प्राइस टैग – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 ” बड़ी बहू , कल मिनी आ रही है।सगुना से कहकर उसका कमरा ठीक करा देना।”

      ” जी माँजी, जानती हूँ , माली काका को भी कह दिया है कि कल लाल गुलाब उनके कमरे के फूलदान में लगा देंगे।” सास के प्रश्न का बड़ी बहू ने जवाब दिया।

            मनोरमा देवी के तीन संतानों में मिनी सबसे छोटी और दोनों भाईयों की लाडली थी।माँ के साथ उसका अगाध स्नेह था और इसीलिए उसकी विदाई के बाद माँ अकेली न हो जाये, उसने पहले दोनों भाभियों का घर में स्वागत किया और फिर ससम्मान अपने घर से ससुराल के लिये विदा हुई।विदाई के समय सबके गले लगकर फूट-फूटकर बहुत रोई थी लेकिन संतोष था कि उसका मायका उससे छूटेगा नहीं क्योंकि ससुराल भी इसी शहर में था।

       कुछ महीनों बाद मिनी के पति का तबादला दूसरे शहर हो गया।उसने सोचा, शहर की दूरी से क्या होता है,दिलों में तो कोई दूरी नहीं है।फोन पर सभी से उसकी बात होती रहती थी।दोनों भाई भी बारी-बारी से आकर बहन का हालचाल पूछ लिया करते थें।मायके जाने का उसका मन तो बहुत करता था लेकिन पति की व्यस्तता के कारण वह अपने मन को मसोसकर रह जाती थी।

             एक दिन उसने किसी तरह से अपने पति को अकेले मायके जाने के लिये राजी कर लिया और माँ को फ़ोन करके बता दिया कि वह कल आ रही है।उस दिन उसने जी भरकर शापिंग की, अपनी माँ,दोनों भाभियों सहित भतीजे-भतीजियों के लिए बहुत सारे उपहार खरीदे।रास्ते भर सोचती रही कि माँ से ये कहेगी -वो कहेगी,भाभियों के साथ माॅल घूमने जायेगी वगैरह-वगैरह।उसके घर से मायके की दूरी सिर्फ़ तीन घंटे की थी लेकिन आज तो उसे ये तीन घंटे तीन दिन के समान लग रहें थें।



         ऑटोरिक्शा से जब वह घर पहुँची तो बुआ-बुआ कहकर बच्चे उससे लिपट गये।बातें करने और घूमते-फिरते रहने में दो दिन कैसे गुजर गए,उसे पता ही नहीं चला।

        कल सुबह की बस से उसे वापस जाना था।विदाई में माँ ने उसे प्योर सिल्क की एक साड़ी दी जो उसी की पसंदीदा रंग की थी, साथ में कान में पहनने के लिए एक जोड़ी टाॅप्स भी उसके हाथ में रख दीं।भाभियों ने भी साड़ियों सहित कुछ अन्य उपहार उसके ट्राॅली बैग में रख दिये थें।

          माँ पोती को नहला रहीं थीं, उन्होंने मिनी से कहा, ” बेटा, छोटी भाभी से जिया के लिए एक फ्राॅक तो माँगकर ले आ।” ” लाती हूँ माँ ” कहकर वह छोटी भाभी के कमरे की तरफ़ चल दी।वह कमरे के बाहर ही थी कि उसे बड़ी भाभी की आवाज़ सुनाई दी।छोटी भाभी से कह रहीं थी, ” अरी छोटी, तुमने क्या मुझे बुद्धु समझ रखा है जो मैं उसे पाँच हज़ार की साड़ी उसे दूँगी।

पाँच हज़ार-पाँच हज़ार की दो साड़ियाँ तो मैंने अपने लिए खरीदी थी।ये देख, मिनी की साड़ी तो सिर्फ़ चार सौ रुपये की है।बस मैंने अपनी साड़ी का प्राइस टैग निकालकर उसकी साड़ी के प्राइस टैग से बदल दिया।” सुनकर छोटी भाभी बोली, ” जीजी, आपकी होशियारी की तो मैं दाद देती हूँ।” और दोनों हँसने लगी।भाभियों की हँसी आज उसे पिघले शीशे के समान लग रही थी।नम आँखों से वह उल्टे पाँव लौट अपने कमरे में आ गई।भाभी की दी हुई साड़ी देखकर सोचने लगी, उसने तो अपने मायके को एक टूरिस्ट प्लेस समझा था लेकिन उसका मायका तो महज एक प्राइस टैग है।

               विभा गुप्ता 

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