प्रश्नचिन्ह – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आज टीवी पर एक धारावाहिक चल रहा था जिसकी कुछ पंक्तियां अपूर्वा के कानों में पड़ी। उसे लगा ऐसा ही तो कुछ लोगों ने जब उसका रिश्ता मिहिर के साथ तय हुआ था तो बोला था। असल में जब अमीर घर के सुंदर और बहुत ही हैंडसम लड़के मिहिर के साथ उसका रिश्ता तय हुआ था तब बहुत सारे रिश्तेदारों ने उसकी मां और पापा को बोला था कि आपकी और आपकी बेटी की किस्मत अच्छी है जो घर बैठे इतना अच्छा रिश्ता मिल गया। ऐसा ही कुछ पंक्तियां उस सीरियल में भी बोली जा रही थी।

इन पंक्तियों ने उसको बहुत कुछ याद दिला दिया था। बात शुरू होती है जब वो छोटी सी बच्ची थी। दो भाई बहन में वो दूसरे नंबर पर थी। भाई विराट से वो तीन साल छोटी थी। मां और पापा दोनों ही अपने बच्चों को सारी सुविधा देने के लिए बहुत मेहनत करते थे। दोनों की अच्छी नौकरी थी। जैसा की अक्सर होता है कि माता-पिता की अपेक्षाएं अपने बच्चों से पढ़ाई-लिखाई और खेलकूद सभी में अच्छा करने की होती है। इसी चाहत में कई बार ये वो भी भूल जाते हैं कि हर बच्चे की अपनी क्षमता होती है।

हर बच्चा अपनेआप में अलग होता है। इतना ही नहीं ये चाहत बढ़ते बढ़ते कई बार उनके खुद के बच्चों में भी प्रतिद्वंदिता उत्पन्न कर देती है। ऐसा ही कुछ अपूर्वा के साथ हो रहा था। उसका बड़ा भाई विराट पढ़ाई-लिखाई,खेलकूद सबमें बहुत अच्छा था पर अपूर्वा का तो इनमें से किसी बात में मन नहीं लगता था।जहां विराट कक्षा में टॉप करता वहीं अपूर्वा बड़ी मुश्किल से पास हो पाती। 

जहां विराट के परीक्षा परिणाम का मां और पापा को बेसब्री से इंतज़ार होता वहीं अपूर्वा से उन्हें कोई उम्मीद ना होती। इन्हीं सब में वो जाने अंजाने दूसरों के सामने भी अपूर्वा के कोमल मन को विराट से उसकी तुलना कर चोट पहुंचा देते थे। छोटी सी बच्ची अपनी तरफ से मां-पापा का पूरा ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करती पर असफल रहती।

ऐसा नहीं था कि वो हर बात में ही बेकार  उसके चेहरे का भोलापन और मासूमियत बरबस ही सबका ध्यान आकर्षित करता। पेंटिंग और बचपन से ही कपड़े से तरह तरह की गुड़ियां बनाने में वो माहिर थी पर उसकी ये सब बातें उस तक ही सीमित थी। मां और पापा के लिए अपूर्वा का पढ़ाई में अच्छा ना होना उसथी।का सबसे बड़ा अवगुण था।

मां और पापा का प्यार और प्रशंसा पाने के लिए उसने भी भाई की तरह पढ़ाई के विषय चयन करने चाहें तब मां ने एक बच्चे के मनोविज्ञान को ना समझते हुए कई रिश्तेदारों के सामने उसको डांटते हुए कहा था कि अपने कम दिमाग के साथ तुम विराट की बराबरी नहीं कर सकती। हालांकि उस दिन पापा ने मां को थोड़ा रोकने की कोशिश भी की थी पर मां उसको सुनाए बिना नहीं मानी थी।मां का सबके सामने झिड़कना उसके दिल और दिमाग में इस तरह बस गया था कि अब वो अपनी ही दुनिया में पूरी तरह गुम हो गई थी। इस तरह की अवेहलना ने उसको पूरी तरह आत्मकेंद्रित और ज़िद्दी बना दिया था। 

इसी तरह समय बीतता गया और वो उम्र के उस दौर में पहुंच गई थी जहां विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण भी बढ़ जाता है। उसके मामा की बेटी की शादी थी। मिहिर और उसका परिवार वहां लड़के वालों की तरफ से आया हुआ था। मिहिर तो जैसे अपूर्वा के चेहरे की सुंदर चितवन का दीवाना ही हो गया था। वैसे भी वहां पर मिहिर और उसके परिवार वालों को अपूर्वा के परिवार की भी हैसियत का भी अंदाज़ा हो गया था।

शादी की तीन-चार दिन की रस्मों के बीच मिहिर अपूर्वा से बहुत प्यार से पेश आया था। अपूर्वा के लिए भी ये बिल्कुल नया एहसास था। एक तो कुछ उम्र का तकाज़ा और दूसरी तरफ ज़िंदगी में पहली बार किसी ने उसको इतनी अहमियत दी थी, नहीं तो,आज तक तो वो मां-पापा की नज़रों में नकारा ही थी। इन तीन-चार दिनों में ही अपूर्वा और मिहिर बहुत पास-पास आ गए थे। एक दूसरे के मोबाइल नंबर भी दोनों ने ले लिए थे।मिहिर अपूर्वा से उम्र में सात-आठ साल बड़ा ही था। वो भांप चुका था कि अपूर्वा के माता-पिता के दोनों बच्चों में तुलनात्मक रवैए ने उसको पूरी तरह बागी बना दिया है।

मिहिर और उसके घर वालों को शादी में मिलता हुआ मोटा देहज अभी से दिखना शुरू हो गया था। वैसे भी वो जानते थे कि रिश्तेदारों में उनकी ऐसी शाख है कि हर कोई उनकी तारीफ ही करता है। चार पांच महीने की जान पहचान के बाद ही अपूर्वा मिहिर के रंग में इस कदर डूब गई थी कि उसने खुद ही मां पापा के सामने मिहिर संग अपनी शादी की बात रखी थी।अपूर्वा अभी सिर्फ बीस साल की ही थी, उसके स्नातक होने में भी अभी एक साल बाकी था। पर वो सब कुछ सोचे बिना मिहिर से शादी के लिए अड़ी थी।

इस बार उसके मां पापा ने उसको हर तरह से समझाने की कोशिश की पर वो कुछ सुनने को तैयार ना थी। उसके मन में आज अपनेआप को सही और अपने माता-पिता को गलत साबित करने की धुन सवार हो गई थी। उसको कहीं ना कहीं लग रहा था कि अब वो अपने कदम पीछे नहीं करेगी। अब वो दिखा देगी कि उसके लिए फैसले भी सही होते हैं।इधर मिहिर के परिवार से भी दोनों की शादी का प्रस्ताव आ गया था। रिश्तेदारी में जिसने भी सुना उसने यही कहा कि  घर बैठे इतने अच्छे लड़के का रिश्ता आना किस्मत की बात है। 

इस तरह अपूर्वा की शादी करके मिहिर के घर आ गई। शुरू में तो सब ठीक रहा पर धीरे-धीरे अपूर्वा ने देखा कि उसके घर से मिले सारे गहने और अच्छे कपड़े सास ने अपने पास रख लिए थे। उसने मिहिर से इस बारे में बात की तो उसने बड़ी आसानी से यह कहकर कि मां को लगा होगा कि तुम्हारी उम्र अभी कम है,तुम शायद अभी इतना सब संभाल ना पाओ ये सोचकर अपने पास सुरक्षित रख लिए होंगे,अपूर्वा को चुप करा दिया।

पर अब धीरे-धीरे घर में जो नौकर लगे हुए थे उनकी भी छुट्टी कर दी गई। सारे कामों का बोझ अपूर्वा के कंधों पर आ गया। उसके साथ सबका व्यवहार भी बदलने लगा था। मिहिर ने वैसे भी अपना नया काम शुरू करने के बहाने उसके पापा द्वारा दी गई सारी एफडी तुड़वाकर सारे रुपए ले लिए थे। वो बहुत अकेली पड़ती जा रही थी। कई बार घर जाती या मां-पापा से फोन पर बात होती तो वो चाहती कि उनको सब कुछ बता दे पर फिर उसके कानों में बचपन में मां और पापा द्वारा कहे हुए शब्द नकारा और नाकाबिल गूंजने लगते।

उसकी मां ने एक बार सबके सामने कहा भी था कि वो कोई काम बिना सहारे के नहीं कर सकती। बस यही सोचकर वो फिर से अपने हालात से खुद ही लड़ने को तैयार हो जाती। मिहिर से शादी करने का फैसला चूंकि उसका स्वयं का था तो वो नहीं चाहती थी कि कोई भी अब पुनः उस पर प्रश्नचिन्ह लगाए। रोज़ उसके लिए नया संघर्ष होता पर अब जो होने जा रहा था वो उसकी सोच से बिल्कुल अलग था। बहुत दिनों बाद मिहिर ने अपूर्वा को अपने साथ खाने पर ले जाने का कार्यक्रम बनाया।

अपूर्वा बहुत खुश थी क्योंकि शादी के थोड़े समय के बाद से ही उसके साथ ससुराल के सभी लोगों के रूखे व्यवहार और उसकी सारे सामान को हड़पने की कोशिश शुरू हो गई थी। पर अपूर्वा को अनुमान भी नहीं था कि ये खाने पर ले जाना तो मिहिर की एक चाल थी। बातों में बातों में मिहिर ने अपूर्वा को कहा कि उसको अपने माता-पिता से जायदाद में अपना हिस्सा अभी मांग लेना चाहिए।

वैसे भी उसके माता-पिता उसको ज्यादा पसंद नहीं करते। कल को ये ना हो कि विराट की शादी के बाद वो सब कुछ उसके नाम कर दें और वो खाली हाथ रह जाए। अभी उसको भी अपना व्यापार बढ़ाने के लिए थोड़ा रुपए चाहिए। ये सब सुनकर अपूर्वा ने कहा कि वो पहले ही अपने नाम की सारी एफडी मिहिर के व्यापार के लिए दे चुकी है। यहां तक की उसके सारे गहने भी मिहिर और उसके घर वालों द्वारा रख लिए गए हैं। त्यौहार और किसी भी आयोजन के नाम पर भी उसके मां-पापा से बहुत कुछ बीच बीच में मंगवा ही लिया जाता है। 

अब वो इतनी स्वार्थी नहीं बनेगी जो अपने हिस्से की मांग मां- पापा से करना शुरू कर दे। उसके ऐसा कहते ही मिहिर गुस्से से भर गया और उसको भद्दी-भद्दी गालियां देते हुए घर खींचकर ले आया। मिहिर ने अपूर्वा का फोन भी छीन लिया और एक कमरे में उसको बंद कर दिया। घर वालों को भी कहा कि जब तक अपूर्वा अपनी ज़िद्द नहीं छोड़ती तो कोई उसको खाना नहीं देगा।

अपूर्वा मिहिर के इस रूप पर हैरान थी। आज उसको अपनी किस्मत पर तरस आ रहा था। थोड़ी देर रोने-धोने के बाद उसको लगा कि बस बहुत हो गया ऐसे हाथ पर हाथ रखने से काम नहीं चलेगा। उसको अभी जीना है। भले ही मां पापा की नज़रों में वो कुछ भी नहीं बन पाई पर पूरी दुनिया में वो ही उसको यहां से बचा सकते हैं। जीवन अनमोल है वो घुटघुट कर इसको खत्म नहीं कर सकती।अब वो सबसे पहले अपने मां-पापा तक अपनी खबर पहुंचाने की कोशिश करेगी।

 कहते हैं ना जहां चाह वहां राह।मिहिर ने अपूर्वा को छत के ऊपर वाले कमरे में बंद किया था।उस कमरे की खिड़की बराबर वालों की छत पर खुलती थी। जब पड़ोसन दिन में वो कपड़े डालने ऊपर आई तब अपूर्वा ने उसको एक कागज़ पर अपने पापा का फोन नम्बर लिख कर दिया और कहा कि वो उनको सिर्फ इतना बोल दें कि अपूर्वा मुसीबत में है। पड़ोसन ने उसके माता पिता को फोन करके सारी वस्तुस्थिति से अवगत कराया। पड़ोस से फोन सुनते ही अपूर्वा के माता पिता तुरंत उसकी ससुराल के लिए निकल गए।

उनको अचानक से आया देख अपूर्वा के ससुराल वालों के हाथ-पैर फूल गए। जब माता-पिता ने अपूर्वा के विषय में पूछा तब पहले तो वो उसकी तबियत खराब होने की बात करने लगे पर बात को बिगड़ता देख अपूर्वा को उनके सामने लाना ही पड़ा। अपूर्वा जब अपने माता-पिता के सामने आई तो उसकी हालत बहुत खराब थी। उसने दो दिन से खाना नहीं खाया था।

वो उनको देखते ही बेहोश हो गई। अब अपूर्वा के पापा ने तुरंत एंबुलेंस को फोन किया और साथ-साथ उसकी ससुराल वालों को कहा कि अब वो एक मिनट के लिए भी अपनी बेटी को उन लोगों के बीच नहीं छोड़ सकते। अपूर्वा को समय से चिकित्सय सुविधा मिलने से उसकी हालत में सुधार होने लगा। हालांकि उसको इतना सदमा लगा था कि वो बिल्कुल चुप रहने लगी थी। अब वो अपने मां-पापा के साथ अपने मायके थी। उसे यहां आए पंद्रह दिन हो गए थे। वैसे तो वो चुपचाप अपने बिस्तर पर पड़ी रहती थी पर आज टीवी पर आने वाले धारावाहिक की पंक्तियों जिसमें घर बैठे अच्छा रिश्ता मिलने पर नायिका के माता-पिता और उसकी किस्मत को श्रेय दिया जा रहा था ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया था। वो कुछ और सोचती इतने में ही मां और पापा उसके पास आकर बैठ गए। 

उनको देखते ही अपूर्वा के मुंह से निकला कि मां और पापा मुझे माफ़ कर दो,आप लोग सही थे। मैं वास्तव में बिल्कुल नकारा और अपने बलबूते पर कुछ भी करने में असक्षम हूं। मेरी जगह अगर थोड़ी सी भी समझदार लड़की होती तो आज आप लोगों की किस्मत कुछ और होती। आपको इतने दुख ना देखने पड़ते। उसका ऐसे सुनते ही उसके माता-पिता के आंसू निकल पाए वो कहने लगे कि बेटा हम लोगों को माफ कर दे।

शायद कहीं ना कहीं हम दोनों बच्चों की तुलना करने में तेरे अंदर छिपी प्रतिभा को नहीं पहचान पाए। रही बात किस्मत की तो तेरे जैसे बहादुर बेटी किस्मत से ही मिलती है। ये तेरा ज़िद्दीपन ही था जो तू ऐसी विषम परिस्थितियों में भी सब अकेले सह पाई। काश हमने अपने दोनों बच्चों को बराबर समझा होता तो ये नौबत नहीं आती।

फिर पापा ने उसको स्नातक की अधूरी पढ़ाई पूरी करने का फॉर्म दिखाया और साथ ही साथ उसको ब्यूटी और मेकअप संबंधी कोर्स करने की उसकी पुरानी इच्छा पूर्ण करने की बात कही। इधर मिहिर और उसके घरवालों के खिलाफ देहज की प्रताड़ना का केस भी दर्ज़ कराया। ब्यूटी और मेकअप कोर्स की बात सुनकर अपूर्वा की आंखों में सुंदर भविष्य के सपनें उड़ान भरने लगे। उसको एहसास हुआ कि अब उसके ऊपर लगे सारे प्रश्नचिन्ह हट जाएंगे। उसकी किस्मत अब जरूर करवट लेगी।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी?अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। कई बार माता पिता का अपने ही बच्चों में तुलनात्मक रवैया उनके भविष्य पर भी प्रश्रचिन्ह लगा देता है। आवश्यक नहीं सब बच्चें पढ़ाई में अच्छे ही हों। मेरा मानना है कि जैसे हाथ की पांचों उंगली अलग-अलग होती है वैसे हर बच्चा अपने आप में अलग और किसी ना किसी गुण से परिपूर्ण है।

#किस्मत

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

 

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