पुरानी यादों ने रिश्ते सँभाल लिए… – रश्मि प्रकाश  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “बेटा बहू कहाँ है?” बेटे के घर में आई सरला जी उसे घर का लॉक खोलते देख पूछी 

“ अंदर तो चलो बता रहा हूँ ।” महेश ने कहा 

अंदर कदम रखते ही अपना पर्स सोफे पर रख पूरे घर को एक नजर देखने के बाद सरला जी ने पूछा,” बता भी बहू कहाँ है?”

“ अरे माँ उसकी माँ की तबियत बहुत ख़राब थी…. अब बेटी का मन करने लगा माँ से मिलने का ….जाना तो मुझे भी चाहिए था उन्हें देखने पर आपके आने का था इसलिए मैं नहीं गया…. चंचल आज आ जाएगी…उसे पता है आप आने वाली है ।” महेश रसोई में जाकर चाय चढ़ाते हुए बोला

“ वाह ये सही है बहू का… जब तब मायके दौड़ती रहती है…डेढ़ घंटे का रास्ता है इसका मतलब क्या एक पैर मायके में ही रखे रहेगी।” नाक मुँह बनाती सरला जी बोली

“ कमाल करती हो माँ तुम भी…..पता है जब मैं बोला यार माँ आ रही है और तुम यहाँ नहीं रहोगी तो उन्हें अच्छा नहीं लगेगा…तुम मेरी पत्नी हो और तुम्हें मेरी ज़रूरतें समझनी होगी….पता है तब उसने क्या कहा …’मैं सिर्फ़ आपकी पत्नी नहीं किसी की बेटी भी हूँ…..जब मम्मी जी और पापा जी को आपकी ज़रूरत होती है तब तो आप एक पल को भी नहीं सोचते तुरंत ही रवाना हो जाते हैं… पर हम औरतें पहले आप लोगों का सोचती है बाद में मायके का…ऐसे में कई बार तो अंतिम दर्शन भी मुमकिन नहीं हो पाता … मैं वो स्थिति नहीं देखना चाहती … मम्मी जी के आने से पहले आ जाऊँगी पर अभी मुझे अपनी माँ को देखने जाना है;….अब आप ही बताइए माँ मैं उसे कैसे रोक सकता था ?” महेश ने पूछा 

“ बेटा शादी के बाद हर औरत के लिए पहले पति और ससुराल होता है बात में मायका.. हमने भी वही किया और बहू को भी वही करना चाहिए था जब पता था मैं आने वाली हूँ तो उसे जाना ही नहीं चाहिए था और गई भी तो आ जाना चाहिए था।” चाय का घूँट लेती ग़ुस्से में सरला जी बोली

तभी दरवाज़े की घंटी बजी… महेश ने दरवाज़ा खोला सामने चंचल उदास सी खड़ी थी आँखें रो रो कर सूजी हुई थी ।

घर में घुसते ही सास को प्रणाम कर वो अगले पल के किसी बार और किसी बात का इंतज़ार किए अपने कमरे में जाकर कपड़े बदल कर रसोई में आ गई ।

“ क्या हुआ… माँ ठीक तो है ना?” महेश ने चंचल को उदास देख पूछा 

“कुछ ठीक नहीं है महेश… माँ की हालत बिगड़ती जा रही है…..आजकल वो पापा को बहुत याद कर रही है कहती रहती हैं इतनी दवाइयाँ इंजेक्शन क्यों करवा रहे हो जाने दो अपने पापा के पास…माँ शायद अब जीना ही नहीं चाहती…. मेरा जरा भी मन नहीं कर रहा था उन्हें ऐसी हालत में छोड़कर आऊँ पर … आना भी तो ज़रूरी था ना माँ जो आई है ।” चंचल का उदास और धीमा स्वर बाहर दरवाज़े पर खड़ी सरला जी के कानों में भी पड़ा

कहते हैं अपना बीता  समय ऐसे ही वक्त पर याद आ जाता है…. सरला जी भी तो अपने पिता के अंतिम समय पर पहुँची थी…. पति की पत्नी बन कर ….बच्चों की माँ बन कर ज़िम्मेदारियों बीच ऐसी उलझी की आज कल करते करते पिता ही दुनिया से चले गए और सरला जी जब पहुँची पिता के दर्शन भी नसीब ना हुए …. सहसा वो कुछ सोचते हुए रसोई में आकर सामान्य बनते हुए चंचल से पूछने लगी,”कैसी है समधन जी?”

“ पत नहीं कब हमें छोड़कर चली जाए!” कहते हुए चंचल फफक पड़ी 

“ बहू फिर तो तुम्हें उनके पास होना चाहिए….तुम्हें याद रखना चाहिए पहले तुम किसी की बेटी हो फिर पत्नी… हम औरतें सच में शादी के बाद इसी धारा पर चलते रहते हैं शायद मैं भी तुम्हें उसी धारा पर चलने की शिक्षा देती पर आज याद आ गया… मेरे पिता मेरा इंतज़ार करते चले गए मैं पत्नी के फ़र्ज़ निभाने में …..बेटी भी हूँ भूल ही गई थी… तुम ऐसी गलती मत करो… मैं दस दिन के लिए आई हूँ ये सोचकर तुम उन्हें छोड़कर चली आई हो कल को भगवान ना करें समधन जी को कुछ हो गया तो ना तुम मुझे माफ कर पाओगी ना मैं खुद को अपराध मुक्त कर पाऊँगी… जाओ बहू तुम उनके साथ समय व्यतीत करो…जब वो ठीक हो जाए या फिर तुम्हें सही लगे तब आ जाना ।” सरला जी ने जब चंचल से कहा तो महेश आश्चर्य से उन्हें देख रहा था 

चंचल जल्दी से खाना बना कर निकल गई सरला जी ने उसकी मदद भी कर दी ।

“ माँ आप पहले तो कितना कुछ कह रही थी फिर अचानक से चंचल को जाने कैसे दिया?” चंचल के जाने के बाद महेश सरला जी से पूछा 

“ कुछ नहीं बेटा बस तेरे नाना की याद आ गई और अपने पत्नी और बेटी के फ़र्ज़…. पुरानी यादों ने ज़ख़्म ताज़ा कर दिए…. मैं समझ गई अभी बहू को बेटी की ज़िम्मेदारी निभाने दो… पत्नी की ज़िम्मेदारी तो वो मरते दम तक निभा ही लेती है ।”सरला जी एक लंबी आहह भरते हुए बोली 

महेश माँ के फैसले से खुश था बस मलाल था तो इतना कि वो सास को देखने नहीं जा सका जैसे ज़रूरत पड़ने पर चंचल उसका साथ निभाने से पीछे नहीं हटती।

दो दिन बाद ही चंचल की माँ दुनिया से चली गई…. सब काम क्रिया के बाद उदास चंचल जब अपने घर आई सास को पकड़ कर ख़ूब रोई और बोली,” माँ आपने मुझे समझा और माँ के पास भेज दिया नहीं तो शायद मैं माँ को फिर कभी देख भी नहीं पाती ।” 

सरला जी बहु को बस इतना ही बोली ,” कभी कभी पुरानी बातें याद आ जाए तो रिश्ते बिगड़ने से पहले सुधार लिए जाते हैं …बस मुझे अपना समय याद आ गया इसलिए तुम्हें भेज दी ।” 

दोस्तों कितना अच्छा हो रिश्ते कभी कभी यूँ ही सुधार लिए जाए …. मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#वाक्यकहानीप्रतियोगिता 

#मैंसिर्फ़ आपकी पत्नी नहीं किसी की बेटी भी हूँ ….

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