आओ पार चलें – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

तेज बरसात हो रही थी। भीखू मल्लाह अपनी नौका पर छाजन के नीचे सिमटकर बैठा था। छाजन चारों ओर से खुला था। बूँदों की बौछार भीखू को भिगो रही थी। लेकिन वह क्या करता और कोई उपाय भी तो नहीं था।
भीखू का घर नदी के पार था। सोच रहा था,
“आज का दिन तो यूँही बेकार गया। पार जाने वाला कोई मुसाफिर आ जाए तो अच्छा हो।” लेकिन मौसम का हाल देखते हुए इस बात की उम्मीद कम ही थी। नदी किनारे तक आने वाली सड़क सुनसान थी। और अब तो दिन भी ढलने लगा था। नदी का दूसरा किनारा धुँधले कुहासे में छिप-सा गया था।
भीखू का मन हुआ- अब और इंतजार करना ठीक नहीं। वह नाव की रस्सी खोलने को उठा तभी उसने एक व्यक्ति को अपनी तरफ आते देखा।भीखू रुक गया। वह आशा भरी दृष्टि से आने वाले की ओर देखने लगा। “जरूर पार जाने वाला कोई मुसाफिर है, नहीं तो इस भारी बरसात में भला इधर क्यों आएगा।” सोचकर भीखू ने पुकारा, “जल्दी आ जाओ भाई, बस मैं नाव खोल ही रहा हूँ।”
आने वाला अब एकदम निकट आ पहुँचा था। वह सिर से पैर तक भीग चुका था। भीखू ने चप्पू सँभालते हुए उसे छाजन के नीचे आ बैठने का इशारा किया। लेकिन वह नाव पर नहीं चढ़ा, कुछ सोचता-सा खड़ा रहा, फिर धीरे से बोला, “माफ करना भैया! मुझे कहीं जाना नहीं है।”
“तो फिर …फिर…” भीखू के होठों से निकला। उसे एकाएक क्रोध आ गया।
“असल में दो दिन से खाना नहीं खाया है। बस, भटकता, भीगता हुआ इस तरफ चला आया। सोच रहा था, शायद कहीं कुछ…” अपनी बात बीच में ही छोड़कर वह चुप हो गया। लेकिन भीखू सारी बात समझ चुका था। सोचने लगा, “लगता है बेघर, बेकार है। तभी तो इस बरसात में भटक रहा है।
भीखू ने कहा, “आओ भैया, छाजन के नीचे बैठकर भीगने से तो बचो।‘’ फिर दोनों छाजन के नीचे बैठकर बातें करने लगे। उसका नाम रामसेवक था। घर में कोई नहीं था। काम की तलाश में भटकता फिर रहा था।
भीखू ने कहा, “आज मैं एक मुसाफिर को उस पार से इधर लाया थ। पर वह बिना उतराई दिए चला गया। नाव से उतरते समय मुसाफिर पानी में गिर पड़ा। मैंने उसे पानी से निकालकर किनारे पर पहुँचाया, पर उसने मुझसे ही झगड़ना शुरू कर दिया। कई लोग इकट्ठे हो गए। इस चक्कर में वह बिना पैसे दिए खिसक गया।” अपनी बात कहकर भीखू बरबस हँस पड़ा। रामसेवक भी मुस्कराए बिना न रह सका। बोला -‘ लेकिन मेरे पास…’
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भीखू ने हंस कहा -‘मैं समझ गया। तुम्हें कहीं नहीं जाना पर मुझे तो घर जाना है,मैं तुम्हें बरसात में यों अकेला छोड़ कर कैसे जा सकता हूँ। मेरे साथ चलो, सुबह जहाँ जाना हो चले जाना। मैं तुम्हें इस पार छोड़ दूंगा। ‘
रामसेवक चुप बैठा रहा। भोलू उसे नदी अपने घर ले आया।
उसकी पत्नी उमा झोंपड़ी के दरवाज़े पर ही खड़ी थी बेटी कमला का हाथ पकडे हुए। कमला ने कहा ‘बापू आ गए। ‘और खिलखिलाई ,तो रामसेवक भी मुस्करा उठा |
भोलू ने पत्नी से कहा -ये मेरे दोस्त हैं। मैं इन्हें जबरदस्ती संग ले आया,ये तो आ ही नहीं रहे थे ,तुम्ही कहो इतनी बरसात में इन्हें घाट पर कैसे छोड़ता। ‘
रामसेवक अचरज के भाव से देखता रह गया।भोलू उसे अपना दोस्त बता रहा था,बहुत दिन बाद उसने ये शब्द सुने थे। मन में कुछ होने लगा।बीते हुए दिन याद आने लगे ,आँखें भीग गईं। तभी उमा ने अंगोछा देकर कह-‘ बदन पोंछ लो। फिर भीखू ने एक कुरता धोती थमा दिये । बोला -‘पता नहीं मेरे कपडे तुम्हें ठीक आएंगे या नहीं ,इन्हें पहन लो। भीगे कपड़ों में खड़े रहना ठीक नहीं।‘
कुछ देर बाद रामसेवक और भीखू अंगीठी के पास बैठे गर्म रोटियां खा रहे थे। रामसेवक सोच रहा था-‘कहीं यह सपना तो नहीं!’ बहुत समय बाद घर का बना ताज़ा भोजन खाया था। पेट भर गया तो वह उठने लगा ,पर उमा ने कहा-‘एक रोटी और लो।’ कमला ने थाली में रोटी रखी तो उसने प्यार से उसका सिर सहला दिया।
कमला के भोले चेहरे पर मीठी हंसी खेल रही थी। रामसेवक की आँखों के सामने एक पुराना दृश्य तैर गया ,लगा जैसे सामने कमला नहीं उसकी मुनिया खड़ी हंस रही हो। वह तब दूसरे गांव में था जब अचानक आई बाढ़ में घर बह जाने की खबर मिली थी। तब से ऐसे ही भटक रहा है,कोई भी तो नहीं है अपना।
बारिश अब भी हो रही थी लेकिन कुछ धीमी पड गई थी। रामसेवक और भोलू बातें करने लगे,उमा ने रसोई का काम निपटाया और कमला को पढाने लगी। एक तख़्त पर रामसेवक का बिस्तर लग गया। भोलू का परिवार सो गया पर रामसेवक देर तक जागता रहा।।फिर न जाने कब नींद आ गई। एकाएक रामसेवक की नींद टूट गई। उसे पेट में दर्द महसूस हुआ। वह उठ बैठा। दर्द बढ़ता गया |
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उसने मुंह पर हाथ रख लिया कि उसकी कराह से किसी की नींद न टूट जाए। लेकिन शायद उसकी कराह कमला ने सुन ली थी। उसने सुना वह उमा को झिंझोड़ रही थी – माँ, देखो बाबा की तबीयत खराब है।‘ भोलू और उमा ने पूछा -‘क्या बात है भैया?’
अब रामसेवक को बताना पड़ा। उमा सेंक के लिए गरम पानी ले आई। कमला ने उसका हाथ पकड़ कर पूछा -‘बाबा,जी कैसा है?’
रामसेवक ने मुनिया का सिर सहला कर कहा-‘मैं ठीक हूँ बिटिया।’ तब तक भोलू वैद्य जी को बुलाने चला गया था। वैद्य जी ने आकर रामसेवक की नब्ज देखी ,पेट की जांच की।फिर दवा देकर कहा-‘शायद खाने की वजह से दर्द हो गया है ,चिंता की कोई बात नहीं ,दवा खाने से आराम आ जायेगा।
भोलू उन्हें छोड़ने गया तो वैद्य जी ने पूछा -‘इन्हें तो तुम्हारे घर में पहली बार देख रहा हूँ| ‘
भोलू ने कह दिया-मेरे पुराने दोस्त हैं। बहुत दिन बाद मिलना हुआ है। ‘ और कहता भी क्या।
रामसेवक की तबीयत दो दिन में ठीक हुई। इस बीच भोलू काम पर नहीं गया। कमला तो थोड़ी थोड़ी देर में आकर पूछती थी, ‘बाबा,अब तुम्हारा जी कैसा है। ‘
जवाब में वह कमला के घुंघराले केश सहला कर कह देता -‘तूने मुझे अच्छा कर दिया बिटिया।’ और यह सच भी था ,अगर उसकी कराह सुनकर कमला की नींद न टूटती तो वह न जाने कब तक दर्द की पीड़ा सहता रहता।
उस सुबह मौसम साफ़ था -रामसेवक ने भोलू से कहा -‘अब मैं ठीक हूँ। आज तो नाव खोल लो। मुझे पार ले चलो। ।मेरे कारण तुम्हारे काम का कितना हर्ज़ हुआ है।‘
भोलू ने पूछा -कुछ सोचा है कहाँ जाओगे ,क्या करोगे?’
रामसेवक ने आकाश की और देखा,कुछ बोला नहीं। उमा ने कहा -जल्दी आना, कमला तुम्हें याद करेगी। ‘
चलते समय रामसेवक ने कमला को आलिंगन में बाँध कर उसका माथा चूम लिया फिर जल्दी से सिर घुमा कर दूर देखने लगा | आँखों में गीलापन मचल रहा था।
नदी पार आकर रामसेवक नाव से उतरा तो भोलू ने कहा =’तुमने बताया नहीं कि कहाँ जाओगे।’
रामसेवक ने फिर आकाश की ओर देखा ,बोला -कहीं भी जाऊं ,कुछ भी करूँ पर इतना मालूम है कि मुनिया से मिलने जरूर आऊंगा। ‘और तेजी से बढ़ चला| बारिश थम गई थी पर आंखें बरस रही थी।
(समाप्त )

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