दादा जी की वसीयत –  बालेश्वर गुप्ता : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :

    भुवनेश जी के घर मे आज धूम थी,हो भी क्यों ना ,आज उनके बेटे मनोज के यहां जुड़वाँ बेटों ने जन्म लिया था।दुहरी खुशी में सब सरोबार थे।तमाम रिश्तेदार आने प्रारंभ हो गये थे।भुवनेश जी ने भी सोच लिया था कि एक बड़ा समारोह का आयोजन करेंगे।ये सुअवसर उन्हें मनोज की शादी के 7 वर्षो बाद प्राप्त हुआ था।एक नही दो दो पोते पा भुवनेश जी अपनी खुशी रोक नही पा रहे थे।

        बहुत अरमान के साथ भुवनेश जी ने सात वर्ष पूर्व अपने एकलौते बेटे मनोज की शादी की थी।सोच रहे थे कि पोते पोती आयेंगे घर मे रौनक भी बढ़ेगी, साथ ही उन्हें भी जीने का सहारा व बहाना मिल जायेगा।मनोज की शादी हुए जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था,भुवनेश जी की व्यग्रता भी बढ़ती जा रही थी,पोते पोती के आने का स्वप्न पूरा हो ही नही रहा था। धीरे धीरे उन्होंने मन बना लिया कि जरूर बहू या उनके बेटे में किसी ना किसी मे कोई कमी है, तभी उनको बच्चा उत्पन्न नही हो रहा।पर ईश्वर के यहां देर तो हो सकती है पर अन्याय नही।पूरे सात वर्षो के लंबे इंतजार के बाद भुवनेश जी की इच्छा की पूर्ति दो दो पोतो के आगमन के साथ पूर्ण हुई।मनोज ने नामकरण संस्कार के समय अपने पिता की गोद मे दोनो बेटो को देते हुए कहा  बाबूजी इनके नाम तो आप ही रखेगे।बेटे द्वारा दिये इस सम्मान को रखते हुए भुवनेश जी ने अपने पोतों को नाम दिया-लव और कुश।

     भुवनेश जी की जिंदगी ही बदल गयी,लव कुश उनकी जीवन रेखा बन गये थे।साथ ही रहना,साथ ही खाना, साथ ही खेलना,एक क्षण भी पोतो से दूर रहना उन्हें गवारा नही था।लव कुश के साथ जीते जीते बुजुर्ग भुवनेश जी बोलते ये जो मेरा लव है ना ये हमारे व्यापार को संभालेगा, खूब चमकाएगा और ये कुश सेना में जाकर दुश्मनों का नाश करेगा।रे,मनोज सुन रहा है ना तू,देख लेना मेरे दोनो बच्चे मेरी अभिलाषा को पूरा करेंगे।मनोज भी कह देता,क्यो नही बाबूजी जैसा आपने सोचा है,ये वैसे ही बनेंगे,आपके हर अरमान पूरे होंगे।भुवनेश जी सुनकर निहाल हो जाते।

      लव कुश बड़े होते जा रहे थे तो भुवनेश जी बूढ़े।पर बढ़ती उम्र के साथ भुवनेश जी का स्नेह भी लव कुश के साथ बढ़ता जा रहा था। भुवनेश जी की इच्छा अपनी जवानी के समय सेना में जाने की थी,पर माँ ने अपने प्यार के कारण भर्ती होने ही नही दिया,तब वो पिता के व्यापार में लग गये, व्यापार बढ़ा तो अपने बेटे मनोज को सेना में भेजना उनके लिये मुश्किल हो गया। मनोज ने अपने पिता के व्यवसाय को ही संभाला। ये सब बाते अतीत का इतिहास बन चुकी थी।परिवार में जुड़वा पोतों के आते ही भुवनेश जी के मन में किसी कोने में सोयी पड़ी आकांक्षा जग गयी।वो चाहते थे कि एक पोता सेना में जाकर उनके अरमान को पूरा कर दे।अपनी इस अभिलाषा को उन्होंने मनोज को बता भी दिया।लव को व्यापार तो कुश को सेना,उन्होंने मानो वसीयत लिख दी।

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       भुवनेश जी का शरीर पूरा हो गया।मनोज पिता का व्यवसाय संभाल ही रहे थे,लव कुश अपनी पढ़ाई पूर्ण करने में लगे थे।मनोज ने अपने बेटों को उनके दादा की अभिलाषा ,सपने को बता दिया था।उन्होंने साफ कर दिया था,लव व्यापार में उनका हाथ बटायेगा तो कुश को सेना में जाना है।दोनो के लक्ष्य निर्धारित कर दिये गये थे।

       ग्रेजुएट होने के बाद लव अपने पिता मनोज जी के साथ व्यापार में लग गया।मनोज ने अपने दूसरे बेटे को NDA की प्रतियोगिता की तैयारी वास्ते शहर भेज दिया,जिससे वो सेना में अधिकारी बन कर अपने दादा का स्वप्न साकार कर सके।

       कुश अपनी पूरी लगन से प्रतियोगिता की तैयारी में लग गया।उसकी आँखों के सामने भी अपने दादा जी का सपना तैर रहा था।कुश की मेहनत रंग लायी और  कुश ने लिखित प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त कर ली।साक्षात्कार के लिये उसे वाराणसी जाना पड़ा,जहां एक सप्ताह तक उसका शारिरिक एवं मानसिक परीक्षण होना था।दुर्भाग्य वश अंतिम चरण में कुश असफल हो गया।सारी आशाओं पर तुषारापात हो गया,दादा जी के सपने का ऐसे टूटना उसे अंदर तक झिंझोड़ गया।

       मनोज ने अपने बेटे को हतोत्साहित नही होने दिया,फिर से तैयारी के लिये प्रोत्साहित किया।कुश ने एक बार फिर अपने को नई उमंग के साथ प्रतियोगिता की तैयारी में झोंक दिया।अबकी बार कुश की मेहनत और भाग्य ने साथ दिया और कुश ने लिखित तथा साक्षात्कार दोनो में ही बाजी मार ली।सेना में जाने का मार्ग प्रशस्त हो चुका था,ट्रेनिंग पूरी होते ही सीधे सेकंड लेफ्टिनेंट का पद मिलना था।देहरादून में कुश ट्रेनिंग को चला गया।

       आज का दिन मनोज के लिये विशेष था,उसे इंतजार था,सेकंड लेफ्टिनेंट कुश श्रीवास्तव का।इंतजार में निगाहे घर के दरवाजे पर टिकी थी।अब आया कुश अब आया,बेताबी बढ़ती जा रही थी।स्टेशन उसे लेने लव गया था।इतने में ही खनखनाती आवाज टकराई पापा मैं आ गया।सामने मिलिट्री की ड्रेस में मानो उसके पिता भुवनेश जी खड़े थे।भावातिरेक में मनोज ने कुश को बाहों में भर लिया।फिर   कुश को खींचते हुए मनोज उसे अपने पिता यानि भुवनेश जी के फोटो के पास ले गये।भर्राये गले से अपने पिता के फोटो से बोले मनोज,बाबूजी लो देख लो अपने कुश को,आपकी अभिलाषा को आखिर इसने पूरा कर ही दिया।

      बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक,अप्रकाशित।

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