स्नेह सूत्र – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

पूरी कहानी फोटो पर टच कर पढ़िये

माँ, गर्मियों की छुट्टियां होने वाली, हम नानी के घर कब जायेंगे। छोटे राहुल ने माँ प्रीती से पूछा।

     उदास स्वर में प्रीती बोली -राहुल अभी पापा को छुट्टी नहीं मिलेगी, इसलिये अभी नहीं जा पायेंगे।

   राहुल को उदास देख प्रीती ने उसे बहलाया कुछ दिनों बाद हमलोग किसी हिल स्टेशन चलेंगे।

  राहुल और रीना को नानी के घर जाने का बहुत बड़ा आकर्षण -दोनों मामाओं के बच्चे, जिनके साथ उनकी फुल मस्ती होती थी।

   मस्ती तो प्रीति  की भी होती थी। माँ का दुलार, भाभियों के कटाक्ष, व्यंग की अदा, फिर मान -मन्नवल में कब महीना बीत जाता पता नहीं चलता। ये मायके के रिश्ते भी ना, स्वाद में खट्टे -मीठे होते हैं। जिनके बिना जिंदगी नहीं। और ये बेटियां, जिस घर को अपना मानती वहाँ पराई हो जाती और जो उनका घर करार दिया जाता वहाँ पराये घर की मानी जाती। ये बेटियां टूरिस्ट की तरह छुट्टी में मायके आती और कुछ दिन रह, जीवन की संजीवनी बूटी ले ससुराल चली जाती।

इन कुछ लम्हों में पूरे साल की ऊर्जा ले आती।मायके आती तो ससुराल की जिम्मेदारियां याद आती और ससुराल में मायका। अजीब ही होती हैं ये बेटियां। क्योंकि फिर भी खुश रहती और परायी होकर भी एक घर बनाने में जुट जाती हैं। पर अब क्या मायका और मायके के रिश्ते..।प्रीति की सोच पर मोबाइल की घंटी ने विराम लगा दिया। बड़े भैया का फोन था -छुट्टियां शुरु हो गई, बच्चों को लेकर कब आ रही हो।

भाई की आवाज सुन प्रीति का गला भर गया। पिछले साल माता -पिता नहीं रहे। प्रीति को लगा अब उसका ये प्यारा ऊर्जा का स्रोत्र बंद हो जायेगा पर भाई की आवाज सुन लगा। स्नेह सूत्र सूखे नहीं हैं।अभी जड़े जमी हुई हैं।




             शाम जब प्रकाश आये तो प्रीति ने बड़े भैया के फोन के बारे में बताया। मै तो पहले ही कह रहा था, छुट्टियां हो गई तुम चली जाओ नहीं तो वहाँ सबको बुरा लगेगा मम्मी -पापा नहीं हैं तो मायके से रिश्ता खत्म हो गया, प्रकाश बोले।

 

       अगले दिन शाम की ट्रेन में जगह मिल गई। प्रीति प्रकाश के साथ जा भतीजे और भतीजियों के लिये गिफ्ट ले आई। हाँ इस बार वो दोनों भाइयों के लिये शर्ट और भाभियों के लिये साड़ी  भी खरीदी। अगले दिन शाम को प्रकाश ने प्रीति और बच्चों को ट्रेन में बैठा कर, भैया को बता दिया। प्रीति को दस दिन बाद आने का आश्वासन दिया। सब ठीक होगा वहाँ देखना सब तुम्हारा ख्याल पहले से भी ज्यादा रखेंगे, कह प्रीति के मन का भय दूर करने की कोशिश की।

 

          .. सुबह -सवेरे ट्रेन रुकते ही  प्लेटफॉर्म पर देखा तो भाई खड़े हाथ हिला रहे थे। जैसे पहले आते थे उसी तरह आज भी प्रीति को लेने आये। घर पहुंची तो वो प्रतीक्षा रत ऑंखें जो बाहर गेट पर ही टंगी रहती थी, आज वहाँ शून्यता थी। हाँ भाभी ने दरवाजा खोलते ही उलाहना दिया। इतने दिन बाद आई हो, भूल गई हम सबको। प्रीति की आँखों में आँसू देख उसे गले लगा लिया। माँ की जगह भर तो नहीं सकती, पर हाँ कोई कमी भी नहीं रहने दूंगी तुम्हे।

ये घर पहले भी तुम्हारा था, आज भी हैं। इसलिये कोई संकोच मत करना कभी। यही भाभी, जो पहले उसके आने पर  कटाक्ष करने से बाज नहीं आती थी. आज उसकी माँ बन, उनकी कमी पूरी करने की कोशिश कर रही।भाई पिता की तरह बच्चों की फरमाइश पूरी करने में लगे थे।बच्चे, भाई के बच्चों के साथ मग्न हो गये. रोज सैर सपाटे में कब दस दिन बीत गये पता ही नहीं चला। प्रकाश लेने भी आ गये।



            माँ -पापा की कमी किसी ने महसूस होने नहीं दिया। चलते समय भाभी ने उसे साड़ी और बच्चों को कपड़े दिये। टीका कर प्रकाश के हाथ में उसी तरह लिफाफा दिया जैसे माँ देती थी।

 

       भाई ने गंभीर स्वर में कहा -तू आई तो माँ -पापा के जाने के बाद पहली बार घर में रौनक़ आई। जब मन करें आना।पर ये कपड़े या गिफ्ट मत लाया कर। ये घर तुम्हारा भी उतना हैं, जितना हम सबका।मायके  तो तुम लोग टूरिस्ट की तरह आते हो, फिर चले जाते हो। पर खुशियों के कुछ पल दे जाते हो। बेटियां ऐसी ही होती हैं, जिनके आने से रौनक़ आ जाती हैं। सबकी आँखों में खुशी के आँसू थे।प्रीति का मन हल्का हो गया। मायका बना हुआ हैं. वो बेकार वहम पाली हुई थी।

 

           दोस्तों मायका, भाई -भाभी से भी चलता हैं बेशर्त समझदारी और प्रेम बना रहे।ना ननद बुरी होती ना भाभी, नजरिया बदल कर देखे सब अपने ही हैं। उसी तरह जैसे अपने भाई -बहन…।

 

                             .—संगीता त्रिपाठी 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!