समाज सेवा – विभा गुप्ता: hindi stories with moral

hindi stories with moral :

  ” माँ…मेरे आईएएस बनने की खुशी में मेरी सहेलियाँ मुझे किसी बड़े रेस्ट्रां में पार्टी देने के लिये कह रहीं हैं।मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है…क्या करुँ…पार्टी दूँ या मना कर दूँ….।” अपना हैंडबैग टेबल पर रखती हुई दीपा ने अपनी माँ से पूछा जो रसोई में बेटी के लिये चाय बना रही थी।

    चाय का कप दीपा को थमाते हुए माँ बोली,” देख बेटा..हमलोग मध्यमवर्गीय परिवार की श्रेणी में आते हैं।हमें आगे बढ़ता देख लोगों को ईर्ष्या होने लगती है।तुझे याद है ना…तेरे बाबा की गिनती ईमानदार-मेहनतकश लोगों में होती थी।उनके ऑफ़िस के लोग तो उनकी मिसाल देते थें।फिर कुछ ईर्ष्यालु लोगों ने उन्हें शराब की आदत लगवा दी..वे दिन-रात नशे में चूर रहने लगे।तब तेरे पिता को उन्हीं लोगों से जूते पड़ने लगे थे जो कभी उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते थें।उनकी मृत्यु के बाद हम दाने-दाने के मोहताज़ हो गये थें तब तेरी इन्हीं सहेलियों ने तुझसे मुँह फेर लिया था।तुझे हिकारत की दृष्टि से देखती थीं।जब मैं काम के लिये निकलती थी और तू सड़क की रोशनी में पढ़ाई करती थी तो आसपास के लोग हमें कितने ताने देते थें, हम पर छींटाकशी करते थें….,याद है ना।”

     ” हाँ माँ…सब याद है।” दीपा धीरे-से बोली।

       माँ बोली,” अब बेटी…,तूने अपनी कड़ी मेहनत से यह पद प्राप्त करके उन्हें मुँहतोड़ जवाब दे दिया है जो उन्हें हज़म तो होगा नहीं।तेरी वाहवाही करके तुझे आसमान पर तो बिठाएँगे ही, लेकिन तेरी एक गलती पर यही लोग तेरी आलोचना करने में एक मिनट की भी देरी नहीं करेंगे।इसलिये बेटी….इनकी चिकनी-चुपड़ी बातों में कभी मत आना।ये हमेशा ध्यान रखना कि तुझसे ऐसा कोई काम न हो जिससे हमें समाज के द्वारा जूते पड़े।ये पार्टी-शार्टी तो बड़े लोगों के चोंचलें हैं।हाँ…जब तुझे पहली तनख्वाह मिले तो मंदिर में जाकर भगवान को धन्यवाद अवश्य देना।बाहर बैठे गरीब-लाचार लोगों की थोड़ी मदद कर देना।देखो बेटा…समाज सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है।किसी की मदद करने में कभी निंदा नहीं होती…दुआएँ मिलती हैं।तेरे बाबा भी तो….।” कहते-कहते उनकी आँखें नम हो गई।

     माँ के आँसुओं को पोंछते हुए दीपा बोली,” मेरी अच्छी माँ…., आप चिन्ता मत कीजिए….आपकी बेटी ऐसा कोई काम नहीं करेगी जिससे आपको अपमानित होना पड़े।” कहते हुए वह अपनी माँ के गले लग गई।

                                           विभा गुप्ता

# जूते पड़ना                            स्वरचित

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