बेटी क्यों नहीं…? – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : ” ये क्या भाभी…आपने रजनी को भईया के मोटर गैराज चलाने को दे दिया।हमारे खानदान में तो लड़कियाँ ऐसा काम नहीं करती।वहाँ पर पचास तरह के लोग आते-जाते हैं…लड़की जात है…कुछ ऊँच-नीच हो गया तो…।”

तीखे स्वर में सीमा ने अपनी भाभी सुनंदा से कहा।

     सुनंदा का पति सोमेश्वर एक मोटर मैकेनिक था।दो साल तक उसने दूसरे के गैराज में काम किया।फिर उसने बैंक से लोन लेकर अपना खुद का मोटर गैराज खोल लिया।वह मेहनती था और उसके हाथ में ऐसा जादू था कि कोई भी गाड़ी किसी भी कंडिशन में क्यों न हो, उसके हाथ लगाते ही चलने लगती थी।उसका व्यवहार भी इतना मधुर था कि उसके स्टाफ़ और कस्टमर, दोनों उससे बहुत खुश रहते थे।स्कूल की जब भी छुट्टी होती तब रजनी अपने पिता के गैराज में चली जाती थी।उसे वहाँ के औजारों से खेलना अच्छा लगता था।अक्सर वह नीचे बैठकर पहियों को घूमते देखती रहती थी।

       सीमा सुनंदा की चचेरी ननद थी।उसका पति टेलरिंग का काम करता था।फिर किसी की मदद से उसके पति को दुबई में काम मिल गया।चार साल तक उसने वहाँ काम खूब पैसा कमाया और फिर अपने शहर में आकर उसने एक बुटीक खोल लिया।पैसा आया तो सीमा के चाल-ढाल बदल गये।नये-नये फ़ैशन के परिधान पहनकर वह बहुत इतराने लगी थी।सुनंदा से मिलने जब भी आती तो उसकी सादगी का मज़ाक बनाती।उससे कहती,” क्या भाभी…भईया गैराज के मालिक हैं तो आपको भी ज़रा बन-सँवर के..मेकअप-शेकअप करके रहना चाहिए लेकिन नहीं….पता नहीं किस जमाने में जी रहीं हैं आप।तब सुनंदा हँसकर कह देती,” हम तो अपने भारतीय परिधान में ही खुश है।”

        फिर सीमा ने सुनंदा की बेटियों पर टिप्पणी करनी शुरु दी,” अरे भाभी…इंग्लिश का जमाना है…अपनी बेटियों को इंग्लिश वाले स्कूल में पढ़ाइये वरना आपको अच्छा दामाद नहीं मिलेगा..।हमारा बंटी तो…।”फिर वो अपना बखान करने लगती। सुनंदा तब भी बस मुस्कुरा देती थी।जवाब देकर वह ननद-भाभी के संबंधों में कड़वाहट नहीं लाना चाहती थी।

      सुनंदा की बड़ी बेटी रजनी को बीए की डिग्री मिलने वाली थी।उसने पिता को अपने काॅलेज़ में आने को कहा था।सोमेश्वर ठीक समय पर गैराज़ से मोटरसाइकिल लेकर निकले थे।काॅलेज़ पहुँचने ही वाले थे कि एक ट्रक से उनकी टक्कर हो गई और हाॅस्पीटल जाते-जाते उन्होंने दम तोड़ दिया।

      डिग्री लेकर रजनी जब घर पहुँची तो उसे मालूम हुआ कि….।उसकी छोटी बहन बारहवीं कक्षा में थी।सुनंदा की तो दुनिया ही उजड़ गई थी।उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि घर में आई इस विपदा से वह कैसे निबटेगी।कुछ दिन तो ऐसे ही बीत गये, फिर एक दिन रजनी ने हिम्मत करके सुनंदा से पूछा,” माँ…आप इजाज़त दें तो पापा के गैराज़ को मैं संभाल लूँ…।”

      यह सच है कि सुनंदा सादगी में विश्वास रखती थी लेकिन उसकी सोच और विचार बहुत प्रोग्रेसिव थें।वह अपनी बेटियों को शिक्षित करके आत्मनिर्भर बनाना चाहती थी।उसकी नज़र में कोई काम छोटा-बड़ा नहीं था।इसलिये जब रजनी ने पूछा तो उसने तुरंत हामी भर दी।

      मालिक के देहांत हो जाने के बाद गैराज़ के स्टाफ़ इधर-उधर चले गये थें, रजनी ने उन सभी से सम्पर्क किया और उन्हें वापस बुलाकर पिता के बंद मोटरगैराज को फिर से स्टार्ट कर दिया।रजनी के गैराज़ जाने पर पड़ोसियों ने तो बहुत विरोध किया, रिश्तेदारों ने भी माँ-बेटी को बहुत ताने दिये लेकिन सुनंदा ने उन पर ध्यान नहीं दिया और रजनी को भी उन्हें नज़रअंदाज़ करने को कहा।

        भाई की मृत्यु के समय सीमा अपने ससुराल गई हुई थी।वहाँ से वापस आने पर वह सुनंदा से मिलने गई और जब रजनी को गैराज़ जाते देखा तो उसे अच्छा नहीं लगा।

      सीमा की बात सुनकर सुनंदा मुस्कुराई और बोली,” सीमा…जब बेटा अपने पिता के काम को आगे बढ़ा सकता है तो बेटी क्यों नहीं..? ये कहाँ लिखा है कि लड़का ये काम कर सकता है और लड़की ये काम नहीं कर सकती।पता नहीं किस जमाने में जी रहीं हैं आप! आज की बेटियाँ तो खेती-बाड़ी से लेकर चाँद तक सफ़र तय कर आई हैं..।रजनी को तो सिर्फ़ गैराज़ तक ही जाना होता है, काम तो उसका स्टाफ़ करता है।आपको तो खुश होना चाहिए कि आपकी भतीजी अपने दम पर खड़ी है।सीमा….आधुनिकता पहनावे से नहीं होती…विचारों से होती है।आप भी अपनी सोच का थोड़ा विस्तार कर दीजिये….।”

        अपनी भाभी की बात सुनकर सीमा बहुत लज़्जित हुई।बोली,” भाभी…मुझे माफ़ कर दीजिये…थोड़ी देर के लिये मैं दिखावे के बहकावे में आ गई थी।आज आपने मेरी आँखें खोल दी।मुझे खुशी है इस दुख की घड़ी में भी आप झुकी नहीं, घबराई नहीं….।सच में..मुझे रजनी पर गर्व है।”

     तभी सीमा के पति सुबोध जो कि काफ़ी देर से दरवाज़े पर खड़े होकर ननद-भाभी की बातें सुन रहें थें, अंदर आये और सुनंदा से बोले,” भाभी…., आप धन्य हैं।अपने सुंदर विचारों से आपने बेटियों को आगे बढ़ाया है और मेरी पत्नी की आँखों पर पड़ा झूठे दंभ के पर्दे को भी हटा दिया….।” कहते हुए वो सीमा को देखकर मुस्कुराये तो सुनंदा को हँसी आ गई।फिर तो सीमा भी अपनी हँसी नहीं रोक पाई।

                                        विभा गुप्ता 

                                           स्वरचित 

# पता नहीं किस जमाने में जी रहीं हैं आप “

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