प्रेशर कुकर-संजय सहरिया

“मम्मी अगले सप्ताह तुम्हारी मैरेज एनिवर्सरी है.पच्चीसवीं सालगिरह.मुझे पता है कि तुम्हे तो बिल्कुल भी याद नही होगा.घर खर्चे  के साथ अलग से पैसे भेज रही हूं.अपने पसन्द की प्यारी सी साड़ी ले लेना.वो पुरानी चप्पल कब तक पहनोगी? कीमत जो भी हो पर  किसी अच्छे शॉप में जाकर ब्रांडेड और आरामदायक सेंडल देख लो.पापा को उनके मनपसन्द कलर की बंडी दिलवा देना.उनके चश्मे का फ्रेम मुझे बिल्कुल पसंद नही है.एकदम ओल्ड मॉडल है.नए फैशन वाले फ्रेम में चश्मा बनवा लेने बोलना.”

सुबह सुबह मधुरा बिटिया का वाट्सअप मैसेज देख सुलोचना देवी के चेहरे पर भावपूर्ण मुस्कान आ गयी थी.

गार्ड की नोकरी करने वाले पति मनोहर की छोटी सी तनख्वाह के बावजूद सुलोचना देवी ने एकलौती बेटी मधुरा की पढ़ाई लिखाई में कभी कोई कमी नही होने दी थी.अब मधुरा शहर में पढ़ाई के साथ साथ कोचिंग क्लास में पढ़ाने का काम भी कर रही थी.

सुलोचना देवी गार्ड के रूप में पति मनोहर को रात दिन लोगो को सलाम करते देखती थी.छोटी छोटी बात पर साहब मेमसाहब की डाँट फटकार खाते देखती थी. सब देखकर कभी कभी उसकी आंखे भर आती थी.तब नन्ही मधुरा माँ को धैर्य बंधाती थी.वो विश्वास दिलाती थी कि एक दिन सब बदल जायेगा.

अब सबकुछ बदलने  लगा था.मधुरा ने पिता को गार्ड की नोकरी करने से मना कर दिया था.मधुरा की मेहनत और पढ़ाने के उसके अंदाज की वजह से उसे कोचिंग सेंटर वाले अच्छे पैसे देने लगे थे.

अब छोटे मोटे खर्चे के लिए सुलोचना देवी को सो बार सोचने की जरूरत नही रह गयी थी.

सुलोचना ने न जाने कितने समय से कोई नई साड़ी नही खरीदी थी.उसे ठीक से पता भी नही था कि उसके कस्बे में साड़ियों की अच्छी दुकान कौन कौन सी है.इसलिए उसने पड़ोस में स्टिचिंग का काम करने वाली मालती को तैयार कर लिया था साथ चलकर साड़ी दिलवाने के लिए.

उधर मधुरा के पिता मनोहर भी अपने दोस्त प्रताप को लेकर बाज़ार जाने वाले थे बंडी लेने के लिए.

सुलोचना घर लौटी तो सामने टेबल पर एक बड़ा सा लेटेस्ट मॉडल वाला ब्रांड न्यू प्रेशर कुकर रखा था.

“अरे ये कुकर कहाँ से आया मधुरा के पापा.”

सुलोचना  आश्चर्य भरी निगाहों से प्यारे से कलरफुल कुकर को देख रही थी.

“सुल्लु तुम दिनभर उस पुराने खटारा कुकर के साथ कुश्ती लड़ती रहती हो. धे घण्टे के काम मे दो घण्टे लग जाते है तुम्हे.इसलिए इस बार बंडी के पैसे से ये कुकर ले लिया है मैंने.”

पति मनोहर ने कुकर हाथ मे उठाकर सुलोचना को दोनो हाथों में पकड़ाते हुए कहा.

“अरे तुम ने कैसी साड़ी ली है दिखाओ जरा.”

“साड़ी नही मनोहर भैया ….भाभी आपके लिए ये नई साईकल लेकर आई है”

मालती  बाहर खड़ी चमचमाती साईकल दिखाते हुए मुस्कुरा रही थी.

” रोज आपको कभी साईकल की चैन ठीक करते हुए देखती थी तो कभी मडगार्ड ठीक करते हुए.अब आप इस नई साईकल से चला करेंगे.”

“मतलब तुमने साड़ी और चप्पल के पैसे से मेरे लिए साईकल खरीद ली.”

“बिल्कुल जैसे आपने बंडी और चश्मे के बदले ये  ये चमचमाता कुकर ले लिया मेरे लिए”

दोनो खिलखिलाकर हंस पड़े थे कि तभी मधुरा का वाट्सअप पर वीडियो कॉल देख दोनो सहम गए थे.मधुरा साड़ी और बंडी का पूछेगी तो क्या जवाब देंगे उसे.

आखिर कर सुलोचना ने कॉल रिसीव किया तो सामने चंचल मुस्कान के साथ मधुरा दिख रही थी.

“पापा -मम्मी आपदोनो ने अपने अपने सामान ले लिए न.”

पर दोनों चुपचाप थे. पापा के बगल में नया कुकर और मम्मी के बाजू में नई साईकल मधुरा को अपने फोन की स्क्रीन में दिख रही थी.

मम्मी पापा के स्वभाव से परिचित मधुरा को सारा माजरा समझ आ चुका था.

“आप दोनों के प्रेम में कितना त्याग और स्नेह है मम्मी -पापा.मैं कितनी खुशनसीब हूँ कि ऐसे संस्कार देने वाले पेरेंट्स की संतान हूँ .इसी परवरिश और परिवेश ने मुझे दुनिया मे मजबूती और निर्भयता के साथ खड़ा होना सिखाया है.लव यू मम्मा लव यू पापा.जिस तरह से आपदोनो ने सालगिरह को सेलिब्रेट किया है वो अपने आप मे कितना अनूठा है.”

भींगी पलको से मधुरा अपने माता पिता को देख मुस्कुराए जा रही थी.

तभी मनोहर ने थैले से ताजे रजनीगन्धा से बना गजरा निकालकर सुलोचना के बालों में लगा दिया तो सुलोचना देवी भी शरमाते हुए आहिस्ता से हैप्पी ऐनिवर्सरी बोलकर पति के सीने से लग गयी थी.

 

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