नये, नये गुल खिलाती शहरी बहू। – सुषमा यादव

विमला के घर गांव में आज बहुत गहमागहमी मची थी। उसके बड़े बेटे अनिल की बारात जा रही थी,बहू बारहवीं तक पढ़ी थी, अनिल भी बी ए पास था, पर गांव में अभी इतनी पढ़ी,लिखी, सुंदर और शहरी बहू नहीं आई थी ।

बहू सुनीता का मायका तो गांव में ही था, परंतु उसका परिवार पंजाब में रह रहा था, वहीं उसकी पढ़ाई हुई थी,अब सब गांव आ गये थे।

सरला फूली ना समा रही थी, उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, सबसे बड़े ही घमंड से कहती,पूरे इलाके में मेरी जैसी बहू नहीं है ।

अपने औकात से ज्यादा पैसा खर्च किया, शादी में कोई कसर नहीं छोड़ी। खूब कर्ज लेकर धूमधाम से शादी हुई,बहू घर आई।

कुछ दिनों के बाद वो अपने मायके चली गई, बुलाने पर आती पर फिर जल्दी ही फोन करके अपने पिता या भाई को बुला लेती। 

जब अनिल ने और उसकी मां ने आपत्ति जताई तो बहू ने कहा,वह यहां गांव की गंदगी में नहीं रह सकती, अनिल को शहर में जाकर रहना होगा ।

उसकी जिद के आगे सब हार गए और अनिल अपनी पत्नी को लेकर शहर बहुत दूर चला गया ।

अब बहू तो बहुत खुश रहती, पर विमला बहुत उदास और दुःखी रहती, उसके परिवार में उसके तीन बेटे और एक शादी शुदा लड़की थी, लड़की अपने ससुराल में ही रहती, विमला को अकेले ही खेती,घर का काम करना पड़ता, पति तो बहुत पहले ही गुजर गए थे। किसी तरह सभी छोटे, छोटे बच्चों को पाला,पोसा,बहू तो आते ही पराई हो गई।

उसके परिवार वाले भी उसका उपहास उड़ाते, बहुत इतरा रही थी,लो,अब तो चिड़िया फुर्र हो गई।

कुछ साल बाद अनिल और बहू अपने नन्हें से बेटे को लेकर गांव आए,सास बहुत खुश हुई सब भुला कर बहू और पोते की सेवा करती। पर कुछ दिनों बाद बहू अपने बच्चे को लेकर जो मायके गई तो वापस ही नहीं आई, शहर जा नहीं सकती थी, क्यों कि करोना फैला हुआ था, इसीलिए तो मजबूरी में वापस आना पड़ा।




अब वो आये दिन अनिल को भी बुलाने लगी, अनिल भी जाता और एक, एक हफ्ते रहकर वापस आता ।मां इधर रोती रहती, कभी बहू आती भी तो दोनों में खूब झगड़ा होता और वो अपने बच्चे को लेकर अकेले ही मायके चली जाती।

अनिल परेशान हो गया, इधर मां और उधर पत्नी और बेटा,करे तो क्या करे। दोनों के बीच पिस रहा था।

बच्चा अब तीन साल का हो गया था, उसे सुनीता ने अपने ही मायके के आंगनबाड़ी में भर्ती कर दिया।

अंत में अनिल ने अपने ससुराल जा कर कहा, अगर सुनीता को मेरे साथ चलना है तो चले वरना अब मैं यहां कभी नहीं आऊंगा,रहे वो आपके पास। क्यों कि मेरे बेटे को अब स्कूल भेजना है, यहां अच्छे स्कूल नहीं है ,अब फैसला सुनीता को करना है।

सुनीता ने गुस्से में कहा, तो फिर शहर चलो, मैं तुम्हारे घर नहीं जाऊंगी।

अनिल ने कहा, मेरा एक भाई बीमार रहता है,दूसरा स्कूल में नौकरी करता है, मेरी मां अकेले ही खटती रहती है,दो रोटी बना कर देनेवाला कोई नहीं है, मैं अब तक तुम्हारे इशारों पर नाचता रहा, पर अब नहीं।

मजबूरी में सुनीता को उसके साथ आना ही पड़ा ।

पर सास बहू में अनबोला ही रहता।

एक दिन सुनीता ने अनिल से कहा,आज शंकर जी के मंदिर में मेला लगा है, मुझे वहां ले कर चलो। अनिल ने कहा,आज नहीं,आज खेतों में बीज बोना है, किसी दिन चलते हैं ।

ये कहकर मां और बेटा खेत में चले गए।

दोपहर जब खाना खाने घर आए तो देखा कि बहू तो सजी धजी कहीं बाहर से आ रही थी, बच्चे को घर पर ही छोड़ कर।

पूछने पर बताया कि तुम नहीं ले गये मेला, तो मैं अकेले ही चली गई, दोनों ने हैरानी से पूछा, इतनी दूर वो भी अकेले, बच्चे को छोड़कर ।




ऐंठते हुए बहू बोली, तो क्या हुआ, बच्चा अपने चाचा के पास था, और हां मैंने खाना नहीं बनाया है, अम्मा से कहो, बना लें।यह कहकर वह अपने कमरे में चली गई और दरवाजा बंद कर लिया।

भूखे प्यासे मां बेटे ने कोहराम मचा दिया, फिर क्या था, घर में महाभारत छिड़ गया,सब लोगों ने तमाशे का खूब मज़ा लिया।

नागिन सी चोट खाई बहू कोपभवन में जाकर बैठ गई, और

हुंकार भर कर बोली, मैं अब किसी का खाना नहीं बनाऊंगी,मेरा चूल्हा चौका अलग कर दो । इतने लोगों का खाना मैं नहीं बना सकती हूं।मजबूरन अनिल को उसका कहना मानना पड़ा।

अब बेटा बहू उसी घर में एक कमरे में अलग खाना बनाने लगे और बेचारी सास अपने दो बेटों के साथ अलग बनाती,खाती है।

पर अनिल अपनी मां की बहुत मदद कर देता है, खेती तो उसी के भरोसे चल रही है।

क्या करे, शहरी बहू पल पल रंग बदलती है,ना जाने अभी कितने गुल खिलाएगी। ना जाने समाज में कितना अपमान करायेगी। अनिल सब कुछ जानते हुए भी खामोश रहता है, अंदर ही अंदर घुटता रहता है। 

पत्नी यदि दुष्ट प्रकृति की मिल जाए तो पति का जीना हराम हो जाता है।

शहरी बहू गांव में तालमेल नहीं बैठा पा रही थी।




उसके पिता को भी देखभाल करके शादी करना था।

सास भी डाल, डाल तो बहू पात, पात।

यदि सास भी परिस्थितियों से समझौता कर लेती, तो शायद बहू भी कुछ समझती। पर दोनों अपने अपने अहं में चूर रही हैं और भुगतना बेटे को पड़ रहा है।।

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ प्र

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

#बहू

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