आखिर एक लड़की का असली घर कौन सा ?? (भाग 2) – स्वाति जैन : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  :

अल्का सौम्या के कमरे में कुछ सामान रखने जा रही थी कि अपना नाम सुनकर उसके कदम रुक गए !!

कौशल्या चाचीजी सौम्या और उसकी मां सरला जी से कह रही थी कि आज अल्का ने बहुत अच्छा डांस किया और वह बहुत सुंदर भी लग रही थी , यह सुनकर सौम्या चिढ़ते हुए बोली चाचीजी इसको सुंदर होना नहीं कहते , हां वह ठीक ठाक लग रही थी , पीछे से सरला जी भी बेटी का साथ देते हुए अपनी देवरानी से बोली अब मुंबई में अकेली तो रहती हैं अल्का , वहां डांस वांस सीखने जाती होगी इसलिए ढंग का डांस कर लिया होगा उसने वर्ना उसे कहां नाचना वाचना आता था ?? देखा नहीं था क्या उसकी खुद की शादी में कहां नाच पाई थी वह ??

अल्का ने सब सुन लिया और वह जैसे ही सामान रखने कमरे में गई सौम्या और सरला जी चुप हो गई !!

अल्का ने अपने कमरे मे आकर रमेश को सारी बात बता दी और बोली आखिर सौम्या और मम्मी जी को मुझसे इतनी दिक्कत क्यूं हैं ?? भला अपनी खुद की शादी में किसे शर्म नहीं आती , मैं अपनी शादी में इसलिए नहीं नाच पाई क्योंकि मुझे ससुराल वालों से शर्म आ रही थी और आज सौम्या की शादी के लिए मैं बहुत उत्साहित हुं इसलिए सोलो परफॉर्मेंस दे पाई और मुझे शादी वाले घर में इतना काम था कि मैं पार्लर तक ना जा पाई फिर भी सौम्या को मुझसे इतनी चिढ क्यूं हो रही हैं ??

रमेश मजाक करते हुए बोला अरे भाई , शादी उसकी हैं और कोई तुम्हारी तारीफ करें तो उसको चिढ़ होगी ही ना !! अब मेरी बीवी हैं ही इतनी सुंदर ….

अल्का कुछ बोली नहीं और कपड़े बदलकर सो गई और सोचने लगी आज मम्मी जी को सौम्या का बेकलेस ब्लाऊज नहीं दिखा होगा क्या ?? आज तो बेटी पर कितना ज्यादा प्यार लुटाए जा रही थी !!

जब मेरी शादी पर मैंने लहंगे के उपर ब्लाउज बनवाने कहा था तब तो मम्मीजी ने बड़ा हंगामा कर दिया था कि लहंगे पर कुर्ती ही पहननी होगी , हमारे यहां लहंगे पर ब्लाऊज पहनने का रिवाज नहीं है तब जैसे तैसे रमेश ने बात संभाली थी और मम्मी जी ने बहुत मुश्किल के बाद ब्लाऊज सिलवाने की हामी भरी थी मगर साथ साथ यह भी कह दिया था कि ब्लाऊज का गला पीछे से पुरा पैक होना चाहिए और आगे से भी ब्लाऊज बडा होना चाहिए ताकि लहंगे और ब्लाऊज के बीच में शरीर का कुछ हिस्सा ना दिखे , यह सब सुनकर अलका को अपनी सास की छोटी सोच पर बहुत गुस्सा आया था मगर वह क्या कर सकती थी , वह तो बेचारी बहु थी उस घर की …… कितना फर्क करते हैं लोग अपनी बेटी और बहु में ….

बहु को जिन चीजों की सहमति कभी नहीं मिलती , वहीं बेटी को कोई रोकटोक नहीं वाह री दुनिया क्यों इतना फर्क बनाया बेटी और बहु में , आखिर बहु भी तो किसी की बेटी हैं !! लोग क्यों अपनी छोटी सोच से दूसरे इंसान का जीना मुश्किल कर देते हैं , छोटी छोटी बातों पर टोकते हैं ताने देते हैं फिर अल्का ने इन सब बातों को किनारे रखना ही उचित समझा क्योंकि दूसरे दिन उसकी ननद की शादी थी और वह खुश रहना चाहती थी , सब सोचते सोचते अल्का की आंख लग गई !!

दूसरे दिन शादी का प्रोग्राम था , आज अल्का भी पार्लर तैयार होने जाती हैं , हरे रंग के लहंगे में आज अल्का ओर भी सुंदर लग रही होती हैं , रमेश उसे पार्लर से लेकर बेनक्वेट हॉल पहुंचता हैं , रमेश रास्ते में गाडी चलाते हुए बार बार अल्का को देखता हैं और कहता हैं अल्का तुम बहुत सुंदर लग रही हो , अल्का भी शर्मा जाती हैं और हंसकर थैंक यूं कहती हैं !!

वे दोनों जल्द ही बैनक्वेट हॉल में पहुंच जाते हैं जहां रमेश के बॉस उसके कलिग्स और उनकी पत्नियां भी शादी के लिए आ चुके थे , सभी लोग अल्का की बहुत तारीफ करते हैं !!

अल्का उपर से सभी का मुस्कुराकर धन्यवाद करती हैं मगर अंदर ही अंदर उसके मन में लडडू फुटते हैं , आखिर हर औरत अपनी तारीफ सुनकर अंदर से बहुत खुश हो जाती हैं , उतने में सौम्या भी बैन्क्वेट हॉल पहुंच जाती हैं और अल्का को देखकर उसे फिर से चिढ़ होती हैं !!

थोड़ी देर में दुल्हा भी बारात लेकर पहुंच जाता हैं और जैसे ही स्वागत करने की रस्म आती हैं सरला जी कहती हैं कि वे घर से लकड़ी की पटरी और आरती की थाल लाना भूल गई हैं यह देखकर लोगों में खुसर पुसर होने लगती हैं , दरहसल इस रस्म में दुल्हे को लकड़ी की पाट पर खड़ा कर उसकी आरती उतारी जाती हैं जो सरला जी घर से लाना भूल चुकी थी , लोगों की खुसर पुसर देख दुलहे की मां शारदा जी आगे आकर कहती हैं सरला जी कोई बात नहीं , आप आरती की थाल मंगवा लिजिए और दुल्हे का स्वागत स्टेज पर कर दिजिएगा , यह सुनकर सरला जी की सास में सास आती हैं !!

रमेश जल्दी से घर जाकर लकड़ी का पाट और आरती की थाल ले आता हैं और फिर दुल्हे का स्वागत स्टेज पर ही कर दिया जाता हैं !!

दुल्हा दुल्हन के सात फेरे लग जाने के बाद वर पक्ष वाले और वधू पक्ष वाले आराम करने लगते हैं , उतने में दुल्हे की मां शारदा जी अल्का के पास आकर कहती हैं अल्का जी हमारे मेहमानों को कुछ गददे कम पड रहे हैं , क्या आप थोड़े ओर गददे का इंतजाम करवा सकती हैं ??

अलका बोली जी आंटी जी जरूर कहकर अल्का बाहर चली जाती हैं !!

शारदा जी वहीं बैठकर गददों का इंतजार करती हैं …

 थोड़ी देर बाद अल्का कुछ ओर गददों का इंतजाम करवा देती हैं , तभी वहां बैठी औरतें जो रिश्ते में अल्का की चचेरी ननद और  चचेरी जेठानी देवरानी लगती हैं अलका को बुलाकर अपने पास बैठने कहती हैं !!

अल्का की चचेरी ननद रीया बोली भाभी कभी अपने लिए भी वक्त निकाल लिया करो , हमेशा यहां वहां भागती रहती हो ,  अपनी शादी के बाद आज मिली हो , जरा हमारे पास भी बैठो !!

अल्का बोली सच दीदी , अब तो शादी ब्याह ही बहाने रह गए है अपनों से मिलने के लिए , सभी इतने व्यस्त हो गए हैं कि चाहकर भी मिल नहीं पाते !!

रीया बोली भाभी आपने बिल्कुल सही कहा , हम तो यहां बैठे बैठे सौम्या की सास शारदा जी की तारीफ कर रही थी कि कितनी अच्छी हैं शारदा जी , वर्ना सरला चाची ने तो कितना हंगामा किया था आपकी शादी में याद हैं !!

अल्का बोली हां याद हैं दीदी , वह दिन तो मैं कैसे भूल सकती हुं ?? 

अल्का के पिताजी गिरधारी लाल जी ने अल्का की शादी में बहुत अच्छा इंतजाम किया था , लड़के के घरवालों के पसंद की गाडी , उनकी पसंद के कपड़े लत्ते , गहने ओर भी बहुत कुछ फिर भी रमेश के घर से फोन पर सारी हिदायत दी जाती कि रिवाज के अनुसार ओर क्या क्या करना पड़ेगा ??

वर पक्ष की सारी इच्छाएं पुरी की गई थी , अल्का के दोनों भाई बहन दीदी की शादी के लिए बहुत उत्साहित थे , उन्होने जीजू की जुते छुपाई का प्रोग्राम भी बना रखा था !!

शादी के दिन अल्का पार्लर मे तैयार होकर सीधे बैंकेट हॉल पहुंचने वाली थी !!

दूसरी तरफ रमेश की बारात नाचते गाते बैकेंट हॉल पहुंच गई थी , शादी लोकल थी इसलिए वर पक्ष और वधू पक्ष के ज्यादातर मेहमान भी आ चुके थे !!

अलका की मां कांता जी दुल्हे का स्वागत करने जा रही थी उतने में उन्हें एहसास हुआ की शादी की हडबडाहट में वे लोग लकड़ी की पाट और आरती की थाल घर भूल गए हैं जैसे ही यह बात सरला जी को मालूम हुई वे जोर से बोली रीति- रिवाजों की बिल्कुल भी समझ नही हैं आप लोगों में , जब लड़की के माता पिता को ही ज्यादा अक्ल नहीं तो लड़की को क्या खाक अक्ल होगी ??

चारो ओर अजीब सन्नाटा पसर गया , सभी मेहमान भी सरला जी को देख रहे थे , अलका की बहन यामिनी की तो आंखों से आंसू ही बह निकले क्योंकि उसे अपने घर वालों की बेज्जती सही नहीं जा रही थी , वह भी इतने मेहमानों के सामने …….

अल्का का भाई राज भी गुमसुम सा हो गया था !!

बारात अंदर आ गई और थोड़ी देर में अल्का भी बैंकेंट हॉल पहुंच गई मगर उसे सब जगह एक उदासीनता दिखाई दे रही थी , उसके घरवाले पहले जितने खुश नहीं दिखाई दे रहे थे , जूते छुपाई की रस्म भी नहीं की गई !! शादी संपन्न होने के बाद रमेश और अल्का को घर से विदाई देनी थी इसलिए अलका और रमेश को घर लाया गया , वहा अकेले में अलका के घरवालों ने उसे सारी बात बताई !!

अल्का को यह सब सुनकर बहुत दुःख हुआ और गुस्सा भी आया मगर कांता जी ने अल्का को समझाया कि वह यहां से गुस्सा लेकर ससुराल नहीं जाएगी , अलका ने मां की बात तो मान ली मगर आज उसे उसके माता पिता के लिए बहुत बुरा लग रहा था कि उसकी वजह से आज उसके माता पिता को कितना सुनना पडा , क्या लड़की के माता पिता होना इतना बड़ा गुनाह हैं ?? क्या लड़की के माता पिता की कोई इजजत नहीं होती ?? क्या एक बेटी अपने माता पिता की इजजत के लिए कुछ नहीं कर सकती ?? क्या वह अपने मायके वालों के साथ हुए दुर्व्यवहार के बारे में अपने ससुराल वालों को कुछ नहीं कह सकती ??

खैर मां के मना करने के बाद अल्का भारी मन से ससुराल आ गई , जिसके बाद उसकी असली परिक्षा शुरू हुई !!

अल्का जब भी अपने मायके के घर जाने का नाम लेती उसे सरला जी की इजाजत नहीं मिलती और यही कहा जाता कि अब ससुराल ही तुम्हारा घर हैं मायका नहीं समझी इसलिए यहीं रहो !!

अल्का तो ससुराल को भी अपना घर ही तो मानती थी मगर उसे ननद और सास का व्यवहार पल पल यह दर्शाता कि वह पराए घर से आई हैं और फिर एक साल बाद रमेश का ट्रांसफर मुंबई में हो गया और अल्का यहां मुंबई चली आई !!

अल्का भाभी कहां खो गई आप ?? अल्का की चचेरी ननद रीया के बुलाने से अल्का वर्तमान में लौटी , उतने में अल्का की चचेरी जेठानी बोली अल्का तुने कल भी ठीक ठीक जवाब नहीं दिया था , तेरे मायके वाले इस शादी में क्यों नहीं आए ??

अल्का बोली भाभी मेरे मायके वालों को मेरे ससुराल वालों ने शादी का कार्ड नहीं दिया हैं !!

जेठानी सीमा बोली सरला चाची ऐसा कैसे कर सकती हैं ?? भले कोई भी बात रही हो मगर कार्ड तो देना चाहिए था !!

अल्का ने कुछ जवाब नहीं दिया !!

सौम्या की विदाई हो रही थी , सौम्या की सास शारदा जी सरला जी से बोली आप फिक्र मत करिएगा , हम आपकी बेटी को अपनी बहु नहीं बेटी की तरह प्यार देंगें , यह सुनकर अलका सरला जी की तरफ एकटक देखने लगी !!

सरला जी बेटी के लिए खुश हुए जा रही थी !!

अब अल्का और रमेश भी मुंबई के लिए रवाना हो चुके थे , रास्ते भर अल्का उदास थी !!

रमेश बोला मैं जानता हुं अल्का , इस बार मेरे घरवालों ने तुम्हारे मायके वालों को शादी का कार्ड तक नहीं दिया यह बात तुम्हें अंदर ही अंदर खाए जा रही हैं !!

अलका बोली यह तो तुम्हारे घरवालों की हमेशा की आदत हैं रमेश , मेरे मायके वालों और मुझे नीचा दिखाना !!

उनके हिसाब से बहु और उसके घरवाले उनकी बराबरी का सम्मान पाने के लायक नहीं होते और जब मेरे पापा ने उन्हें आईना दिखाया तो उनके होश ऐसे उड़े कि उन्होने मेरे मायके वालों को शादी में ही नहीं बुलाया , यह बोलकर अल्का पुरानी बातों में खो जाती हैं , कितनी खुश थी वह जब उसकी पहली करवाचौथ थी !! वह उसके मायके जाना चाहती थी , कांता जी भी बेटी की पहली करवाचौथ के लिए बहुत उत्साहित थी लेकिन जैसे ही सरला जी को लखनऊ में पता चला कि अल्का अपनी पहली करवाचौथ अपने मायके में करने जा रही हैं वे फोन पर चिल्लाकर बोली तुम्हें कितनी बार बताना पड़ेगा कि अब ससुराल ही तुम्हारा घर हैं , तुम यहां आ सकती हो , मायके जाने की कोई जरूरत नहीं , उतने में ससुर जेठा लालजी बोले तुम्हारे बाप ने तो हमें गाडी के पैसे भी कम दिए हैं , अब क्या ही दे देंगें वह करवाचौथ पर तुम्हें जो वहां जाना चाहती हो !!

यह सुनकर अल्का की आंखों में आंसु आ गए , उसे अपना फोन भी धुंधला दिखने लगा और वह फफक फफककर रो पडी , रमेश उसकी यह हालत देख चिंता में आ गया और बोला क्या हुआ अल्का ?? मम्मी पापा ने क्या कहा फोन पर ??

अलका ने तुरंत अपने पापा को फोन लगाया और बोली पापाजी आपने गाडी के पुरे पैसे नहीं दिए थे क्या मेरे ससुराल वालों को ??

अल्का के पापा गिरधारी जी बोले बेटा , हमने पुरे पैसे दिए थे तेरे ससुराल वालों को !!

फिर मेरे ससुर जी ऐसा क्यों कह रहे हैं ?? अलका रोते हुए बोली पापा आप कल ही मेरे ससुराल जाकर उनसे इस बात को साफ किजिए , वैसे भी बार बार तंग आ चुकी हुं ससुराल वालों के झूठे ताने सह सहकर !!

अल्का को इतना रोते देख उसके पापा दूसरे दिन ही उसके ससुराल पहुंचे और वे त्रिवेदी जी को भी साथ लेकर पहुंचे जो बिछोनिए थे जिन्होने बीच में रहकर सारा लेनदेन करवाया था !!

त्रिवेदी जी ने सारे कागज दिखाए जिसमें उन्होने अल्का के ससुर जी के हस्ताक्षर लिए थे ताकि बाद में वे दहेज लेकर पलट ना जाए !!

अल्का के पापा गिरधारी जी आज चुप ना रह पाए और बोले जेठा लालजी बहु भी किसी की बेटी होती हैं , उस पर और उसके घरवालों पर झूठे इल्जाम लगाना बंद किजिए , बस उस दिन से अल्का के ससुराल वालों ने अलका के मायके से रिश्ता ही खत्म कर दिया था मगर अलका को इस बात की खुशी थी कि उसके मायके वालों ने आज हर बार की तरह चुप्पी का सहारा नहीं लिया था और हर बार की तरह बेटी वालों को झुककर रहना चाहिए यह नहीं कहा था !!

भले ही अलका को ससुराल में कभी वह इज्जत नहीं मिली जो एक बहु को मिलनी चाहिए मगर उसके पति रमेश उसे हर पल यह एहसास दिलाते कि वह उनकी जिंदगी हैं !!

अलका ने भी अब ससुराल वालों से उम्मीद छोड़ दी थी और वह भी सिर्फ उन लोगों के लिए जीती थी जो उसके लिए जीते थे !!

दोस्तों , आज भी यह सवाल एक लड़की हमेशा अपने आप से पूछती हैं कि आखिर उसका असली घर कौन सा हैं जहां वह पैदा हुई हैं वह या जहां उसका ससुराल हैं वह क्योंकि दोनों जगहों पर उसे पराई समझा जाता हैं !!

आपको यह कहानी कैसी लगी अपनी प्रतिक्रिया जरुर दे तथा ऐसी कहानी पढ़ने के लिए मुझे फॉलो जरूर करें !!

धन्यवाद !!

स्वाति जैन 

#घर 

GKK S

3 thoughts on “आखिर एक लड़की का असली घर कौन सा ?? (भाग 2) – स्वाति जैन : Moral stories in hindi”

  1. कहानी अधूरी सी है । कम से कम सरला जी को सुधार तो देना था या अलका को ही विद्रोह कर देना था।

    Reply

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!