प्रसाद – दीप्ति सिंह

राशि का गोलमटोल बेटा शुभ जब से घुटने चलने लगा है माँ को खूब दौड़ाता है गिरी हुई वस्तुओं को नियत स्थान पर रखते -रखते राशि थक जाती है कभी कभार तो भोजन करना भी दूभर हो जाता है।

“राशि …राशि ”  की आवाज लगाते हुए मकान मालकिन रचना ऊपर आयी।

 “क्या बात है दीदी ? …राशि ने दरवाजा खोलते हुए पूछा।

 ” मैं शुभ को ले जाऊं …मानू और शानू कह रहे है… मम्मी !आँटी जी का बेटा बहुत प्यारा लगता है आप ले आओ ना …हम उसके साथ खेलेगें।”

” दीदी ! आप रोज ले जाया करो और पूरे दिन रखा करो। सुबह की चाय पी रखी है ग्यारह बजने को आये..  भूख लग रही है पर ये जनाब डालने दे रहे है मुहँ में निवाला।”

” इसे मैं ले जा रही हूँ ,तू नाश्ता कर।”

राशि अभी नाश्ता ले कर बैठी थी नीचे से फिर आवाज आई “राशि ! जल्दी से नीचे आ… .”

  इस आशंका के साथ कहीं मानू शानू खिलाते हुए शुभ को गिरा न बैठे हो बच्चे ही तो है अभी …राशि अतिशीघ्रता से दो-दो सीढ़िया फलांगते हुए राशि के सामने पहुँची

शुभ घुटनों चलते हुए मंदिर वाले कमरे में पहुँचा और मंदिर में कान्हा जी के भोग के लिए जो भी रखा था सब अपने मुहँ पर लगा रखा था।खाने के साथ जमीन पर गिरा भी रहा था।

” दीदी! इसने तो सारा प्रसाद झूठा कर दिया; मुझे माफ़ कर दो …अब  आप इसे नीचे मत लाना।”

“अरे पगली ! रोज मैं कान्हा जी को भोग लगाती थी आज तो साक्षात कान्हा जी स्वयं भोग उठा कर खाया है मेरी पूजा सफल हो गयी। अब तो इसे रोज लाऊंगी ” कहते हुए रचना ने शुभ को गोद में उठा लिया। राशि भी रचना की बात सुन कर भाव विभोर हो गयी।

दीप्ति सिंह  (स्वरचित ,मौलिक)

 

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