गया तुम पहनकर देखो शायद तुम्हें सही आ जाये ऐसा करके उसे आंतरिक खुशी का अहसास होता और इससे विनय का स्वाभिमान भी आहत नहीं होता। सुमित जब भी स्कूल जाता तो विनय के घर के सामने से निकलते हुए उसे लेकर ही जाता। 

इसी तरह दिन गुजरते रहे विनय ने आगे चलकर वकालत को अपना पेशा बनाया और सुमित को एम बी बी एस में एडमिशन मिल गया फिर भी दोनों की दोस्ती यूँ ही चलती रही। सुमित विनय के लिए हर मुसीबत में ढाल बनकर खड़ा रहता। 




सुमित की एक प्रोपर्टी थी जिस पर शहर के कुछ दबंगों ने कब्ज़ा कर लिया था। वह प्रोपर्टी शहर के बीचोंबीच थी जिसकी कीमत करोड़ों में थी जब आपसी बातचीत से मसला हल नहीं हुआ तो सुमित ने कोर्ट में केस कर दिया और विनय को वकील मुकर्रर कर दिया। उसे विनय पर पूरा विश्वास था इसलिए वह निश्चिंत था। जब भी वह विनय से केस के बारे में पूछता तो वह हमेशा यही कहता कि हमारा पक्ष बहुत मजबूत है तुम्हें टेंशन लेने की कोई जरूरत नहीं है ,देख लेना एक दिन जीत हमारी ही होगी। 

तारीख पर तारीख बहस चलती रही जिस दिन आखिरी फैसला होना था उस दिन सुमित समय निकाल कर कोर्ट पहुँचा विनय ने नज़रों ही नज़रों में उसे आश्वस्त किया पर यह देखकर वह दंग रह गया कि विनय की पूरी कोशिश केस हारने की थी उसका कोई भी तर्क सुमित के पक्ष को मजबूत करने वाला नहीं था और वह यह सब जानबूझकर कर रहा था जबकि सुमित उसकी योग्यता से परिचित था फिर वह ऐसा क्यों कर रहा था। 

अब सुमित को यह समझते देर नहीं लगी कि उसने विरोधी पार्टी से हारने के लिए पैसे ले लिए हैं। उसके पास पैसे की कमी नहीं थी पर बात न्याय की थी इतना अफसोस उसे केस हारने का नहीं था जितना दोस्त के अहसान फरामोश होने का था। क्या इस दुनियां में पैसे के आगे सारे संबंध फीके पड़ जाते हैं? ऐसा करते समय क्या उसकी अंतरात्मा उसे धिक्कार नहीं रही होगी या लालच ने हर उस आवाज़ को दबा दिया जो सच्चाई का आइना दिखाती हो। 

वह दोस्त जिसे वह अपना सब कुछ मानता था जिस पर आँख मूँद कर भरोसा करता था उसने अपने # दोहरे चेहरे को दिखाने में एक बार भी नहीं सोचा कि उसके दिल पर क्या गुजरेगी।उसके चेहरे पर रंचमात्र भी आत्मग्लानि नहीं दिखाई दे रही थी तो फिर क्या सुमित के पिता के पैर छू कर सम्मान प्रकट करना सिर्फ दिखावा था। वह विश्वास नहीं कर पा रहा था कि यह वही विनय है जो उसका हमराज़ और हमराह हुआ करता था।

जिंदगी इतनी छोटी तो नहीं कि भविष्य में उसे फिर कभी उसकी जरूरत न पड़े। उसके बारे में न सही कम से कम अपने ईमान के बारे में ही सोचा होता कहते हैं न किसी का दिल दुखाकर कोई सुखी नहीं हो सकता। किसी के साथ बुरा भी करें तो कम से कम अच्छा बनने का नाटक करके धोखा न दें चेहरे से नकाब कभी न कभी तो उतर ही जाता है। 

#दोहरे_चेहरे

स्वरचित एवं मौलिक

कमलेश राणा

ग्वालियर

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