पिया का घर – कमलेश राणा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  :  आज अंकित की शादी थी जिसका सभी को बेसब्री से इंतज़ार था। वह दो साल का मासूम सा बच्चा था जब माधवी उसे अपने साथ ले आई थी वह माधवी की बहन का बेटा था। माधवी की बहन की एक एक्सीडेंट में असमय ही मृत्यु हो गई थी घर में इतने छोटे बच्चे को संभालने वाला कोई नहीं था और फिर मौसी तो होती ही माँ सी है तो उससे ज्यादा अच्छे तरीके से उसकी देखभाल भला और कौन कर सकता था।

अंकित के पिता कुछ समय तक तो उससे मिलने आते रहे पर जबसे उन्होंने दूसरी शादी की पूरी तरह से बेटे से रिश्ता खत्म कर दिया। अंकित को तो उनकी शक्ल भी याद नहीं है और न ही पिता शब्द से कोई लगाव।

माधवी ही उसकी यशोदा मैया बन गई है भले ही उन दोनों के मन एक दूसरे से पूरी तरह संतुष्ट हों पर इधर- उधर के लोग तो जहर भर ही देते.. क्या करे बेचारे के न माँ है न बाप, कैसी किस्मत लेकर पैदा हुआ है। पाल पोस कर बड़ा कर दिया तो क्या हुआ कोई जायदाद में हिस्सा थोड़े ही न दे देंगे।

इन बातों को सुनकर उन्हें बहुत गुस्सा आता पर किस किसका मुँह बंद कर सकते हैं। अंकित एम टेक करने के बाद एक मल्टी नेशनल कंपनी में अच्छी पोस्ट पर नियुक्त हो गया था बहुत सारे रिश्ते आ रहे थे उसके लिए पर पता नहीं क्यों उसे विवाह के नाम से ही डर लगता क्योंकि उसकी जिंदगी के अधूरेपन ने उसे अंतर्मुखी बना दिया था वह बहुत कम बोलता था बस बोलती थी तो उसकी आँखें जिनमें न जाने कितनी खामोशियाँ दम तोड़ रही थी।

उसकी कंपनी में ही साक्षी भी जॉब करती थी अंकित की खामोश निगाहें उसे उनमें छिपे राज़ जानने के लिए आमंत्रित करती प्रतीत होती वह बार- बार उससे बात करने की कोशिश करती। आखिर अंकित भी उसकी तरफ आकर्षित होने लगा एक दिन बातों ही बातों में अंकित ने उससे पूछा तुम हमेशा अपने मामा मामी के बारे में बातें करती हो कभी अपने मम्मी पापा का नाम नहीं लेतीं ऐसा क्यों??

नाम तो तब लूँ न जब उनकी कोई याद मेरे साथ हो मुझे तो ठीक से उनकी शक्ल तक याद नहीं। मेरे पिता गरीब और सीधे सादे इंसान थे एक दिन उनके मालिक ने उन्हें झूठे केस में फंसा दिया और उन्हें जेल हो गई।

माँ बहुत महत्वाकांक्षी महिला थी उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुझे छोड़कर एक धनाढ्य व्यक्ति के साथ शादी कर ली और इस तरह मैं मामा मामी की जिम्मेदारी बन गई परंतु उन्होंने अपना फर्ज़ बखूबी निभाया और मुझे पढ़ा लिखा कर इस योग्य बना दिया कि आज मैं अपने पैरों पर खड़ी हूँ।

दोनों के दिल की हालत एक जैसी ही थी उस दिन के बाद से उनका रिश्ता और भी मजबूत हो गया और दोनों ने शादी के बंधन में बंधने का फैसला कर अपने- अपने घर वालों को जब इसके बारे में बताया तो सभी बहुत खुश हुए और धूमधाम के साथ साक्षी अंकित की दुल्हनियाँ बन कर आ गई।

आज माधवी बहुत खुश थी उसने पूरे मुहल्ले में बहू की मुँह दिखाई का बुलावा लगवाया। सभी लोग साक्षी की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे बड़े शहर की ऊँची पोस्ट पर नौकरी करने वाली बहू के बारे में सभी सोच रहे थे कि बहुत मॉडर्न होगी पर यहाँ तो कुछ अलग ही नजारा था साक्षी बड़े सलीके से माथे तक घुंघट डाले बैठी थी और जो भी महिला उसे शगुन का लिफाफा देती वह मुस्कुरा कर हाथ जोड़ देती।

तभी एक महिला ने गाना शुरू किया..

मैं तो भूल चली बाबुल का देश
पिया का घर प्यारा लगे।

ननदी में देखी है बहना की सूरत
सासूजी मेरी हैं ममता की मूरत
पिता जैसा ससुर जी का वेष
पिया का घर प्यारा लगे।

तभी अचानक साक्षी की सिसकियों ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया गाने वाली महिला भी चुप हो गई। आँसू उसकी आँखों से लगातार बहते जा रहे थे क्योंकि न तो उसके जीवन में सास, ननद थी और न ही पिता के समान लाड़ लडाने वाले ससुर।इस गाने ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था और वह खुद पर काबू नहीं रख पाई। आज उसके आंसुओं ने उसकी बात मानने से इंकार कर दिया था माधवी सब कुछ समझ गई और उसे उठाकर अंदर ले गई।

समझ तो सभी रहे थे क्योंकि सभी वास्तविकता से परिचित थे साक्षी के साथ जो लोग अंकित की माँ को जानते थे उनकी आँखें भी नम हो गई थी।

 

स्वरचित एवं अप्रकाशित
कमलेश राणा
ग्वालियर

साप्ताहिक विषय— #आँसू

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