“पता नहीं किस जमाने में जीती हैं आप”- रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आज सुबह से ही अम्मा के पेट में दर्द हो रहा था….. यहां वहां बेचैन सी घूम रही थी…. कभी बिस्तर पर लेटती…. तो कभी उठकर टहलने लग जाती…।

 सुभाष जब दफ्तर के लिए तैयार हो रहा था तो तनु ने आकर धीरे से बताया कि” लगता है ,आज मां जी को कोई परेशानी है, देखिए ना थोड़ी बेचैन दिख रही है”।

 सुभाष ने कहा कि “पूछ कर देखो ना, क्या हुआ?”

 तनु गई ही थी बात करने की… दोनों बच्चों में जंग छिड़ी थी…. दोनों भागते हुए दादी के पास पहुंच गए… तनु ने दोनों को डांटते हुए कहा….” देख नहीं रहे, दादी की तबीयत ठीक नहीं… क्या हुआ मां ?कुछ परेशानी है क्या?”

 अम्मा बोलीं नहीं… नहीं कोई बात नहीं… देखो तो बच्चों को उन्हें देर ना हो जाए…. तुम अपना काम करो….।

 सुभाष दफ्तर के लिए निकल गए….।

 बच्चे भी स्कूल चले गए….।

 घर में बस तनु ही थी….।

 उसे बार-बार लग रहा था की अम्मा जी को कोई परेशानी है…. वह अभी भी बिस्तर पर लेटी थी…. अपने काम करते हुए वह दोबारा मां जी के पास गई… और प्यार से बोली “क्या हुआ मां…. कुछ तो परेशानी है…”

 मां ने कहा “कुछ नहीं जरा सा पेट में दर्द है, ठीक हो जाएगा…. थोड़ा आराम कर लूं ….आराम करने से ठीक हो जाएगा…।

 तनु बोली अरे मां ऐसे ठीक नहीं होगा… सुबह से पूछ रही हूं…. आप बता देतीं तो कोई दवा मंगवा लेती या मैं खुद ले आऊं…।

 अम्मा ने आवाज थोड़ा तेज करते हुए कहा… “कहा ना कोई जरूरत नहीं…. ठीक हो जाएगा… जाओ अपना काम करो…. कुछ हुआ नहीं की दवा… दवा… थोड़ा आराम करती हूं…. एक बार नाश्ता पानी ना करूं…. पेट थोड़ी देर खाली रहे….देखना खुद ब खुद आराम हो जाएगा…।

 मां को हमेशा से आदत रही थी…. अपनी परेशानी किसी को जल्दी नहीं बताती थी…. और बता भी दे तो दवा खाना तो बिल्कुल भी नहीं चाहती थी…. यह बात घर में आई बहु… तनु भी अच्छे से जान गई थी….। इसलिए कोई जल्दी पूछने भी नहीं जाता था…. अक्सर अगर आप स्वयं अपनी परेशानी को नजर अंदाज करें तो दूसरे तो उसे बिल्कुल भूल ही जाते हैं ।

सुबह से दोपहर हो गई…. बच्चे वापस आ गए…. लेकिन दादी की तबीयत ठीक ना हुई…।

 दर्द कुछ तेज ही हो गया…. अब तो उनसे उठा भी ठीक से नहीं जा रहा था…। दोनों बच्चे दादी दादी करते हुए दादी के पास लटक गए….” दादी आप सोई क्यों हैं …क्या हुआ दादी…. दादी उठिए ना…. चलिए खाना खाते हैं…।”

 दादी ने कोई जवाब ना दिया…. अब तो तनु से रहा ना गया…. वह जरा खीझ कर बोली…” क्या मां सुबह से दोपहर हो गई…. आप ऐसे ही सो रही हैं…ना नाश्ता किया… ना खाना खाया… अब तो उठिए, चलिए अस्पताल… डॉक्टर को दिखाएं ….।

अम्मा कराहते हुए बोली….” हां अब तो लगता है अस्पताल ही जाना पड़ेगा, बहुत दर्द हो रहा है… अब बर्दाश्त नहीं हो रहा” या कुछ दवाई ही दे है तो…”

 अब तो तनु को गुस्सा आ गया.. वह बोली “सुबह से आपको दवाई के लिए बोल रही हूं…. पर आप हैं की सुनती नहीं….”।

 अम्मा बोलीं “क्या बोलूं सुभाष को सुबह दफ्तर जाने में बेकार देरी हो जाती…. फिर तुम्हें भी तो कई काम होते हैं…. अपने लिए किसी को परेशान करना अच्छा नहीं लगता…. इस पर दवा के लिए तुम्हें अकेले जाना पड़ता….। कैसे जाती तुम?”

 तनु ने मां को सहारा देकर बिठाते हुए कहा” पता नहीं किसी जमाने में जी रही हैं आप”।

 “क्या होता उन्हें देर हो जाती…. क्या होता…. अगर मुझे अकेले जाना पड़ता…. एक दिन कोई काम देर होने से या नहीं होने से कोई फर्क नहीं पड़ता…. लेकिन अगर आपकी तबीयत अधिक खराब हो गई तो…. बताइए कितनी परेशानी होगी…. आप थोड़ी देर रुकिए…. मैं सबसे पहले दवा लेकर आती हूं…. फिर कोई काम होगा।”

 इतना कह कर तनु घर से निकल गई…. थोड़ी देर में दवा लेकर आई और अम्मा को खिलाया…. घंटे 2 घंटे में अम्मा का दर्द बहुत आराम हो गया वह उठकर तनु के पास गई और बोली “ला कुछ दे खाने को…. क्या बनाया है?”

 तनु ने प्यार से उनके गले में बाहें डालकर कहा “क्या मां ऐसा पुराने जमाने में होता होगा कि बैठे-बैठे दर्द ठीक हो जाए… अब ऐसा नहीं होता…. और वैसे भी आपसे बढ़कर क्या कुछ… कोई काम…. अब देखिए तो कितना हंसता घर लग रहा है ।”

बच्चे भी दादी दादी करते पीछे-पीछे दौड़ लगाने लगे…. अम्मा भी हंस पड़ीं….।

 सुबह से पहली बार खिले उनके चेहरे की चमक देखकर पूरा घर अचानक खुशियों से भर गया…।

स्वलिखित मौलिक अप्रकाशित

रश्मि झा मिश्रा

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