बहू/बेटी / सास/माँ – गीतांजलि गुप्ता

थोड़ी देर को बाहर ले चलो सिस्टर कमरे में पड़े पड़े मन घबरा गया है। शालू सिस्टर से कह रही थी पर सिस्टर सुना अनसुना कर कमरे से निकल गई। महीने भर से शालू अस्पताल में दाखिल है। उस का भाई मानव कभी कभी मिलाई के समय आ जाता है औपचारिक मुलाकात होती है।

ठीक हो…हाँ …कुछ चाहिए… नहीं…घर में सब कैसे हैं….सब ठीक।।

बस इतनी बातों के बाद एक ख़ामोशी छाई रहती है और फिर मानव के जाने के बाद वही डरावना सन्नाटा।

दिन में कई बार दरवाज़ा खुलता है कभी सफ़ाई कर्मचारी तो कभी दवाई देने वाली सिस्टर आती हैं अपनी सूनी आँखों से दरवाजे की तरफ शालू देखती रहती है। खाना देने वाला तीन समय खाना रख जाता है। बहुत बड़ा अस्पताल है। साज सफाई पूरी रहती है। खाने की पौष्टिकता पर पूरा ध्यान रखा जाता है। कमरे में टेलीविजन व फ़ोन की सुविधा भी है।

शालू के पति सीमा पर तैनात हैं गर्भावस्था चल रही है उसकी। कुछ कॉम्प्लीकेशंस के कारण हॉस्पिटल में ही रहना होगा उसे। शालू की शादी के बाद माता पिता बड़े भाई के साथ अमेरिका चले गए। शालू को हमेशा से मिलिट्री के ऑफिसर को अपना पति बनाने का सपना था जो पूरा भी हुआ पर पति नीरव कम ही घर आ पाते थे शालू स्कूल में पढ़ाती है जिससे समय गुजर जाता है। नीरव के माता पिता दूसरे शहर में रहते हैं। नीरव की ड्यूटी हमेशा ऐसे स्थान पर रहती जहाँ परिवार नहीं ले जाया जा सकता था।

सबकी अपनी अपनी जिंदगी अपनी उलझने, कोई किसी को अधिक समय नहीं दे पाता। समाज व सामाजिक रिश्ते सीमाओं में जकड़ते जा रहे हैं। शालू को अधिक उठना बैठना मना है। नीरव का कॉल भी कम ही आता जहां वो पोस्टेड है नेटवर्क की समस्या रहती है।

कभी कभी माँ से बात करती है पर उनसे बात कर अब अपनापन नहीं महसूस करती। खिंची खिंची सी रहती है। डॉक्टर कहते हैं ये चिड़चिड़ापन बेबी के आने के बाद ठीक हो जाएगा शालू को दिन रात कटाने को दौड़ते हैं पर लाचार है कुछ नहीं कर सकती।

आज जी भर रोई है शालू कितनी बेबसी है। नीरव की कॉल पर बिलख पड़ी। नीरव मजबूर है क्या करे कुछ समझ नहीं आता उस की ड्यूटी ही ऐसी है। कुछ ही देर बाद खुद ही हँसते हुए पति से फोन पर बात  करने लगी ताकि वह उदास ना हो जाये।



खाना खाने का भी मन नहीं करता पर जबरन खाना पड़ता है। शाम को डॉक्टर आई तो उस से रिकवेस्ट की बहार जाने की। उन्होंने व्हीलचेयर पर बाहर जाने की इजाज़त दे दी। खुशी में कई बार डॉक्टर का धन्यवाद किया। मीना नाम की आया उसे बाहर ले गई। कितने दिनों बाद खुले आसमान पर उड़ते पंछी, डूबता सूरज देखा शालू ने। चार कदम चलना चाहती थी पर चलने के मनाही थी चक्कर जो आते रहते हैं उसे। आधा घण्टे बाद फिर वही कमरा वही दीवारें।

उफ़्फ़!!!

टी वी चलाया वही बकवास सीरियलस वही बक़वास समाचार!!! अचानक एक ख़बर पर निगाह पड़ी। देश में कुछ हुआ है। भाई को फ़ोन करने को फोन उठाया ही था कि तभी फ़ोन बज उठा नीरव का कॉल था सांस में सांस आई उसने कहा चिंता मत करना हम यहां ठीक हैं इधर कुछ नहीं हुआ है खबरों पर ध्यान मत देना तुम्हारी तबीयत बिगड़ जाएगी। कुछ देर दीवार पर लगे राम दरवार के चित्र को देखती रही फिर कब सो गई पता ही नहीं चला।

सुबह जब आँख खुली तो सासू माँ व ससुर जी कमरे में मौजूद थे। “आप कब आये मुझे जगाया क्यों नहीं। ठीक हैं ना सब।” शालू को शंकित देख सुषमा जी पास आकर कुर्सी पर बैठ गईं।

“इतनी शंकित क्यों हो बेटा, हमें आया देख परेशान मत हो हम तो पहले से ही आना चाहते थे पर तेरे ससुर जी का पैर टूट गया था। तुझे बताया नहीं था और हाँ अपना नीरव बिल्कुल ठीक है ये टी वी वाले तो बात को बढ़ा चढ़ा कर दिखाते हैं। उसी ने कहा तेरे पास जल्दी से पहुँचने को।”

“कितनी देर कर दी माँ आपने और शालू सुषमा जी के गले लग रोने लगी। लगता है अब मेरी सजा पूरी हो गई आप लोगों के साथ अकेलापन दूर हो जाएगा।” भावुक हो शालू बोलती रही।

कुछ दिनों बाद शालू का ऑपरेशन हुआ उसका ‘उच्च रक्तचाप’ पूरे नौ माह परेशानी का कारण बना रहा। उसकी गोद में बेटा तो आया पर साथ ही एक मनहूस ख़बर भी उसे मिली नीरव किसी आतंकी हमले में घायल हुआ था और उसने अपना एक पैर गवां दिया था। बेटा पाने की सारी खुशियाँ धूमिल हो गई।

मां का फ़ोन आया,” कि तेरी प्रेग्नेंसी के कारण तुझे नहीं बताया था बेचारा नीरव हमेशा के लियें अपाहिज हो गया।”

“कुछ तो शर्म करो माँ वो मेरा पति है माना आपको उसके साथ मेरी शादी मंजूर नहीं थी पर ऐसे शब्द बोलकर आप हमारा अपमान कर रही हो। आपको तो गर्व होना चाहिए कि उसने देश के लियें…. खैर छोड़ो अब आप……??

उसे अपनी सुषमा माँ ने गले लगा लिया बहू को बेटी मानने का सुख और सास को माँ मानने का धर्म चरितार्थ हो गया।

गीतांजलि गुप्ता

नई दिल्ली।

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