वीरजी नाराज़ है – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

एक था हाथी। जंगल में लकड़ियाँ ढोने का काम करता था। उसकी देखभाल करता था भीमा महावत। भीमा हाथी को प्यार से वीरजी कहता, वैसे वीरजी शांत स्वभाव का था, पर कभी-कभी किसी बात पर क्रोध आ जाता तो जोर से चिंघाड़ उठता।
वीरजी की चिंघाड़ सुनकर जंगल में हलचल मच जाती। परिंदे डरकर पंख फड़फड़ाते हुए उड़ जाते। लेकिन रानी चिड़िया वीरजी के गुस्से से कभी न डरती। वीरजी और चिड़िया में दोस्ती थी। जब काम से फुरसत पाकर वीरजी नदी में नहाने जाता तो रानी उसकी पीठ पर बैठ जाती। वीरजी कहता, “तेरे पंख हैं, उड़ती क्यों नहीं!”
रानी जवाब देती, “उड़ते-उड़ते थक गई हूँ न, इसलिए सिंहासन पर सवारी कर रही हूँ। तुम हो चलता-फिरता सिंहासन।” सुनकर वीरजी हँस पड़ता।एक दोपहर वीरजी पंखें जैसे बड़े कान फड़फड़ाता हुआ पेड़ के नीचे खड़ा था। उसके सामने ताजे गन्नों का ढेर पड़ा था। तभी रानी चिड़िया वहाँ आई। आज वह चहचहा नहीं रही थी। वीरजी ने कहा, “रानी, क्या बात है‌? तू कुछ उदास दिखाई दे रही है।”
रानी चिड़िया ने कहा, “हाँ, बात ही कुछ ऐसी है।”
“मुझे भी बताओ न!” वीरजी ने कहा और गन्ने खाने लगा।
“आज तुम्हारे मालिक ने अट‌्टू-बट‌्टू को नौकरी से निकाल दिया। दोनों भूखे-प्यासे जंगल में बैठे हैं। बहुत उदास हैं।‘’
“लेकिन मालिक तो अच्छा आदमी है। देखो न हर रोज मेरे लिए ताजे गन्नों का नाश्ता भेजता है।” वीरजी ने कहा। “अट‌्टू-बट‌्टू ने जरूर कोई कसूर किया होगा।”
“उन दोनों पर चोरी का आरोप है, पर वे दोनों निर्दोष हैं। असल में तुम्हारे मालिक का रसोइया शैतान है। उसने कुछ सामान चुपचाप बेच दिया। पूछने पर अट‌्टू-बट‌्टू का झूठा नाम ले दिया। इसीलिए दोनों की नौकरी चली गई। बेचारे बहुत परेशान हैं।” रानी ने वीरजी को पूरी बात बताई।
मालिक यानी राम प्रसाद ठेकेदार। पूरे जंगल का ठेका उसके पास था। बहुत से मजदूर काम करते थे वहाँ। रानी की बात सुनकर वीरजी ने गन्ने खाना बंद कर दिया। वह अट‌्टू-बट‌्टू को जानता था। दोनों मेहनती थे। ‘यह तो गलत हुआ!’ वीरजी सोचने लगा फिर रानी से बोला, “वे दोनों कहाँ हैं?”
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“चलो, मैं ले चलती हूँ तुम्हें।” कहकर रानी उड़ चली। वीरजी भी धम-धम करता बढ़ चला। उसने अपनी सूँड में केलों का गुच्छा उठा रखा था। केले वीरजी के नाश्ते के लिए थे। वीरजी ने देखा अट‌्टू-बट‌्टू एक पेड़ के नीचे बैठे रो रहे थे। उसने अट‌्टू को कहते सुना, “हमने कभी चोरी नहीं की। शैतान रसोइए ने हमारी झूठी शिकायत की है।”
“मैं देखता हूँ कि इन दोनों की क्या मदद कर सकता हूँ।” वीरजी रानी चिड़िया से बोला।
“हाँ, तुम्हीं कुछ कर सकते हो, लेकिन जो करना है, जल्दी करो। नहीं तो शैतान रसोइया किसी और को भी अट‌्टू-बट‌्टू की तरह परेशानी में डाल सकता है।” रानी बोली।
“क्या तुम्हें पक्का विश्वास है कि जो तुम कह रही हो, वह ठीक है? कहीं ऐसा न हो, तुम्हारी बात गलत निकले।” वीरजी ने रानी चिड़िया से पूछा।
“मैं एकदम सच कह रही हूँ। मैंने अपनी आँखों से रसोइए को कुछ सामान एक गुफा में छिपाते हुए देखा है। जरूर वह सामान चोरी का होगा। वह कई बार उस गुफा में जाता है।” रानी चिड़िया ने हाथी को बताया।
वीरजी रानी चिड़िया के साथ उस गुफा तक गया। रानी ने कहा, “रसोइया एक पोटली लेकर इधर ही आ रहा है। लो, तुम खुद ही देख लो उस शैतान का कारनामा।”
वीरजी एक घने पेड़ के पीछे खड़ा देखता रहा। रामप्रसाद का रसोइया श्यामू एक पोटली लटकाए उस तरफ आता दिखाई दिया। श्यामू पोटली लेकर गुफा मेंघुस गया, फिर जब बाहर आया तो खाली हाथ था। “कोई अपना सामान गुफा में क्यों रखेगा?” वीरजी ने सोचा। उसने रानी से कहा, “ मैं इस छोटी-सी गुफा में जा नहीं सकता। तुम्हीं अंदर जाकर देखो और मुझे बताओ।”
श्यामू के वहाँ से चले जाने के बाद रानी उड़कर गुफा में गई। उसने वहीं से पुकारा, “अरे, यहाँ तो कई पोटलियाँ रखी हैं। इसका मतलब है श्यामू काफी दिनों से चोरी करता आ रहा है।”
“यह बात है।” कहकर वीरजी जोर से चिंघाड़ उठा। भीमा ने चिंघाड़ सुनी तो समझ गया हाथी गुस्से में है। वीरजी ने अपने नाश्ते में मिले गन्ने फेंक दिए। केलों का गुच्छा अपने भारी-भरकम पैरों से कुचल दिया। भीमा आकर वीरजी की सूँड थपथपाता हुआ उसे शांत करने का प्रयास करने लगा।पर वीरजी चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था। कोई समझ नहीं पा रहा था कि आखिर शांत-स्वभाव के वीरजी को एकदम क्रोध क्यों चढ़ आया है!
उन्हीं में श्यामू रसोइया भी था। उसे देखते ही वीरजी जैसे गुस्से से पागल हो गया। सूँड उठाकर चिंघाड़ता हुआ उसकी तरफ दौड़ा।
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डर से थरथर काँपता हुआ श्यामू भाग खड़ा हुआ, पर वीरजी भी पीछा छोड़ने वाला नहीं था। वह श्यामू को जंगल में दौड़ाता ही रहा। न जाने श्यामू को क्या सूझी वह दौड़कर उसी गुफा में घुस गया, जहाँ वह पोटली छिपाकर आया था। शायद वह सोचता था, हाथी उस छोटी-सी गुफा में नहीं घुस सकेगा और उसकी जान बच जाएगी।
वीरजी एकदम गुफा के बाहर जा खड़ा हुआ। अब श्यामू किसी भी तरह गुफा से बाहर नहीं निकल सकता था। उसने जैसे खुद को कैदखाने में बंद कर लिया था।
भीमा ने आकर वीरजी को शांत करना चाहा, पर वह चिंघाड़ता ही रहा। गुफा के अंदर से श्यामू के चीखने-चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं।
रानी चिडि़या ने वीरजी के कान में कहा, “अब गुफा के सामने से हट भी जाओ। तुम यहाँ अड़े रहोगे तो श्यामू का भांडा कैसे फूटेगा!”
वीरजी गुफा से दूर चला गया, पर श्यामू की हिम्मत गुफा से बाहर आने की न हुई। वह सोच रहा था, गुफा से बाहर निकलते ही हाथी उसे कुचल डालेगा। रामप्रसाद ने कई बार पुकारा, “श्यामू, अब कोई डर नहीं, वीरजी दूर चला गया है। बाहर आ जाओ।” पर श्यामू बाहर नहीं आया। आखिर हाथ में मशाल लेकर भीमा और उसके पीछे रामप्रसाद अंदर गए।
वहाँ रखी पोटलियाँ देखकर रामप्रसाद चौंक उठा। उसने कहा, “यह क्या! गुफा­ में ये पोटलियाँ क्यों?”
श्यामू तो वैसे ही डरा हुआ था। चोरी पकड़ी जाने से वह और भी घबरा गया। कुछ जवाब न दे सका। पोटलियाँ बाहर निकालकर खोली गई। उनमें काफी सामान था। वह भी था जिनकी चोरी का आरोप बेचारे अट‌्टू और बट‌्टू पर लगा था। रामप्रसाद ने पूछा तो श्यामू ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। गिड़गिड़ाते हुए माफी माँगने लगा।
रामप्रसाद ने भीमा से कहा, “आज तो वीरजी ने कमाल कर दिया। अगर वह गुफा का दरवाजा रोककर खड़ा न होता तो श्यामू का भांडा कभी न फूटता। मैंने अट‌्टू-बट‌्टू पर नाहक शक किया। वे निर्दोष हैं।”रामप्रसाद ने उसी समय अट‌्टू-बट‌्टू को वापस बुलवाया। माफी माँगते हुए कहा, “क्षमा करना। मुझसे गलती हुई।”
श्यामू को पुलिस पकड़कर ले गई। अट‌्टू-बट‌्टू फिर से काम पर लग गए। वीरजी शांत भाव से खड़ा था। रानी चिड़िया उसकी पीठ पर फुदकती हुई बोली, “आज तुमने इनाम का काम किया है। एक दुष्ट को दंड मिला। दो निर्दोषों को न्याय मिल गया।”
सुनकर वीरजी ने कहा, “रानी, तुम न होतीं तो भला मुझे क्या पता चलता। आगे से तुम ऐसी खबरें मुझे बताती रहा करो। शायद मैं किसी के लिए कुछ कर सकूँ।”
सुनकर रानी चिड़िया जोर-जोर से वीरजी की पीठ पर फुदकने लगी। वीरजी मीठे गन्ने खा रहा था।
(समाप्त )

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