तुलसी क्यारा और घर आंगन- पुष्पा जोशी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : शारदा जी और गिरीश बाबू का विवाह हो गया। गिरीश बाबू अपने माता पिता की इकलौती संतान थे। माँ का देहांत हो गया था। घर में तीन प्राणी थे, गिरीश बाबू शारदा जी और उनके ससुर केदार नाथ। पुरखों का बना सुन्दर घर था। सुन्दर रसोई। पानी भरकर रखने का अलग स्थान। पाॅंच हवा और रोशनी दार सुन्दर कमरे। एक बड़ा हाल।

चारों तरफ कमर की ऊँचाई तक बनी दीवार से घिरा आंगन। ऑंगन के बीचोंबीच सुन्दर तुलसी क्यारा जिसमें दीपक रखने के लिए छोटा सा आलिया। मोगरे और चमेली की बेले ऑंगन की दीवार पर फैली थी, और उनकी खुशबू से ऑंगन महक रहा था। दीवार के सहारे से लगी छोटी-छोटी क्यारियों में सुन्दर-सुन्दर पुष्प लगे थे।

बगीचे की साफसफाई और देखभाल माली करता था।गिरीश बाबू व्यवहार कुशल, गम्भीर और आकर्षक व्यक्तित्व वाले इन्सान थे। घर की खेतीबाड़ी थी और कई नौकर चाकर काम करने वाले थे। गाँव में परिवार की बहुत इज्जत थी। शारदा जी के ससुर जी उन्हें पितृतुल्य स्नेह देते थे। शारदा जी को किसी चीज की कमी नहीं थी।

बस उन्हें यही बात अखरती थी, कि उनकी सास और देरानी ,जैठानी क्यों नहीं है? वे संयुक्त परिवार से आई थी और घर में उन्हें बहुत खालीपन लगता था। फिर घर में खुशियाँ आई उनके तीन बेटे हुए नीरज, पंकज और सुबोध पूरा आंगन उनकी किलकारियों से गूंजता रहता। शारदा जी को घर के कार्यो से फुर्सत ही नहीं मिलती, पर वे बहुत खुश थी ।

बच्चे बड़े हो गए और पिता की खेती बाड़ी को सम्हालने लगे थे। शारदा जी सोचती कि जब बहुए आएंगी तो वो भी सबके साथ मिलकर त्यौहार मनाऐंगी। बहु मिलकर तरह -तरह के व्यंजन बनाएगी । पूजा की तैयारी में उसकी मदद करेगी। सब मिलकर, होली दीपावली करवा चौथ और सारे त्यौहार मनाऐंगे। वह सोच-सोच कर ही वे खुश हो जाती थी।

मगर ईश्वर को तो कुछ और ही मंजूर था। नीरज और पंकज ने अपनी पसंद से शादी कर ली। माला और रजनी को सिर्फ अपने पति से मतलब था सास,ससुर , देवर का उनके जीवन में कोई स्थान ही नहीं था। शारदा जी के ससुर का देहांत हो गया था, और गिरीश जी और शारदा जी का शरीर भी अब थकने लगा था। शारदा जी मन से भी बहुत दु:खी रहने लगी।

आज वे गाँव में किसी के यहाँ हो रहै विवाह समारोह से लौटी थी। दोनों बहुओं ने उनके साथ जाने से इन्कार कर दिया था। वे वहाँ से लौटी तो सोच रही थी शादी में तीनों बहुओं ने मिलकर कितने अच्छे से काम सम्हाल लिया। जानकी जी को तो पता ही नहीं चला और उनकी बेटी की शादी कितने आराम से हो गई ।

वे यह सोचकर परेशान हो रही थी, कि छ: महिने बाद उनके छोटे बेटे की शादी है, बहुओं का अगर ऐसा रवैया रहा तो वह क्या करेगी, कैसे विवाह सम्पन्न होगा। खैर, आया कार्य रूकता नहीं है सुबोध की शादी भी जैसे जैसे सम्पन्न हो गई। प्रभा एक संस्कारी लड़की थी। वह जिस परिवार से आई थी वह संयुक्त परिवार था। चार भाइयों का परिवार था। उसके दो काका, दो काकी, ताऊ- ताई, माता- पिता सब साथ में प्रेम से रहते थे।

उसके सात चचेरे भाई थे और वह सबकी इकलौती लाड़ली बहिन थी। माँ, ताई और काकी उसे हमेशा यही शिक्षा देती थी कि बेटा परिवार में मिलजुल कर रहना चाहिए, घर में अगर किसी बात पर विवाद हो तो मिलकर सुलझाना चाहिए। घर की बात घर की चार दिवारी के बाहर नहीं जानी चाहिए। जरूरत पढ़ने पर हमारा परिवार ही हमारे काम आता है। उसने सबकी शिक्षा को अपने दिल के अन्दर उतार लिया।

जब वह इस घर में आई तो उसे घर का माहौल अजीब लगा। घर में इतने लोग थे, मगर कोई किसी से ज्यादा बातें नहीं करता। वह सबसे बहुत प्रेम से बोलती, सबके कार्य में मदद करती। सुबह शाम सासु जी के साथ तुलसी में दिया लगाती। उसका व्यवहार ऐसा था‌ कि घर में सब उससे खुश थे।

वह कभी अपनी जिठानियों के साथ घूमने का प्रोग्राम बनाती, कभी उनके साथ मंदिर जाती, शारदा जी को भी साथ ले जाती। वास्तव में देखा जाय तो उसकी जिठानियॉं भी अकेले रह रह कर बोर हो जाती थी। बस उनमें थोड़ी अकड़ थी,वे परिवार के महत्व को नहीं समझती थी और रही सही कसर आस पड़ौस के लोगों ने उनके एक दूसरे के प्रति कान भरके पूरी कर दी थी, वे जब भी अवसर मिलता उनके सामने उल्टी सीधी बातें करती और वे दोनों आपस में नहीं बोलती थी। प्रभा उन दोनों के बीच‌ की दूरियाँ कम करने का प्रयास करती।

बड़ी बहू माला की डिलेवरी होने वाली थी, प्रभा उसका पूरा ध्यान रखती। जैसे जैसे समय निकट आ रहा था शारदा जी की चिन्ता बढ़ती जा रही थी। और एक रात वह समय आया माला दर्द से तड़प रही थी,प्रभा ने सासु जी से कहा आप परेशान न हो, मैं और रजनी दीदी माला दीदी के साथ अस्पताल जा रही हैं मैंने तीनो भाई को भी फोन लगा दिया है, वे भी आ जाऐंगे।

रजनी की जाने की इच्छा नहीं थी तो प्रभा ने उन्हें धीरे से कहा दीदी, दु:ख के समय भी अगर हम एक दूसरे का ध्यान नहीं रखेंगे, तो कैसे काम चलेगा। आज दीदी को हमारी जरूरत है कल हो सकता है हमें उनकी मदद की जरूरत पड़े। रजनी ने कहा मगर वे तो…..

उनकी बात पूरी भी नहीं होने दी और प्रभा बोली दीदी बाकी बातें बाद में करेंगे दीदी आप मेरे खातिर अस्पताल चलिए। रजनी उसकी बात टाल न सकी। शारदा जी का मन कुछ शांत हुआ। रात को माला को अस्पताल में भर्ती कराया। नीरज भैया भी अस्पताल में रूके सुबह माला को लड़का हुआ।

घर में खुशी की लहर छा गई। रजनी और प्रभा ने पूरा काम सम्हाल लिया। अब माला और रजनी भी आपस में बोलने लगी थी। माला ने शारदा जी से कहा मम्मीजी रजनी और प्रभा ने मेरी बहुत सेवा की है। आप सही कहती थी, कि कष्ट के समय परिवार ही काम में आता है, मुझे माफ करना मैं आपकी बात को पहले समझ नहीं पाई। शारदा जी ने प्यार से माला के सिर पर हाथ रखा और कहा बेटा ये दोनों तेरी छोटी बहिने है, इन्हें प्यार से रखना।

तुम तीनों प्रेम से रहोगी, तो हमारा घर आंगन खुशियों से महकता रहेगा। हर मॉं यही चाहती है कि उसके बच्चे प्यार से रहै। कोई समस्या हो तो आपस में मिलकर सुलझाएं, घर ऑंगन की बात घर से बाहर न जाए और परिवार का तमाशा ना बने। हम तो अब पक्के‌ पान है, पता नहीं कब झड़ जाऐंगे।

आगे का जीवन तुम्हें ही साथ में गुजारना है, बच्चों को अच्छे संस्कार देना। प्रभा ने कहा माँ आप और पापा अभी कहीं नहीं जाऐंगे। अभी तो आपको नन्हें कान्हा के साथ खेलना है।

परिवार में वैमनस्य की जो परत चढ़ी थी उसे प्रभा ने अपने व्यवहार से दूर कर दिया था। शारदा जी की ऑंखों में बरसों से पल रहा ख्वाब अब पूरा हो रहा था वे और उनकी तीनों बहुऐं अब प्रेम से मिलजुल कर हर त्यौहार मनाती। घर ऑंगन खुशियों से महकने लगा था। तुलसी का क्यारा अपनी सुरभी से वातावरण को पवित्र बनाए रखता।

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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